पत्र-पत्रिका संपादकीय

राज्य पर्यावरण प्रभाव आकलन प्राधिकरणों की रैंकिंग

केंद्रीय पर्यावरण मंत्रलय ने राज्य पर्यावरण प्रभाव आकलन प्राधिकरणों (SEIAA) के कामकाज में दक्षता, पारदर्शिता और जवाबदेही को प्रोत्साहित करने के लिए SEIAA की ‘रैंकिंग’ के लिए नई प्रणाली पेश की है। सरकार के इस कदम ने एक नए विवाद को जन्म दे दिया है। रेटिंग प्रणाली के अनुसार, यदि पर्यावरण मंजूरी देने के लिए SEIAA की औसत दिनों की संख्या 80 दिनों से कम है, तो उसे दो अंक मिलेंगे, 105 दिनों से अधिक के लिए उसे एक अंक मिलेगा। यदि यह 105 और 120 दिनों के बीच है, तो राज्य प्राधिकरण को 0-5 अंक मिलेंगे और यदि यह 120 दिनों से अधिक समय लेता है, तो उसे कोई अंक नहीं मिलेगा। सात या अधिक के स्कोर को ‘फाइव स्टार’ का दर्जा दिया जाएगा।

पर्यावरणीय प्रभाव आकलन (ईआईए) यह सुनिश्चित करता है कि बुनियादी ढांचे के विकास की पारिस्थितिक लागत न्यूनतम हो, लेकिन परिस्थितिकी विशेषज्ञों का मानना है कि रैंकिंग से प्राधिकरण का ध्यान परियोजनाओं की अनुमति में जल्दबाजी पर हो जाएगा तथा राज्यों को ‘व्यापार अनुकूल’ टैग (उच्च रेटिंग) हासिल करने के लिए अन्य राज्य के खिलाफ खड़ा कर देगा। वहीं सरकार का मानना है कि इससे निर्णय लेने की प्रक्रिया में तेजी आएगी।

मूल प्रश्न यह है कि क्या पर्यावरण और पारिस्थितिकी की कीमत पर परियोजनाओं के अनुमोदन में तेजी लाना सही है? इसलिए यह सुनिश्चित किया जाए कि सभी राज्यों में सक्षम विशेषज्ञ हों, जो बिना किसी भय या पक्षपात के परियोजनाओं का आकलन कर सकें। केवल रैंकिंग पर ध्यान केंद्रित करना कभी भी उचित तरीका नहीं हो सकता है। हरित सुरक्षा उपायों को कम करना राष्ट्र और उसके लोगों के लिए नुकसानदायक हो सकता है। यहां तक कि एक मजबूत अर्थव्यवस्था के लिए भी इस नुकसान की भरपाई करना चुनौतीपूर्ण होगा।

स्रोत-द हिंदू

बढ़ती बेरोजगारी

रेलवे भर्ती में कथित अनियमितताओं को लेकर बिहार में हिंसक विरोध और आगजनी की घटनायें भारतीय अर्थव्यवस्था के एक भयानक दौर को दर्शाता है, जिसका जनसंख्या पर प्रभाव विनाशकारी है। मुंबई स्थित स्वतंत्र थिंक टैंक सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनॉमी (CMIE) का अनुमान है कि दिसंबर 2021 में देश की बेरोजगारी दर 7.9% तक बढ़ गई है। शहरी बेरोजगारी बढ़कर 9.3% हो गई और ग्रामीण बेरोजगारी इस अवधि में 6.4% से बढ़कर 7.3% हो गई।

भारत की बेरोजगारी दर में पिछले कुछ वर्षों में सबसे तेज वृद्धि रही है - 2017-18 में यह 4.7% थी, जो 2018-19 में बढ़कर 6.3% और अंत में दिसंबर 2021 में 7.91% हो गई।

कंपनियों द्वारा लागत कम करने के लिए अनुबंधित और कर्मचारियों की संख्या को कम करने के साथ महामारी के प्रभावों ने स्थिति को और बदतर किया है। लेकिन ऐसा लगता है कि भारत ने बांग्लादेश जैसी अन्य उभरती अर्थव्यवस्थाओं की तुलना में खराब प्रदर्शन किया है। 2015-16 और 2020-21 के बीच सबसे गरीब 20» परिवारों की वार्षिक आय में 53% की गिरावट आई है।

स्थिति चिंताजनक है, रोजगार सृजन में असमर्थता और लाखों निम्न और अर्ध-कुशल श्रमिकों को नियोजित करने के लिए एक श्रम-गहन विनिर्माण क्षेत्र के सृजन में तेजी लाना सरकार के सामने सबसे बड़ी चुनौतियों में से एक है।

स्रोत- द ट्रिब्यून

भारत और मध्य एशिया भू-सामरिक चुनौतियां

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा भारत-मध्य एशिया आभासी शिखर सम्मेलन की मेजबानी की गई, जिसमें पांच मध्य एशियाई गणराज्यों के राष्ट्रपतियों ने हिस्सा लिया। भूमि मार्गों तक पहुंच की कमी और अफगानिस्तान की स्थिति भारत और मध्य एशिया के बीच सबसे बड़ी चुनौतियों में से एक है। भारत का मध्य एशिया के साथ मामूली 2 अरब डॉलर का व्यापार है। इसकी तुलना में, चीन का मध्य एशियाई देशों के साथ व्यापार 41 अरब डॉलर से अधिक है। पाकिस्तान द्वारा भारत के पारगमन व्यापार से इनकार करने के बाद, भारत के पास दूसरा विकल्प ईरान के चाबहार बंदरगाह के माध्यम से इसे सुगम बनाना है। तीसरा विकल्प बंदर अब्बास बंदरगाह के माध्यम से रूस-ईरान अंतरराष्ट्रीय उत्तर-दक्षिण परिवहन गलियारे (INSTC) का उपयोग करना है, लेकिन यह पूरी तरह से चालू नहीं है और उज्बेकिस्तान और तुर्कमेनिस्तान इसके सदस्य नहीं हैं। भारत ने पाकिस्तान के साथ तनाव को देखते हुए, तापी (तुर्कमेनिस्तान-अफगानिस्तान-पाकिस्तान-भारत) गैस पाइपलाइन योजनाओं से भी कदम खींच लिए हैं। अंत में, अफगानिस्तान तालिबान के कब्जे के बाद मध्य एशिया और दक्षिण एशिया के बीच की कमजोर कड़ी बन गया है।

भारत और मध्य एशियाई देश अफगानिस्तान और चाबहार पर संयुक्त कार्य समूहों की स्थापना और अधिक शैक्षिक और सांस्कृतिक अवसरों सहित अधिक संगठित जुड़ाव के लिए भी सहमत हुए हैं, जिससे भारत के इस क्षेत्र में व्यापार की संभावनाओं को नई दिशा मिल सकती है।

स्रोत - द हिंदू

भारत के लिए अहम है ग्रीन एनर्जी कॉरिडोर

आर्थिक मामलों की मंत्रिमंडलीय समिति ने राष्ट्रीय ग्रिड को अक्षय ऊर्जा परियोजनाओं से बिजली की आपूर्ति हेतु पारेषण परियोजनाओं के दूसरे चरण की स्थापना के लिए 12,031 करोड़ रुपए की मंजूरी दी है। ग्रीन एनर्जी कॉरिडोर गुजरात, हिमाचल प्रदेश, कर्नाटक, केरल, राजस्थान, तमिलनाडु और उत्तर प्रदेश से राष्ट्रीय ग्रिड को 20 गीगावॉट अक्षय ऊर्जा प्रदान करेगा। ग्रीन एनर्जी कॉरिडोर यह सुनिश्चित करेगा कि अक्षय ऊर्जा स्रोतों से बिजली की आपूर्ति राष्ट्रीय ग्रिड को अस्थिर नहीं करेगी और यह 49.90-50.05 हर्ट्ज बैंड फ्रीक्वेंसी के भीतर रहेगी।

भारत ने जलवायु पक्षकारों के सम्मेलन (COP-26) में वर्ष 2030 तक अपनी ऊर्जा आवश्यकताओं का 50% अक्षय ऊर्जा से पूरा करने की प्रतिबद्धता की है। अक्षय ऊर्जा स्रोतों से उत्पादित बिजली का पारंपरिक बिजली स्टेशनों से तालमेल करने के लिए बुनियादी ढांचे में निवेश दीर्घकालिक ऊर्जा सुरक्षा में योगदान देगा, कार्बन पदचिह्न को कम करके पारिस्थितिक रूप से टिकाऊ विकास सुनिश्चित करेगा, और रोजगार सृजन को बढ़ावा देगा। ग्लोबल वार्मिंग के सबसे बुरे प्रभावों से बचने और लोगों और अर्थव्यवस्था को सुरक्षित रखने के लिए जीवाश्म ईंधन की जगह अक्षय ऊर्जा का प्रयोग आवश्यक है।

स्रोत- हिंदुस्तान टाइम्स

भारत को वित्तीय परिषद स्थापित करने की आवश्यकता

महामारी ने विकास और राजकोषीय संकेतकों के पूर्वानुमानों को चुनौतीपूर्ण बना दिया है। इसलिए, यह एक राजकोषीय परिषद के गठन का सही समय है, जो सकल घरेलू उत्पाद की वृद्धि और कर उत्प्लावकता (tax buoyancy) जैसे संकेतकों पर स्वतंत्र पूर्वानुमान प्रदान करेगी, ऋण लक्ष्यों के अनुपालन की निगरानी करेगी।

इससे भारत सरकार को मैक्रोइकॉनॉमिक (समष्टि आर्थिकी) स्थितियों का बेहतर मूल्यांकन करने में मदद मिलेगी और यह निवेशकों और बॉन्ड बाजारों को राजकोषीय घाटे के बारे में सूचित करेगा और इसका कारण स्पष्ट करेगा। क्रमिक वित्त आयोगों, और राजकोषीय उत्तरदायित्व और बजट प्रबंधन (एफआरबीएम) समीक्षा समिति ने वैश्विक प्रथाओं के अनुरूप एक वित्तीय परिषद के निर्माण की सिफारिश की है। इससे बजट प्रक्रिया में भी पारदर्शिता आएगी।

लगभग 50 देशों में राजकोषीय परिषदें हैं। हाल में आईएमएफ के एक शोध पत्र ने पर्यवेक्षण प्रदान करने में राजकोषीय परिषदों की भूमिका की सराहना की है, जिसमें ‘एस्केप क्लॉज’ (escape clauses) के उपयोग की निगरानी भी शामिल है। ‘एस्केप क्लॉज’ राष्ट्रीय सुरक्षा, युद्ध, राष्ट्रीय आपदा या कृषि उत्पादन और आय के बुरी तरह प्रभावित होने के आधार पर सरकार को राजकोषीय घाटे के लक्ष्य की सीमा को पार करने (breach) की अनुमति देता है। सार्वजनिक ऋण पर नजर रखने के लिए सार्वजनिक वित्त में अनुभवी पेशेवरों की एक वित्तीय परिषद, सरकारी वित्त को बेहतर आकार देने में मदद करेगी।

स्रोत - इकनॉमिक टाइम्स

चकमा और हाजोंग समुदाय

राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (एनएचआरसी) ने गृह मंत्रालय और अरुणाचल प्रदेश सरकार को पूर्वोत्तर राज्य में चकमा और हाजोंग समुदाय के साथ होने वाले भेदभाव को रोकने और उनके पुनर्वास को लेकर कार्रवाई रिपोर्ट प्रस्तुत करने का निर्देश देकर सही काम किया है। 1960 के दशक की शुरुआत में कर्णफुली नदी पर कप्ताई बांध के निर्माण के लिए जमीन गंवाने के बाद वे तत्कालीन पूर्वी पाकिस्तान (वर्तमान बांग्लादेश) में चटगांव पहाड़ी इलाकों से अपने घरों को छोड़कर भाग गए थे। उन्होंने भारत में शरण मांगी और अरुणाचल प्रदेश में राहत शिविरों में बस गए थे। 2015 में, सुप्रीम कोर्ट ने राज्य को उन्हें नागरिकता देने का निर्देश दिया, लेकिन इसे अभी तक लागू नहीं किया गया। 1996 में एक फैसले में, कोर्ट ने कहा था कि राज्य के भीतर रहने वाले प्रत्येक चकमा के जीवन और निजी स्वतंत्रता की रक्षा की जाएगी। बावजूद इसके अगस्त 2021 में अरुणाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री की चकमा और हाजोंग समुदाय के लोगों को राज्य के बाहर स्थानांतरित किए जाने की घोषणा पूर्णतः अनुचित थी। पूर्वोत्तर में किसी भी राज्य सरकार के लिए मूल आदिवासी समुदायों और वैध रूप से बसे शरणार्थियों के हितों को संतुलित करना मुश्किल है, लेकिन असंभव नहीं है। आदिवासी लोगों, उनके आवास और उनकी आजीविका की रक्षा हेतु दशकों पुराने मुद्दे का समाधान भारतीय संविधान में प्रदत्त विशेष अधिकारों, न्यायालय के फैसले को लागू करने और कानून के शासन में निहित है। राजनेताओं को इस मुद्दे से राजनीतिक लाभ लेने से बाज आना चाहिए।

स्रोत- द हिंदू

भारत-पाकिस्तान संबंध

हिन्दू, मुसलमान और सिख तीर्थयात्रियों को हवाई सेवा के जरिये हवाई यात्र करने की अनुमति देने हेतु पाकिस्तान हिंदू परिषद का एक प्रस्ताव पाकिस्तान द्वारा भारत को भेजा गया है। ऐसे समय में जब अधिकांश अन्य भारत-पाकिस्तान आदान-प्रदान निलंबित कर दिया गया है, यह प्रस्ताव दोनों देशों के बीच संबंधों में सुधार की उम्मीद जगाता है। पांच साल से अधिक समय से द्विपक्षीय या बहुपक्षीय स्तर पर कोई राजनीतिक बातचीत नहीं हुई है।

अगर यह प्रस्ताव भारत सरकार स्वीकार कर लेती है तो 2019 में दोनों देशों के बीच हवाई सेवा निलंबित होने के बाद यह पहली पाकिस्तानी फ्रलाइट होगी और 1947 के बाद दोनों तरफ से तीर्थयात्रियों को ले जाने वाली पहली फ्रलाइट होगी। वर्तमान में दोनों देशों के तीर्थयात्रियों के समूह 1974 के प्रोटोकॉल विनिमय समझौते के तहत वाघा-अटारी सीमा से सड़क मार्ग से यात्र करते हैं।

चूंकि यात्र की अनुमति देने से पहले दोनों पक्षों के तीर्थयात्रियों के समूहों की जांच की जाती है, इसलिए इस पहल से कोई अतिरिक्त सुरक्षा खतरा पैदा होने की संभावना नहीं है। दोनों सरकारों द्वारा हाल ही में शुरू किए गए ऐसे अन्य कदमों- जैसे कि फरवरी में एलओसी युद्धविराम की घोषणा या करतारपुर कॉरिडोर को फिर से खोलने का निर्णय, या टी 20 विश्व कप के तहत क्रिकेट आयोजन के लिए सरकार की मंजूरी के बाद इस तरह की लोगों से लोगों की जुड़ाव की यह पहल कुछ हद तक सद्भावना बढ़ाने व संबंधो को सुधारने में मदद कर सकती है।

स्रोत- द हिंदू