पत्र-पत्रिका संपादकीय

महात्मा गांधी ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना में फ़ंड की कमी

वित्त वर्ष 2021-22 के लिए महात्मा गांधी ग्रामीण रोजगार गारंटी (मनरेगा) योजना के तहत 29 अक्टूबर तक 35 में से 21 राज्यों/केंद्र-शासित प्रदेशों ने अपने आवंटित धन का 100% से अधिक उपयोग कर लिया है। केंद्र सरकार द्वारा अचानक घोषित किए गए लॉकडाउन के बाद, मनरेगा गरीबों, विशेष रूप से प्रवासी मजदूरों के लिए एक जीवन रक्षक था। इस वर्ष के बजट में, वित्त मंत्री ने योजना के लिए 73,000 करोड़ रुपए आवंटित किए, जो कि पिछले वर्ष के बजट आवंटन में कुल संख्या से अधिक था, लेकिन यह बजट व्यय का केवल 2.1% था, जो कि पिछले वर्षों में उन संदर्भों में सबसे कम परिव्यय था। जाहिर है, केंद्र सरकार ने योजना के तहत काम की मांग को कम करके आंका है।

केंद्र सरकार को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि वेतन भुगतान के लिए और इस वित्तीय वर्ष के शेष महीनों में मांग को पूरा करने के लिए आवंटन पर्याप्त हो। गरीब किसान परिवारों की सहायता में, फसल और मौसम बीमा की अनुपस्थिति में एक प्रभावी विकल्प के रूप में कार्य करने से लेकर महामारी से प्रेरित आर्थिक संकट के दौरान खेतिहर मजदूरों को रोजगार के लिए एक अवसर के रूप में मनरेगा ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। मनरेगा अर्थव्यवस्था को गति देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। केंद्र सरकार को आवंटन के दौरान इस पर विचार करना चाहिए कि संकट में योजना की उपयोगिता के अलावा, इसमें ग्रामीण विकास और बुनियादी ढांचे में सुधार जारी रखने की भी क्षमता है।

स्रोत- द हिंदू

भारत को अपनी आसियान रणनीति में बदलाव की जरूरत

भारत ने भारत-आसियान शिखर सम्मेलन में एक स्वतंत्र, खुले और समावेशी हिंद-प्रशांत के प्रति अपनी प्रतिबद्धता की पुष्टि की है और आसियान की केंद्रीयता के लिए समर्थन व्यक्त किया है। लेकिन एशिया तेजी से बदल रहा है और यह उससे बहुत अलग है, जिसे भारत ने 1990 के दशक की शुरुआत में ‘लुक ईस्ट पॉलिसी’ के नाम से अपने साथ फिर से जोड़ा था।

चीन के उदय और अपने पड़ोसियों के प्रति उसकी मुखर नीतियों ने आसियान को बहुत परेशान किया है। इसके अलावा चीन और अमेरिका के बीच गहराते राजनीतिक टकराव और आर्थिक अलगाव की संभावना से आसियान क्षेत्र को भी झटका लगा है।

2019 में भारत क्षेत्र-व्यापी मुक्त व्यापार समझौते ‘क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक भागीदारी’ से पीछे हट गया था। RCEP से जुड़ी व्यापक क्षेत्रीय धारणा है कि भारत अपनी ‘आत्मनिर्भर’ नीतियों के लिए इससे पीछे हट गया है। भारत को अपनी नीतियों की बेहतर एशियाई समझ को बढ़ावा देने और गहन आर्थिक और राजनीतिक सहयोग के लिए उनके द्वारा पेश किए गए नए अवसरों को बढ़ावा देने के लिए एक व्यापक प्रयास की आवश्यकता है।

स्रोत- इंडियन एक्सप्रेस

चीन का नया सीमा कानून

भारत के साथ बातचीत में जारी गतिरोध के बीच एक नया सीमा कानून पारित करने के साथ ही चीन ने भारत को एक स्पष्ट संकेत भेजा है कि वह वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) पर 18 महीने लंबे संकट को जल्दी से समाप्त करने के मूड में नहीं है। 1 जनवरी से प्रभावी होने वाला यह कानून, चीन में सेना से लेकर स्थानीय अधिकारियों तक विभिन्न एजेंसियों को सीमाओं की रक्षा की जिम्मेदारियों के लिए निर्दिष्ट करता है। भारत ने चीन से यह कहते हुए तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त की है कि उसे एलएसी को एकतरफा रूप से बदलने के लिए पिछले साल से पीएलए की कार्रवाइयों को औपचारिक रूप देने के लिए ‘बहाने’ के रूप में कानून का उपयोग नहीं करना चाहिए। कानून के अनुसार चीन अपनी सीमाओं को निर्धारित करने के लिए अपने पड़ोसियों के साथ बातचीत करेगा। कानून का भारत-चीन सीमा पर बहुत कम असर पड़ेगा क्योंकि दोनों पक्षों ने अभी तक सीमा प्रश्न को हल नहीं किया है। दरअसल, नया कानून इस बात को रेखांकित करता है कि जहां तक चीन की सीमाओं का संबंध है, वह इस पर कोई समझौता करने के मूड में नहीं है। भले ही भारत और चीन बातचीत जारी रखते हैं, यह कानून नवीनतम संकेत है कि सीमा पर वर्तमान स्थिति, दोनों पक्षों द्वारा अग्रिम क्षेत्रों में निरंतर तैनाती और बुनियादी ढांचे का निर्माण, लंबी अवधि तक जारी रहने की संभावना है।

स्रोत- द हिंदू

प्राकृति की मार

केरल में भारी बारिश और बाढ़ के कारण भूस्खलन और जान-माल का नुकसान एक नियमित घटना बन गई है। पश्चिमी घाट जैसे पारिस्थितिक रूप से संवेदनशील क्षेत्रों में अनियमित गतिविधियों ने मानव जीवन, जैव विविधता और आर्थिक विकास को खतरे में डाल दिया है। केरल अपने अनुभव में अकेला नहीं है। इसी तरह की घटनाएं उत्तरी राज्यों हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड में हिमालय के पारिस्थितिक रूप से संवेदनशील क्षेत्र में हुई हैं।

संदेश स्पष्ट है, गैर-जिम्मेदाराना विकास के परिणामस्वरूप प्रकृति और नाजुक पारिस्थितिकी तंत्र की क्षति के साथ ही आर्थिक नुकसान होगा। इसलिए प्रकृति को देश की संपत्ति के हिस्से के रूप में महत्व देना महत्वपूर्ण है।

गाडगिल समिति की रिपोर्ट की सिफारिशों पर गंभीरता से विचार करने का समय आ गया है। चरम मौसमीय घटनाओं और जलवायु परिवर्तन के प्रभावों की बार-बार होने वाली घटनाओं का आकलन करने और एक नियामक व्यवस्था लागू करने की आवश्यकता है, जो आर्थिक गतिविधि और विकास तथा पारिस्थितिकी तंत्र संरक्षण की जरूरतों के बीच संतुलन पैदा कर सके।

स्रोत- इकनॉमिक टाइम्स

100 करोड़ कोविड-19 वैक्सीन खुराक

भारत ने 21 अक्टूबर को कोविड-19 वैक्सीन खुराक के एक अरब का आंकड़ा पार करने के साथ इतिहास रचा है। 16 जनवरी को टीकाकरण कार्यक्रम शुरू होने के लगभग नौ महीनों में यह आंकड़ा छुआ है। शिशुओं और बच्चों के लिए स्थापित सार्वभौमिक टीकाकरण कार्यक्रम के अलावा, भारत ने कभी भी इतने बड़े पैमाने पर सार्वभौमिक वयस्क टीकाकरण कार्यक्रम शुरू नहीं किया है।

वर्ष के अंत तक सभी योग्य वयस्कों के टीकाकरण का बड़ा लक्ष्य सामने है। भले ही वैक्सीन की आपूर्ति बढ़ रही है, लक्ष्य को पूरा करने के लिए टीकाकरण अभियान की गति तेज करनी होगी। 75% से अधिक योग्य वयस्कों को पहले ही एक खुराक के साथ टीका लगाया जा चुका है, तो पूरी तरह से टीकाकरण करने वाले वयस्कों का अनुपात केवल 31% है। सुरक्षा स्तर को बढ़ाने के लिए दो खुराकों के साथ टीकाकरण आवश्यक है। अंतरराष्ट्रीय दायित्वों को पूरा करने में और देरी वैश्विक दक्षिण के लिए एक विश्वसनीय वैक्सीन आपूर्तिकर्ता के रूप में भारत की विश्वसनीयता को बहुत नुकसान पहुंचाएगी। इसलिए यह जरूरी है कि मांग को पूरा करने के लिए टीके का उत्पादन तेजी से बढ़ाया जाए।

स्रोत- द हिंदू

वन आवरण का विस्तार

वन मंत्रालय ने मौजूदा वन कानून में संशोधन की प्रक्रिया शुरू की है। पुराने हो चुके भारतीय वन अधिनियम में संशोधन काफी समय से लंबित थे, खासतौर पर सन 1996 के बाद से जब सर्वोच्च न्यायालय ने अपने एक आदेश के जरिये वनों तथा उनके संचालन की अवधारणा की बुनियाद को ही बदल दिया था। सर्वोच्च न्यायालय ने कहा था कि कोई भी हरित क्षेत्र 'वन' शब्द को चरितार्थ करता हो उसे वन माना जाना चाहिए और उसका उसी अनुसार रखरखाव होना चाहिए।

संशोधन में छोटे मोटे अपराधों के लिए दंड समाप्त करने, बड़े अपराधों के लिए अपेक्षाकृत भारी जुर्माने तथा वन संरक्षण के लिए कड़े मानकों का प्रावधान किया गया है। इसमें ‘प्राचीन जंगल’ की नई अवधारणा शामिल की गई है, जहां किसी भी हालत में किसी तरह की गैर कृषि गतिविधि की इजाजत नहीं दी जाएगी। इसके अलावा इसमें भूमि पर फसल उगाने, उसे लाने ले जाने और उसका कारोबार करने की राह में आने वाली अधिकांश बाधाओं को दूर करने का भी प्रावधान है।

33% हिस्से को वनाच्छादित करने तथा जलवायु परिवर्तन के पेरिस समझौते में तय 2.5 से 3 अरब टन क्षमता के कार्बन डाइ-ऑक्साइड कार्बन सिंक तैयार करने के लिए निजी क्षेत्र की भागीदारी अहम है। वनों के विस्तार, पर्यावरण संरक्षण और आर्थिक विकास में संतुलन कायम करना होगा, इसके लिए निजी और सार्वजनिक क्षेत्र का तालमेल आवश्यक है।

स्रोत-बिजनेस स्टैंडर्ड

गति शक्ति राष्ट्रीय मास्टर प्लान

भारत का धीमा आर्थिक विकास इंजन ‘गति शक्ति राष्ट्रीय मास्टर प्लान’ के लॉन्च के साथ प्रमुख बुनियादी ढांचे के उन्नयन के माध्यम से नई गति प्राप्त कर सकता है, जो उद्योग के लिए लॉजिस्टिक लागत में कटौती करेगा और चौतरफा दक्षता बढ़ाएगा। यह एक तकनीकी-केंद्रित प्रशासनिक पहल है, जो सूचना प्रौद्योगिकी, उपग्रह मानचित्रण और डेटा उपकरणों के माध्यम से रेलवे, सड़कों और बंदरगाहों सहित 18 मंत्रालयों के एकीकरण का लक्ष्य रखती है। गति शक्ति योजना स्थानीय विनिर्माताओं को वैश्विक रूप से प्रतिस्पर्धी बनाने में मदद करेगी। यह भविष्य के नए आर्थिक क्षेत्रों (economic zones) की संभावनाओं को भी जन्म देती है। यह देखते हुए कि योजना के प्रमुख घटक जैसे बंदरगाह लिंकेज और राजमार्गों, रेलवे, औद्योगिक समूहों और गलियारों के लिए भूमि की उपलब्धता राजनीतिक सहमति और सक्रिय भागीदारी पर निर्भर करती है, राज्यों की एक महत्वपूर्ण भूमिका होगी।

स्रोत- द हिंदू

निजी डेटा सुरक्षा

हाल ही में भारत में विभिन्न डिजिटल प्लेटफॉर्म पर हो रहे डेटा उल्लंघनों की घटना चिंताजनक है। इससे भी ज्यादा परेशानकरने वाली बात यह है कि ज्यादातर मामलों में शामिल कंपनियां संभावित डेटा उल्लंघन के बारे में उपयोगकर्ताओं को सूचित नहीं कर रही हैं।

वैश्विक स्तर पर, अमेरिका और यूरोप में काम करने वाली कंपनियों को कानून के तहत डेटा उल्लंघन होने पर उपयोगकर्ताओं को सूचित करने की आवश्यकता होती है। कई मामलों में, कंपनियों को भारी जुर्माना भी भरना पड़ा है। निजता और डेटा सुरक्षा पर अमेरिका और यूरोपीय संघ द्वारा अपनाए गए कानूनों के विपरीत, भारत का डेटा निजता कानून अभी प्रगति पर है। निजी डेटा संरक्षण विधेयक पर संयुक्त संसदीय समिति ने कुछ सख्त सुझाव दिए हैं। यह मानता है कि यदि ‘डेटा प्रिंसिपल’ यानी ‘उपभोक्ता’ उल्लंघन से प्रभावित है और ‘डेटा न्यासी’ (data fiduciary) यानी सेवा प्रदाता अपने स्रोत का पता लगाने और उसकी पहचान करने में असमर्थ है, तो ‘डेटा न्यासी’ को उत्तरदायी ठहराया जाना चाहिए।

समिति के भीतर सर्वसम्मति यह है कि यदि सरकारी एजेंसियों को कानून के अपवादों का लाभ उठाना है, तो उन्हें लिखित आदेशों के माध्यम से ऐसा करना होगा ताकि वे न्यायिक समीक्षा और आरटीआई जांच के अधीन हों। सरकार को ऐसे मुद्दों को हल करने में जल्दबाजी करनी चाहिए ताकि रिपोर्ट को अपनाया जा सके और विधेयक को संसद के आगामी शीतकालीन सत्र में पेश किया जा सके।

स्रोत- द हिन्दू बिजनेस लाइन