अरुणाचल हिमालय भूकम्प-आवृति अध्ययन

  • 27 Jul 2020

विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग (डीएसटी), भारत सरकार के स्वायत्त संस्थान वाडिया इंस्टीट्यूट ऑफ हिमालयन जियोलॉजी ने भारत के सबसे पूर्वी हिस्से में अरुणाचल हिमालय की चट्टानों और भूकंपीयता के लोचदार गुणों का अध्ययन किया है।

महत्वपूर्ण तथ्य: अध्ययन के अनुसार यह क्षेत्र दो अलग-अलग गहराई पर मध्यम स्तर का भूकंप पैदा कर रहा है। यह अध्ययन फरवरी 2020 में ‘जर्नल ऑफ एशियन अर्थ साइंसेज’ में प्रकाशित हुआ है।

  • निम्न स्तर के भूकंप 1-15 किमी. की गहराई पर केंद्रित होते हैं और 4.0 से अधिक तीव्रता वाले भूकंप ज्यादातर 25-35 किमी. गहराई से उत्पन्न होते हैं। मध्यवर्ती गहराई भूकंप सम्भावना से रहित है और द्रव/आंशिक पिघले हुए क्षेत्र (zone of fluid/partial melts) के समान है।
  • इस क्षेत्र में भूमि की ऊपरी परत की मोटाई ब्रह्मपुत्र घाटी के नीचे 46.7 किमी. से लेकर अरुणाचल के ऊंचाई वाले क्षेत्र के नीचे लगभग 55 किमी. है, यह संपर्क के स्थान पर थोडा ऊंचा है, जो ऊपरी परत (Crust) और मेंटल के बीच की सीमा को परिभाषित करता है, जिसे तकनीकी रूप से ‘मोहो असंबद्धता’ (Moho discontinuity) कहा जाता है।
  • इससे ‘ट्युटिंग-टिडिंग सुचर जोन’ (Tuting-Tidding Suture Zone-TTSZ) में इंडियन प्लेट के अंडरथ्रस्टइंग तंत्र (एक प्लेट के नीचे दूसरी प्लेट का जाना) का पता चलता है। ट्युटिंग-टिडिंग सुचर जोन पूर्वी हिमालय का एक प्रमुख हिस्सा है, जहाँ हिमालय एक तीव्र दक्षिण की ओर मुड़ता (sharp southward bend) है और इंडो-बर्मा रेंज से जुड़ता है।
  • अंडरथ्रस्टइंग प्रक्रिया प्रवाह (ड्रेनेज) पैटर्न और भू-संरचना में निरंतर परिवर्तन करती रहती है, जो हिमालय तथा इसके आसपास के क्षेत्रों में भारी भूकंपीय खतरा पैदा करने का मुख्य कारण है।