हेलसिंकी सम्मेलन

बाल्टिक सागर क्षेत्र के समुद्री पर्यावरण की रक्षा पर हेलसिंकी में 1974 में एक अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन का आयोजन किया गया। यह प्रथम अंतरराष्ट्रीय समझौता था जिसमें प्रदूषण के सभी श्रोतों पर विचार किया गया चाहे वे पृथ्वी, सागर अथवा वायु के हों। हेलसिंकी सम्मेलन में तेल और अन्य प्रदूषणकारी पदार्थों द्वारा जलीय प्रदूषण को नियंत्रित करने के क्षेत्र में सहयोग के नियमन पर बल दिया गया।

इसी के आधार पर 1992 में हेलसिंकी में ही एक और सम्मेलन हुआ जिसमें बाल्टिक सागर क्षेत्र के देशों तथा यूरोपीय आर्थिक संघ के सदस्यों द्वारा स्वीकृति प्रदान की गई। 1 जनवरी 2000 को यह समझौता पूर्ण हुआ तथा 1974 के हेलसिंकी सम्मेलन को समाप्त कर दिया गया।

भारत द्वारा अब तक किए गए प्रयास

  • गैर-जीवाष्म ईंधन पर निर्भरता बढ़ायी जा रही है। इसके लिए राष्ट्रीय सौर ऊर्जा मिशन, राष्ट्रीय ऊर्जा दक्षता मिशन जैसी योजनाएं संचालित की जा रही हैं।
  • स्मार्ट स्कीमों पर बल दिया जा रहा है। स्मार्ट ग्रिड विकसित किये जा रहे हैं। स्मार्ट सिटी विकसित किये जा रहे हैं। जहां स्वच्छ व सतत पर्यावरण को बढ़ावा दिया जाएगा।
  • अपशिष्ट प्रबंधन के तहत अपशिष्ट को ऊर्जा में परिवर्तन करने की योजनाओं को प्रोत्साहन दिया जा रहा है। ठोस अपशिष्ट व अपशिष्ट जल प्रबंधन परियोजनाओं में निवेश को प्रोत्साहित किया जा रहा है।
  • निम्न कार्बन अर्थव्यवस्था के तहत मालभाड़ा गलियारा, आंतरिक जलमार्ग, एमआरटीएस व मेेट्रो रेल के द्वारा वाहनों की आवाजाही बढ़ाने के बजाये लोगों की आवाजाही (moving people rather than moving vehicles) बढ़ायी जा रही है। प्रधानमंत्री मोदी ने ‘जीरो इफेक्ट-जीरो डिफेक्ट’ के द्वारा 10 लाख लघु औद्योगिक इकाइयों की स्थापना का आह्वान किया है। ये इकाइयां शून्य कार्बन उत्सर्जन करेंगी।
  • वनीकरण को वर्ष 2005 के 23-4% स्तर से बढ़ाकर वर्ष 2013 में 24% करना। कंपनी अधिनियम 2013 के तहत कंपनियों को कॉर्पोरेट सामाजिक दायित्व (सीएसआर) फंड में से पर्यावरण पहलों पर व्यय करने को कहना।