पत्र-पत्रिका संपादकीय

इस अंक में विभिन्न समाचार-पत्रें में प्रकाशित लेखों के आधार पर संपादकीय तैयार किया गया है। इसका उद्देश्य प्रतियोगी छात्रोंको प्रारम्भिक व मुख्य परीक्षा से संबंधित विश्लेषणात्मक प्रश्नों की तैयारी में मदद करना है।

भारत का सेमीकंडक्टर मिशन

केंद्र सरकार ने ‘सेमीकंडक्टर और डिस्प्ले विनिर्माण इकोसिस्टम’ के विकास का समर्थन करने के लिए 76,000 करोड़ रुपए का ‘भारत सेमीकंडक्टर मिशन’ लॉन्च किया है। ताइवान, दक्षिण कोरिया, अमेरिका, जापान और हाल ही में, चीन सहित मुट्ठी भर देशों में सेमीकंडक्टर निर्माण और आपूर्ति क्षमता के आधिक्य से, दुनिया भर की सरकारों ने महसूस किया है कि चिप निर्माण को एक रणनीतिक अनिवार्यता के रूप में शामिल किया जाना राष्ट्रीय हित में है। इसलिए चिप और डिस्प्ले उद्योग के सतत विकास के लिए दीर्घकालिक रणनीतियों के लिए भारत सेमीकंडक्टर मिशन स्थापित करने का निर्णय सही दिशा में एक कदम है।

हालांकि, आगे की चुनौती काफी चुनौतीपूर्ण है। सेमीकंडक्टर उद्योग के विभिन्न उप-क्षेत्रें में विनिर्माण क्षमता स्थापित करने के लिए आमतौर पर आवश्यक निवेश हेतु वर्तमान में परिकल्पित राजकोषीय समर्थन का स्तर बहुत कम है। यहां तक कि भारत की उत्पादन से जुड़ी प्रोत्साहन योजना कम से कम दो ग्रीनफील्ड सेमीकंडक्टर फैब्रिकेशन सुविधा स्थापित करने के लिए लागत की केवल 50% तक ही वित्तीय सहायता दे सकती है।

यह सबसे अच्छा होता यदि नया मिशन डिजाइन सहित चिप बनाने वालीशृंखला के अन्य हिस्सों पर अभी के लिए वित्तीय सहायता पर ध्यान केंद्रित करता, जहां निश्चित रूप से भारत में पहले से ही काफी प्रतिभा और अनुभव है।

स्रोत- द हिंदू

एक हिमालयी चेतावनी

‘साइंटिफिक रिपोर्ट’ में प्रकाशित में एक नए अध्ययन के अनुसार ग्लेशियर (हिमनद) खतरनाक दर से बड़े पैमाने पर नुकसान के दौर से गुजर रहे हैं। लगभग 14,798 हिमनदों ने अपने ‘लिटिल आइस एज’ (400 से 700 साल पहले) क्षेत्र का 40% खो दिया है। पूरे हिमालय में बर्फ के नुकसान में 10 गुना तेजी देखी गई है, जो दुनिया में कहीं और दर्ज की गई किसी भी शताब्दी-पैमाने पर बदलाव की दर से कहीं अधिक है। यह पिघले पानी के कारण झील का निर्माण करता है और ये अतिप्रवाह के कारण फट सकते हैं, जिससे अचानक बाढ़ आ सकती है। इन झीलों की संख्या और आकार बढ़ रहा है, इसलिए बड़े पैमाने पर नुकसान में निरंतर तेजी की उम्मीद की जा सकती है। हालांकि, इस बात पर बहुत कम सहमति है कि इस तरह के हिमनदों के पीछे हटने से लंबे समय में जल विज्ञान संसाधनों पर प्रभाव पड़ेगा।

पृथ्वी विज्ञान मंत्रलय की एक रिपोर्ट के अनुसार हिंदू कुश हिमालय क्षेत्र ने 1951 और 2014 के बीच लगभग 1-3 डिग्री सेल्सियस के तापमान में वृद्धि का अनुभव किया। परिणामस्वरूप, हिंदू कुश हिमालय के कई क्षेत्रें में बर्फबारी में गिरावट की प्रवृत्ति का अनुभव हुआ है। इसलिए, सरकार को कृषि और पानी की उपलब्धता पर संभावित प्रभाव और अनुप्रवाह की ओर आपदाओं की संभावना को समझने के लिए दीर्घकालिक ग्लेशियर-निगरानी कार्यक्रम शुरू करना चाहिए।

स्रोत- हिंदुस्तान टाइम्स

अफ़स्पा कानून पर फ़ैसले हेतु समिति का गठन

केंद्रीय गृह मंत्रलय ने नागालैंड से सशस्त्र बल विशेष अधिकार अधिनियम - अफस्पा (AFSPA) को वापस लेने की संभावना की जांच के लिए भारत के महापंजीयक विवेक जोशी की अध्यक्षता में पांच सदस्यीय समिति का गठन किया है।

हालांकि संवेदनशील, अशांत क्षेत्रें में सुरक्षा बनाए रखने के लिए इसके इस्तेमाल को तर्कसंगत ठहराया जाता रहा है, लेकिन यदि पूर्वोत्तर के राज्यों को अपनी क्षमता का सही मायने में एहसास करना है और ‘पूर्व की ओर देखो नीति’ के तहत दक्षिण पूर्व एशिया के साथ भारत के व्यापार के लिए एक केंद्र बनना है, तो अफस्पा को जारी रखना घाटे का सौदा हो सकता है। वर्तमान परिस्थितियों में पर्याप्त निवेश या व्यापार के अवसरों का लाभ नहीं लिया जा सकता है। अफस्पा से प्रभावित पूर्वोत्तर राज्यों को काफी नुकसान हुआ है। केंद्र और राज्यों दोनों के राजनीतिक नेतृत्व को इस कठोर कानून पर पुनर्विचार करना चाहिए।

स्रोत- द टाइम्स ऑफ इंडिया

भारत की बढ़ती प्लास्टिक चुनौती

केंद्र के अनुसार, पिछले पांच वर्षों में 21-8% की औसत वार्षिक वृद्धि के साथ प्लास्टिक अपशिष्ट उत्पादन दोगुने से अधिक हो गया है। 2018-2019 की केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (CPCB) की रिपोर्ट के अनुसार भारत का वार्षिक प्लास्टिक अपशिष्ट उत्पादन 3-3 मिलियन मीट्रिक टन है, जो अनुमान से कम प्रतीत होता है। सात राज्य - महाराष्ट्र, दिल्ली, कर्नाटक, उत्तर प्रदेश, गुजरात, पश्चिम बंगाल और तमिलनाडु - देश के कुल प्लास्टिक उत्पादन में 66% का योगदान करते हैं। जबकि, गोवा और दिल्ली का प्रति व्यक्ति प्लास्टिक उपयोग राष्ट्रीय औसत से छः गुना अधिक है। इंडियन इंस्टीटड्ढूट ऑफ टेक्नोलॉजी, खड़गपुर के 2018 के एक अध्ययन के अनुसार दिल्ली के नालों में 49% प्लास्टिक अपशिष्ट था।

भारत प्लास्टिक के खिलाफ देशव्यापी अभियान चला रहा है। प्लास्टिक अपशिष्ट प्रबंधन नियम, 2016 से लेकर 2022 तक एकल-उपयोग वाले प्लास्टिक को चरणबद्ध तरीके से समाप्त करने संबंधी कई नीतिगत उपाय किए गए हैं। लेकिन यह असफल साबित प्रतीत हो रहे हैं। इसलिए कठोर कदम उठाए जाने की आवश्यकता है। एक मजबूत राष्ट्रीय योजना बनाई जाए, पारदर्शिता सुनिश्चित की जाए और जिसमें सरकार और उद्योगों से लेकर हर अंतिम नागरिक तक हर हितधारक को शामिल किया जाए।

स्रोत- हिंदुस्तान टाइम्स

भारत में बैंकिंग की प्रवृत्ति और प्रगति

भारतीय रिजर्व बैंक की ‘भारत में बैंकिंग की प्रवृत्ति और प्रगति’ का नवीनतम संस्करण भारतीय बैंकों के वित्तीय स्वास्थ्य की एक प्रशंसापूर्ण तस्वीर प्रस्तुत करता है। पिछले वर्ष की तुलना में, बैंकों ने 2020-21 में, जिसमें अर्थव्यवस्था 7-3% तक संकुचित हो गई थी, 5% अधिक ऋण दिया। लाभप्रदता बढ़ गई है, गैर-निष्पादित परिसंपत्तियां (एनपीए) निम्न स्तर पर हैं, जोखिम भारित आस्तियों की तुलना में पूंजी अनुपात बढ़ गया है।

कम निवेश और औद्योगिक गतिविधि ने बैंकों के लिए ऋण देने के अवसरों को कम कर दिया था, हालांकि गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों ने आक्रामक और लाभप्रद रूप से ऋण दिया था। अच्छी बात यह है कि बैंकों ने अपने पूंजी बफर को बढ़ा दिया है। निवेश की अगुवाई वाले तेज विकास और इक्विटी निवेश की नीति, जिसमें ऋण को इक्विटी में बदलना शामिल है, शायद एक बड़े बैंकिंग संकट को टाल सकता है।

स्रोत - इकनॉमिक टाइम्स

महिलाओं की विवाह की न्यूनतम उम्र में वृद्धि

केंद्र सरकार द्वारा महिलाओं के लिए विवाह की आयु 18 वर्ष से बढ़ाकर 21 वर्ष करने सम्बंधित विधेयक को लोक सभा में पेश करने के बाद विचार-विमर्श और जांच के लिए स्थायी समिति के पास भेज दिया गया है। हालांकि, सामाजिक जागरूकता पैदा किए बिना और स्वास्थ्य देखभाल तक पहुंच में सुधार के बिना विवाह की उम्र बढ़ाने से उस समुदाय को अधिक लाभ होने की संभावना नहीं हैः युवा महिलाएं अभी तक आर्थिक रूप से स्वतंत्र नहीं हैं, जो पारिवारिक और सामाजिक दबावों के चलते अपने अधिकारों और स्वतंत्रता का प्रयोग करने में भी असमर्थ हैं।

राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (2019-2021) के अनुसार, 20-24 वर्ष की आयु की 23-3% महिलाओं का विवाह 18 वर्ष से पहले हो गया है, जो दर्शाता है कि बाल विवाह निषेध अधिनियम, 2006, बाल विवाह को रोकने में पूरी तरह से सफल नहीं रहा है, विशेष रूप से गरीब समुदाय में। इन उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिए लड़कियों को उनके स्वास्थ्य में सुधार के लिए नेटवर्क प्रदान किया जाए। महिलाओं के यौन और प्रजनन स्वास्थ्य और अधिकारों के बारे में सामाजिक जागरूकता पैदा करने पर ध्यान केंद्रित किया जाना चाहिए और यह सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि लड़कियों को स्कूल या कॉलेज छोड़ने के लिए मजबूर न किया जाए।

स्रोत- द हिंदू

गरीब लोगों की स्वास्थ्य सुरक्षा पर देना होगा भारत को ध्यान

कोविड-19 ने वैश्विक गरीबी को बढ़ा दिया है। विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) और विश्व बैंक द्वारा जारी रिपोर्ट के अनुसार, इसने सार्वभौमिक स्वास्थ्य कवरेज की दिशा में दो दशकों की प्रगति को रोक दिया है और आधे अरब लोगों को अत्यधिक गरीबी में धकेल दिया है। यह स्वास्थ्य आपातकाल उन देशों को सबसे ज्यादा प्रभावित कर रहा है, जहां सभी के लिए गुणवत्तापूर्ण, सस्ती देखभाल प्रदान करने में सक्षम स्वास्थ्य प्रणालियों की कमी है।

इस सदी के पहले दो दशकों में, दुनिया भर की सरकारों ने स्वास्थ्य सेवा कवरेज में काफी प्रगति की है। 2019 में महामारी से पहले, दुनिया की 68% आबादी की आवश्यक स्वास्थ्य सेवाओं तक पहुँच थी, जो तब से आधी हो गई है। इन सेवाओं में प्रसव पूर्व और प्रसवोत्तर देखभाल के क्षेत्र प्रजनन स्वास्थ्य एचआईवी, टीबी और मलेरिया के लिए उपचार टीकाकरण सेवाएं और गैर संचारी रोग सेवाएं शामिल हैं।

इस संदर्भ में, भारत को अपनी कमजोर एवं गरीब आबादी के लिए स्वास्थ्य सेवाओं को प्राथमिकता देनी चाहिए। आर्थिक सर्वेक्षण 2021 के अनुसार, भारतीयों के पास दुनिया के सबसे अधिक आउट-ऑफ-पॉकेट स्वास्थ्य व्यय है। सार्वजनिक स्वास्थ्य व्यय को सकल घरेलू उत्पाद के 1% से बढ़ाकर 2-5% करने से आउट-ऑफ-पॉकेट स्वास्थ्य व्यय में 65% की कमी हो सकती है। सबसे गरीब लोगों की सुरक्षा के लिए सार्वजनिक स्वास्थ्य खर्च में बढ़ोतरी भारत के लिए अच्छी साबित होगी।

स्रोत- हिंदुस्तान टाइम्स

नदी जोड़ो परियोजनाएं

केन-बेतवा लिंक परियोजना, को अंततः केंद्रीय मंत्रिमंडल द्वारा मंजूरी दे दी गई है, जिससे पानी की कमी वाले बुंदेलखंड क्षेत्र के निवासी (उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश के 13 जिलों में फैले हुए हैं) 10 वर्षों के भीतर इस क्षेत्र में हरियाली की उम्मीद कर सकते हैं। नदियों को आपस में जोड़ना एक पुरानी और विराट महत्वाकांक्षा रही है। भारत में नदियों को जोड़ने की परियोजनाओं का इतिहास 19वीं शताब्दी का है। पेरियार परियोजना को 1895 में चालू किया गया था, और इसके तहत पानी को पेरियार बेसिन (अब केरल राज्य में) से तमिलनाडु के वैगई बेसिन में स्थानांतरित किया जाता है। यह देश के विभिन्न हिस्सों को एक साथ तबाह करने वाले सूखे और बाढ़ के कारण होने वाली पीड़ाओं का एक स्पष्ट समाधान प्रतीत होता है।

नदियों को आपस में जोड़ने के विचार को समय-समय पर आगे बढ़ाया गया और फिर लागत-लाभ विश्लेषण और लोगों के विस्थापन की चिंता के कारण वापस ले लिया गया। पानी के अपने हिस्से को लेकर राज्यों के बीच मतभेदों ने भी समस्याएँ पैदा की हैं। केन-बेतवा परियोजना की सफलता, जिसमें दो राज्य शामिल हैं, अन्य राज्यों को अनुसरण करने के लिए एक कार्यशील मॉडल प्रदान कर सकती है। सावधानी के तौर पर लोगों के विस्थापन और पर्यावरण और वन्य जीवन को नुकसान की चिंताओं को दूर करने के प्रयास किए जाने चाहिए।

स्रोत-द ट्रिब्यून