कमजोर पड़ना या मजबूत होनाः सूचना का अधिकार (संशोधन) विधेयक, 2019


22 जुलाई, 2019 को लोकसभा ने सूचना का अधिकार (संशोधन) विधेयक, 2019 पारित किया, जिसका उद्देश्य सूचना का अधिकार अधिनियम, 2005 में संशोधन करना है। विधेयक में राज्य और केंद्रीय सूचना आयुक्तों के कार्यकाल और वेतन को निर्धारित करने की शक्ति केंद्र सरकार को देता है।

मुख्य विशेषताएं

  • सूचना आयुक्तों की पदावधिः यह विधेयक अधिनियम की धारा 13 [(मुख्य सूचना आयुक्त (CIC) और सूचना आयुक्त (SCIC) से संबंधित) और धारा 16 (राज्य के मुख्य सूचना आयुक्त (ICs) और राज्य सूचना आयुक्तों (SIC) से संबंधित) को संशोधित करता है, जिसमें कहा गया है कि सीआईसी और अन्य आईसी (केंद्रीय और राज्य स्तर पर नियुक्त)] के अनुसार पांच साल की अवधि के लिए पद संभालेंगे। विधेयक में प्रावधान है कि केंद्र सरकार सीआईसी और आईसीएस के कार्यकाल की सूचना देगी।
  • वेतन का निर्धारणः अधिनियम में कहा गया है कि CIC और ICs (केंद्रीय स्तर पर) का वेतन क्रमशः मुख्य चुनाव आयुक्त और चुनाव आयुक्तों को दिए गए वेतन के बराबर होगा। इसी तरह, CIC और IC (राज्य स्तर पर) का वेतन राज्य सरकार के अधीन चुनाव आयुक्तों और मुख्य सचिव को दिए जाने वाले वेतन के बराबर होगा। विधेयक वेतन और भत्तों से संबंधित इन प्रावधानों में संशोधन करता है और इसे केंद्र सरकार द्वारा निर्धारित किए जाने का प्रस्ताव करता है।
  • वेतन में कटौतीः अधिनियम में कहा गया है कि CIC और ICs (केंद्रीय और राज्य स्तर पर) की नियुक्ति के समय, अगर वे पिछली सरकारी सेवा के लिए पेंशन या किसी अन्य सेवानिवृत्ति लाभ प्राप्त कर रहे हैं, तो उनका वेतन पेंशन के बराबर राशि जितना कम हो जाएगा। पिछली सरकारी सेवा में निम्न के अंतर्गत सेवा शामिल हैः (i) केंद्र सरकार, (ii) राज्य सरकार, (iii) एक केंद्रीय या राज्य कानून के तहत स्थापित निगम और (iv) केंद्र या राज्य सरकार के स्वामित्व वाली या नियंत्रित सरकारी कंपनी। यह विधेयक इसे हटाने की बात करता है।

आरटीआई अधिनियम, 2005

आरटीआई (संशोधन) अधिनियम, 2019

CIC और IC के लिए कार्यकाल 5 वर्ष था।

सरकार कार्यकाल अधिसूचित करेगी।

CIC और IC का वेतन क्रमशः मुख्य चुनाव आयुक्त और चुनाव आयुक्त के बराबर होगा।

इनका निर्धारण सरकार द्वारा किया जाएगा।

समर्थन में तर्क

  • भारत निर्वाचन आयोग (ईसीआई) और केंद्रीय एवं राज्य सूचना आयोगों का अधिदेश अलग-अलग हैं। इसलिए, उनकी स्थिति और सेवा शर्तों को तद्नुसार तर्कसंगत बनाने की आवश्यकता है।
  • चुनाव आयोग एक संवैधानिक निकाय है_ जबकि सूचना आयुक्तों के कार्यालय वैधानिक हैं, इसलिए उनकी स्थिति समान नहीं हो सकती है।
  • केंद्रीय सूचना आयुक्त को सर्वाेच्च न्यायालय के न्यायाधीश का दर्जा दिया गया है, लेकिन उनके निर्णयों को उच्च न्यायालयों में चुनौती दी जा सकती है। इसलिए, इसे सुव्यवस्थित करने की आवश्यकता है।

संशोधन की आलोचना

  • यह सूचना आयुक्तों के कार्यालय की स्वतंत्रता से समझौता कर सकता है।
  • यह सशक्त प्रतिमा यानी आरटीआई अधिनियम 2005 और सूचना आयुक्तों की संस्था को निःशक्त बनाएगा।
  • चुनाव याचिकाएं और ईसीआई के फरमान को उच्च न्यायालयों में चुनौती दी जा सकती है। ध्यान देने योग्य बात यह है कि इसके सदस्यों को भी सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश का दर्जा प्राप्त है और यह उनकी प्रतिष्ठा को कम नहीं करता है।

निष्कर्ष

  • संशोधन की आलोचनाओं को सुधारने के लिए, इसे संसद की स्थायी समिति के अधीन करना चाहिए और संशोधन पर रचनात्मक बहस तथा चर्चा होनी चाहिए।

आरटीआई अधिनियम 2005

  • सूचना का अधिकार (RTI) अधिनियम सार्वजनिक प्राधिकरण के पास उपलब्ध सूचना तक पहुँच प्रदान करता है।
  • आरटीआई अधिनियम की धारा 22 में घोषणा की गई है कि अधिकारिक गुप्त अधिनियम (ओएसए 1923) से अधिक ‘व्यापक प्रभाव’ आरटीआई अधिनियम का है।
  • हालांकि, आरटीआई अधिनियम की धारा 24, यहां तक कि सुरक्षा और खुफिया संगठनों को भी भ्रष्टाचार और मानवाधिकारों के उल्लंघन के बारे में जानकारी देने का आदेश देती है।
  • अंत में, आरटीआई अधिनियम की धारा 8(2) सरकार को जानकारी प्रदान करने का प्रावधान करती है_ यदि सार्वजनिक प्रकटीकरण संरक्षित हितों को नुकसान पहुंचाने वाले कारकों से ज्यादा महत्वपूर्ण है।

केंद्रीय सूचना आयोग (CIC)

  • केंद्रीय सूचना आयोग, सूचना का अधिकार अधिनियम, 2005 के तहत गठित एक वैधानिक निकाय है।
  • आयोग में 1 मुख्य सूचना आयुक्त (CIC) और 10 से अधिक सूचना आयुक्त (IC) शामिल हैं, जिन्हें भारत के राष्ट्रपति द्वारा नियुक्त किया जाता है।
  • यह केंद्र सरकार और केंद्र शासित प्रदेशों के अधीन कार्यालयों, वित्तीय संस्थानों तथा सार्वजनिक उपक्रमों (सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों) से संबंधित शिकायतों एवं अपीलों की सुनवाई करता है।
  • आयोग के निर्णय अंतिम और बाध्यकारी हैं।