नक्सलवाद के कारण

शोषण और भ्रष्टाचार, दूरस्थ क्षेत्रें में विकास न होना, सामाजिक विषमता, सरकारी योजनाओं की विफलता, विकास प्रक्रिया में सहभागिता का अभाव, कानून व्यवस्था, मौलिक अधिकारों के हनन पर नियंत्रण का अभाव, राजनीतिक इच्छाशक्ति का अभाव, बेरोजगारी, स्थानीय लोगों में प्रतिकार की असमर्थता, भौगोलिक दुर्गमता।

नक्सलवाद का आर्थिक विकास पर प्रभाव

राज्यों की अर्थव्यवस्था के साथ-साथ देश की अर्थव्यवस्था पर प्रभाव, प्रति व्यक्ति सकल घरेलू उत्पाद (ळक्च्) वृद्धि में कमी, उच्च महंगाई दर, कर राजस्व में कमी, स्थानीय निवेश में कमी तथा सुरक्षा में अधिक खर्च, शिक्षा तथा स्वास्थ्य व्यय में कमी एक्सपोर्ट तथा प्रत्यक्ष विदेशी निवेश में कमी, नक्सली हिंसा से परिवहन सुविधाएं भी प्रभावित होती है। पर्यटन, क्षेत्रीय पर्यटन मार्केट शेयर में कमी, कृषि तथा अन्य क्षेत्रें में निवेश की कमी, रोड कंस्ट्रक्शन मशीनरी, रेलवे लाइन आदि की क्षति।

सामाजिक तथा राजनीतिक प्रभाव

  • उच्च जातियों, जमींदारों तथा सरकारी प्राधिकारियों द्वारा निम्न जाति के ग्रामवासियों तथा आदिवासियों को नक्सली हिंसा में ढकेलना।
  • न्यूनतम मजदूरी अधिनियम ग्रामीण भारत में प्रभावी नहीं होना।
  • वन (संरक्षण) अधिनियम, 1980 पर केंद्र सरकार का नियंत्रण होना।
  • बुनियादी विकास जैसे सड़क, स्कूल बिल्डिंग आदि।
  • नक्सली घटनाओं से देश की आंतरिक सुरक्षा को खतरा।

नक्सली समस्या के समाधान के प्रयास

वर्ष 2010 में केंद्र सरकार द्वारा इसके नियंत्रण के लिए एक राष्ट्रव्यापी कार्ययोजना तैयार की गई। इसके अंतर्गत नक्सल प्रभावित राज्यों- कर्नाटक, छत्तीसगढ़, ओडिशा, आंध्र प्रदेश, महाराष्ट्र, झारखंड, बिहार, उत्तर प्रदेश तथा पश्चिम बंगाल में समन्वित ऑपरेशन चलाने की योजना बनाई गई। 2010 में नक्सलियों के विरुद्ध ‘ऑपरेशन ग्रीन हंट' अभियान चलाया गया। नक्सल प्रभावित जिलों के लिए आईएपीएलडब्ल्यू अर्थात् ‘इंटीग्रेटेड एक्शन प्लान लेफ्रट विंग एक्सट्रीमिज्म' नामक योजना आरंभ की गई।

छत्तीसगढ़ सरकार द्वारा नक्सल पीडि़त परिवारों और आत्मसमर्पण करने वाले नक्सलियों के लिए आकर्षक पुनर्वास पैकेजों की घोषणा की गई है। छत्तीसगढ़ में नक्सल हिंसा में मृत्यु पर मृतक के परिवार को 5 लाख रुपए देने की घोषणा की गई थी।