क्योटो प्रोटोकॉल

11 दिसम्बर 1997 को जापान के क्योटो में यह सम्मेलन आयोजित हुआ था। UNFCCC के 159 देशों के साथ सहमति पर हस्ताक्षर किया गया था। क्योटो सम्मेलन में अमेरिका द्वारा 6 गैसों में कटौती किए जाने के प्रस्ताव को स्वीकार किया गया था। यह गैसें हैं- कार्बन डाइऑक्साइड, मिथेन, नाइट्रस ऑक्साइड, हाइड्रोफ्लोरो कार्बन, तथा सल्फर हेक्सा फ्लेराइड। इन गैसों के उत्सर्जन के स्तर को 2012 तक 1990 के स्तर पर लाने का लक्ष्य निर्धारित किया गया था।

यह संधि 2006 में रूस द्वारा हस्ताक्षर करने के उपरांत प्रभावी हुआ। दिसम्बर 2012 के दोहा सम्मेलन में क्योटो प्रोटोकॉल की अवधि को 2020 तक बढ़ाने पर सहमति व्यक्त की गई है। परन्तु इस संधि में संयुक्त राज्य अमेरिका ने हस्ताक्षर नहीं किए तथा वर्ष 2012 में कनाडा भी इस संधि से अलग हो गया। अनुसूची-I विकसित एवं औद्योगिक देशों के लिए बाध्यकारी है लेकिन विकासशील देशों के लिए बाध्यकारी नहीं है। क्योटो प्रोटोकॉल की संधि में निम्न बातों को मान्यता दी गई है-

  • विकासशील देशों से अधिक विकसित एवं औद्योगिक देश हरित ग्रह गैसों के उत्सर्जन के लिए जिम्मेदार हैं।
  • इस संधि में कहा गया है कि विकासशील देशों ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन में कमी लाएंगे लेकिन इस प्रकार का उन देशों पर कोई बाध्यकारी नहीं है।

बहुपक्षीय जलवायु परिवर्तन प्रणाली के अंतर्गत स्थापित निधियां

विशेष जलवायु परिवर्तन निधि (Special Climate Change Fund -SCCF): इस निधि की व्यवस्था जीईएफ द्वारा की जाती है और वह अनुकूलन_ प्रौद्योगिकी अंतरण एवं क्षमता निर्माण_ ऊर्जा, परिवहन, उद्योग, कृषि वानिकी, एवं अपशिष्ट प्रबंधन_ और आर्थिक विविधीकरण संबंधी परियोजनाओं में वित्त-पोषण करता है।

न्यूनतम विकसित देश निधि (Least Developed Countries Fund-LDCF): सर्वाधिक कम विकसित देश निधि राष्ट्रीय अनुकूलन कार्य योजनाएं (एनएपीए) तैयार करने एवं उनके क्रियान्वयन में सर्वाधिक कम विकसित देशों की मदद करने के लिए एक कार्ययोजना में सहायता करता है। दिसंबर 2011 की स्थिति के अनुसार, एलडीसीएफ ने परियोजनाओं के लिए लगभग 217 मिलियन अमरीकी डॉलर की राशि मंजूर की तथा सह-वित्तपोषण में 919 मिलियन अमरीकी डॉलर से अधिक की राशि जुटायी।

अनुकूलन निधि (Adaptation Fund -AF): विकासशील देश पक्षों में ठोस अनुकूलन परियोजनाओं एवं कार्यक्रमों में वित्तपोषण करने के लिए क्योटो प्रोटोकॉल के अंतर्गत यह निधि स्थापित की गयी थी। स्वच्छ विकास तंत्र परियोजना कार्यों और अन्य वित्तपोषण-साधनों पर प्राप्त आगमों के 2 प्रतिशत अंश से इस अनुकूलन निधि में वित्तपोषण किया जाता है। इस निधि का पर्यवेक्षण और प्रबंध अनुकूलन निधि बोर्ड (एएफबी) द्वारा किया जाता है। इस निधि की सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण विशेषताएं ऐसी है कि उनसे पक्षों की निधि तक की सीधी पहुंच है जिससे अनुकूलन परियोजनाओं पर देश के स्वामित्व में वृद्धि हुई है।

ग्रीन जलवायु निधि (Green Climate Fund -GCF): डरबन, दक्षिण अफ्रीका में आयोजित सीओपी 17 में, सीओपी ने विकासशील देशों में परियोजनाओं, कार्यक्रमों, नीतियों और अन्य कार्यों में सहायता करने के लिए इस कनवेंशन के अंतर्गत एक ग्रीन जलवायु निधि स्थापित की। यह निधि 2013 से काम करना शुरु कर देगी, जिसके लिए विकसित देश निधि की व्यवस्था करेंगे। 2020 तक 100 बिलियन अमरीकी डॉलर के दीर्घकालिक वित्तपोषण के बारे में देशों द्वारा निर्णय लिया गया है और आशा है कि जीसीएफ इसके महत्त्वपूर्ण हिस्से की व्यवस्था कर लेगा। जीसीएफ की मुख्य विशेषता यह है कि इसकी एक स्वतंत्र विधिक हैसियत एवं व्यक्तित्व होगा तथा राष्ट्रीय निर्दिष्ट प्राधिकारियों को महत्त्वपूर्ण भूमिका निभानी है। कई दौर की भिन्न-भिन्न वार्ताओं के बाद यह प्राप्ति हुई है।