मानसून आगमन की प्रक्रिया

एशिया और यूरोप का विशाल भूभाग, जिसका एक हिस्सा भारत भी है, ग्रीष्मकाल में गरम होने लगता है। इसके कारण उसके ऊपर की हवा गरम होकर उठने और बाहर की ओर बहने लगती है। पीछे रह जाता है, कम वायुदाब वाला एक विशाल प्रदेश। यह प्रदेश अधिक वायुदाब वाले प्रदेशों से वायु को आकर्षित करता है। अधिक वायुदाब वाला एक बहुत बड़ा हिस्सा भारत को घेरने वाले महासागरों के ऊपर मौजूद रहता है क्योंकि सागर, स्थल भागों जितना गरम नहीं होता है और इसीलिये उसके ऊपर वायु का घनत्त्व अधिक रहता है। उच्च वायुदाब वाले सागर से हवा मानसून पवनों के रूप में जमीन की ओर बह चलती है। दक्षिण पश्चिमी मानसून भारत केपूरेदक्षिणी भाग में जून 1 को पहुँचता है। साधारणतः मानसून केरल के तटों पर जून महीने के प्रथम पाँच दिनों में प्रकट होता है। यहाँ से वह उत्तर की ओर बढ़ता है और भारत के अधिकांश भागों पर जून के अन्त तक पूरी तरह छा जाता है।

अरब सागर से आने वाली पवन उत्तर की ओर बढ़ते हुए 10 जून तक मुम्बई पहुँच जाती है। इस प्रकार तिरूवनंतपुरम से मुम्बई तक का सफर वे दस दिन में बड़ी तेजी से पूरा करती हैं। इस बीच बंगाल की खाड़ी के ऊपर से बहने वाली पवन की प्रगति भी कुछ कम आश्चर्यजनक नहीं होती। यह पवन उत्तर की ओर बढ़कर बंगाल की खाड़ी के मध्य भाग से दािखल होती है और बड़ी तेजी से जून के प्रथम सप्ताह तक असम में फैल जाती है। हिमालय रूपी विघ्न के दक्षिणी छोर को प्राप्त करके यह मानसूनी धारा पश्चिम की ओर मुड़ जाती है। इस कारण उसकी आगे की प्रगति म्यांमार की ओर न होकर गंगा के मैदानों की ओर होती है।

मानसून कोलकाता शहर में मुम्बई से कुछ दिन पहले (साधारणतः जून 7 को) पहुँच जाता है। मध्य जून तक अरब सागर से बहने वाली हवाएँ सौराष्ट्र, कच्छ व मध्य भारत के प्रदेशों में फैल जाती हैं। इसके पश्चात बंगाल की खाड़ी वाली पवन और अरब सागर वाली पवन पुनः एक धारा में सम्मिलित हो जाती हैं। पश्चिमी उत्तर प्रदेश, हरियाणा, पंजाब, पूर्वी राजस्थान आदि बचे हुए प्रदेश 1 जुलाई तक बारिश की पहली बौछार अनुभव करते हैं। उपमहाद्वीप के काफी भीतर स्थित दिल्ली जैसे किसी स्थान पर मानसून का आगमन कौतूहल पैदा करने वाला विषय होता है। कभी-कभी दिल्लीमें होने वाली पहलीबारिशपूर्वी दिशा से आती है और कभी बंगाल की खाड़ी के ऊपर से बहने वाली धारा का अंग बनकर दक्षिण दिशा से आती है। मध्य जुलाई तक मानसून कश्मीर और देश के अन्य बचे हुए भागों में भी फैल जाता है। परन्तु एक शिथिल धारा के रूप में ही, क्योंकि तब तक उसकी सारी शक्ति और नमी खत्म हो चुकी होती है।

मौसम के अनुसार वर्षा का वितरण

वर्षा का मौसम

समयावधि

वर्षा काप्रतिशत (लगभग)

दक्षिणी-पश्चिमी मानसून

जून से सितम्बर तक

73.7

परवर्ती मानसून

अक्टूबर से दिसम्बर

13.3

शीत ऋतु अथवा

जनवरी - फरवरी

2.6

उत्तरी पश्चिमी मानसून

पूर्व-मानसून

मार्च से मई

10.0

अधिक वर्षा वाले क्षेत्र

पश्चिमी घाट पर्वत का पश्चिमी तटीय भाग, हिमालय पर्वतमाला की दक्षिणावर्ती तलहटी में सम्मिलित राज्य- असम, अरुणाचल प्रदेश, मेघालय, सिक्किम, पश्चिम बंगाल का उत्तरी भाग, पश्चिमी तट के कोंकण, मालाबार तट (केरल), दक्षिणी किनारा, मणिपुर एवं मेघालय इत्यादि सम्मिलित हैं। यहाँ वार्षिक वर्षा की मात्र 200 सेमी- से अधिक होती है। विश्व की सर्वाधिक वर्षा वाले स्थान मासिनराम तथा चेरापूंजी मेघालय में ही स्थित हैं।