परिवार व अन्य अदालतें

  • देश में पारिवारिक अदालतों का गठन 1984 में किया गया था।
  • इसका उद्देश्य महिलाओं को उत्पीड़न से मुक्ति दिलाना तथा दोषियों को उपयुक्त सजा दिलवाना था।
  • इन अदालतों में मामले निपटने में समय अधिक लगते हैं। गुजारा भत्ता का आदेश हो जाने के बाद भी उसका पालन नहीं होता।
  • पीडि़ता को गवाह जुटाना मुश्किल हो जाता है।

जाति पंचायतें

इनका गांव में अधिक और शहरों में कम प्रभाव है, इनमें जातिवाद बढ़ा है। यह पंचायतें महिलाओं के हक में नहीं हैं, इन पंचायतों में एकपक्षीय निर्णय ले लिया जाता है।

हर जगह पुरुष प्रधान जाति पंचायतें ज्यादा हैं, जहां महिलाओं की संस्थाएं सक्रिय नहीं है वहां घरेलू हिंसा को लेकर हुए फैसले पूरी तरह एक पक्षीय रहे हैं।