भारतीय चिकित्सा केंद्रीय परिषद की अधिसूचना

  • 24 Nov 2020

भारतीय चिकित्सा की आयुर्वेद, सिद्ध, सोवा-रिग्पा और यूनानी चिकित्सा पद्धतियों का नियमन करने वाली वैधानिक संस्था भारतीय चिकित्सा केंद्रीय परिषद (सीसीआईएम) ने स्नातकोत्तर आयुर्वेद शिक्षा के नियमों के कुछ प्रावधानों को कारगर बनाने के लिए और उसमें स्पष्टता लाने और परिभाषा जोड़ने के लिए 20 नवम्बर, 2020 को एक अधिसूचना जारी की।

महत्वपूर्ण तथ्य: अधिसूचना आयुर्वेद में स्नातकोत्तर शिक्षा की ‘शल्य’ और ‘शलाक्य’ धाराओं (Shalya and Shalakya streams) के संबंध में हैं।

  • इसमें कहा गया है कि स्नातकोत्तर उपाधि की शिक्षा प्राप्त करने वाले छात्रों को कुल 58 सर्जिकल प्रक्रियाओं में व्यवहारिक रूप से प्रशिक्षित करने की आवश्यकता होती है, ताकि शिक्षा पूरी करने के बाद वे इन गतिविधियों को स्वतंत्र रूप से करने के योग्य हो जाएं।
  • शुरुआत से ही, शल्य और शलाक्य सर्जिकल प्रक्रियाओं के लिए आयुर्वेद महाविद्यालयों में स्वतंत्र विभाग है।
  • 2016 की अधिसूचना में यह निर्धारित किया गया था, कि सीसीआईएम द्वारा जारी स्नातकोत्तर पाठ्यक्रमों के लिए संबंधित सिलेबस के तहत छात्र को संबंधित प्रक्रिया में प्रबंधन की जांच प्रक्रियाओं, तकनीकों और सर्जिकल प्रदर्शन का प्रशिक्षण दिया जाएगा।
  • सीसीआईएम भारतीय चिकित्सा पद्धति की प्रामाणिकता को बनाए रखने के लिए प्रतिबद्ध है, इसलिए पारंपरिक (आधुनिक) चिकित्सा के साथ आयुर्वेद के ‘मिश्रण’ का प्रश्न ही नहीं है।