देवदासी प्रथा का कारण

  1. गरीबीः दक्षिण भारत में लड़की का जन्म लेना एक अभिशाप माना जाना, उन्हें एक बोझ के रूप में देखा जाना। अनेक माता-पिता इनसे छूटकारा पाने के लिए मंदिरों को सौंप देते हैं।
  2. अशिक्षाः दलित समुदाय अशिक्षा के कारण इस प्रथा का सर्वाधिक शिकार, शुरुआती अवस्था में ही संस्थानिक शोषण का शिकार बन जाना
  3. धार्मिक विश्वासः आज भी लोगों द्वारा यह विश्वास किया जाना कि वे लड़कियों को देवी-देवताओं के लिए समर्पित करेंगे तो उनके परिवार पर देवताओं की कृपा बनी रहेंगी।
  4. सामाजिक दबावः वर्तमान में अधिकांश देवदासी समाज के निम्न वर्ग से हैं। कुछ परिवार यह विश्वास करते हैं कि ऐसा करने से उनके सामाजिक स्तर में सुधार होगा।
  5. कानून की विफलताः राज्य सरकारों द्वारा देवदासी प्रथा पर रोक लगाने वाले कानूनों का उचित क्रियान्वयन न होना। लड़कियों के पुनर्वास के लिए जारी धन का उचित उपयोग न होना।

धार्मिक आस्था की आड़ में यौन शोषण

लोगों का यह विश्वास होना कि मंदिर में देवदासी के साथ प्रणय क्रीड़ा करने से गांव पर कोई विपत्ति नहीं आती।

कर्नाटक के बेलगाम जिले के सौदती स्थित यल्लमा देवी के मंदिर में एक मेला लगता है जिसे ‘माघ पूर्णिमा’ या ‘रंडी पूर्णिमा' कहा जाता है। उस दिन लाखों की संख्या में भक्तजन पहुंचकर आदिवासी लड़कियों के शरीर के साथ सरेआम छेड़छाड़ करते हैं तथा काम पिपासा बुझाते हैं। 1990 में किए गए एक सर्वेक्षण के अनुसार 45 प्रतिशत देवदासियां महानगरों में वेश्यावृत्ति में संलग्न मिलीं। अनेक देवदासियों को मुंबई, कोलकाता तथा देश के अन्य शहरों में लाया जाता है तथा वेश्यालयों में काम करने के लिए छोड़ दिया जाता है।