वर्ल्ड इम्प्लॉयमेंट एंड सोशल आउटलुक ट्रेंड्स

अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन (ILO) की नवीनतम रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 2018 में भारत की बेरोजगारी दर 3.5% (संशोधित अनुमान) अनुमानित है जबकि 2018 में बेरोजगार लोगों की संख्या में 18.6 मिलियन की बढ़ोत्तरी का अनुमान है। वैश्विक स्तर पर यह दर 5.5% अनुमानित है।

बेरोजगारी अवलोकन

बेरोजगारी श्रम की मांग और उसकी पूर्ति के बीच उपजे असंतुलन का फलन है। आर्थिक मंदी के दौरान इस तरह की स्थिति प्रायः देखने में आती है।

भारत में ग्रामीण क्षेत्र में प्रच्छन्न एवं मौसमी बेरोजगारी पाई जाती है-

  • प्रच्छन्न या छिपी हुई बेरोजगारी वह स्थिति है जिसमें वास्तविक जरूरत की तुलना में अधिक व्यक्ति किसी उत्पादन कार्य में लगे हुए होते हैं। प्रच्छन्न बेरोजगारी कृषि क्षेत्र में पाई जाती है जिसकी सीमांत उत्पादकता शून्य होती है। कारण, लोगों की खेती में उपस्थिति अथवा अनुपस्थिति का उत्पादन पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता।
  • मौसमी बेरोजगारी वह स्थिति है जिसमें किसी विशेष मौसम में काम नहीं होने के फलस्वरूप श्रमिकों को रोजगार नहीं मिलता जबकि शहरी क्षेत्र में औद्योगिक एवं शिक्षित बेरोजगारी देखने को मिलती है।

बेरोजगारी के सामान्य प्रकार

  • चक्रीय बेरोजगारी: चक्रीय बेरोजगारी वह बेरोजगारी है जो अर्थव्यवस्था में चक्रीय उतार-चढ़ाव के कारण होती है। यह व्यापार चक्र के मंदी या अधोमुखी चरण के दौरान उस समय होती है जबकि आय तथा उत्पादन में काफी अधिक गिरावट व्यापक बेरोजगारी का कारण बनती है।
  • घर्षणात्मक बेरोजगारी: घर्षणात्मक बेरोजगारी वह बेरोजगारी है जो पूर्ण रोजगार की स्थिति में भी बनी रहती है।
  • संरचनात्मक बेरोजगारी: संरचनात्मक या तकनीकी मूलक बेरोजगारी वह बेरोजगारी है जो किसी औद्योगिक संगठन की आर्थिक संरचना या उत्पादन की तकनीकों में परिवर्तन के कारण उत्पन्न होती है। भारत में ‘संरचनात्मक बेरोजगारी’ पाई जाती है।
  • ऐच्छिक बेरोजगारी: से अभिप्राय उस स्थिति से है जिसमें मजदूरी की वर्तमान दर पर एक श्रमिक रोजगार उपलब्ध होने पर भी काम करने के लिए तैयार नहीं होता।
  • अनैच्छिक बेरोजगारी: वह स्थिति होती है जिसमें लोग काम करने के योग्य होते हैं और प्रचलित मजदूरी पर काम करने के लिए तैयार होते हैं, लेकिन उन्हें काम नहीं मिलता। इस तरह की बेरोजगारी समग्र मांग में कमी के कारण उत्पन्न होती है और समग्र मांग में अभिवृद्धि के साथ समाप्त हो जाती है।

मनरेगा

2 फरवरी, 2006 से प्रारंभ महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी कानून (मनरेगा) 2008-09 से देश के सभी जिलों में लागू है। यह योजना विश्व की ऐसी पहली योजना है जिसके अन्तर्गत ग्रामीण क्षेत्र के अकुशल श्रमिकों को रोजगार की गारंटी दी जाती है।

  • मनरेगा के तहत गरीबी रेखा से नीचे परिवार के एक सदस्य को एक वित्त वर्ष में कम से कम 100 दिनों का गारंटीशुदा रोजगार उपलब्ध कराए जाने का प्रावधान है। मनरेगा के निरीक्षण के लिए ग्रामीण विकास मंत्रालय नोडल एजेंसी है। इसमें केन्द्र और राज्यों की हिस्सेदारी क्रमशः 90:10 है। योजना में महिलाओं की श्रम भागीदारी 33 प्रतिशत (1/3) सुनिश्चित की गई है।
  • योजना का प्राथमिक उद्देश्य वेतन रोजगार को बढ़ाना है। यह कार्य ऐसे कार्यों के माध्यम से किया जाना है, जो प्राकृतिक संसाधन प्रबंधन के सुदृढ़ीकरण पर ध्यान केन्द्रित करते हुए सूखा, वनों की कटाई और मृदाक्षरण आदि गरीबी के मूल कारणों को दूर करे और इस प्रकार सतत विकास को प्रोत्साहन दे। रोजगार गारंटी की यह व्यवस्था कई अन्य उद्देश्यों की भी पूर्ति करती है।
  • पंचायती राज संस्थाओं के पचास वर्ष पूरे होने के अवसर पर 2 अक्टूबर 2009 को प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने महत्वाकांक्षी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना का नाम बदलकर ‘महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना’ करने की घोषणा की।
  • उल्लेखनीय है कि मनरेगा से सर्वाधिक लाभ पाने वाली जनसंख्या तमिलनाडु में है। वर्तमान केंद्र सरकार ने सूखा प्रभावित क्षेत्रों के लिए 150 दिन रोजगार उपलब्ध कराने की घोषणा की है।

राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन

ग्रामीण विकास मंत्रालय का उद्देश्य ग्रामीण गरीब परिवारों को देश की मुख्यधारा से जोड़ना और विभिन्न कार्यक्रमों के जरिए उनकी गरीबी दूर करना है।

  • इसी बात को ध्यान में रखते हुए मंत्रालय ने 3 जून, 2011 को आजीविका-राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन (National Rural Livelihoods Mission-NRLM) की शुरुआत की थी। उल्लेखनीय है कि कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी द्वारा राजस्थान के बांसवाड़ा जिले से इस मिशन की शुरुआत की गयी थी।
  • एनआरएलएम का मुख्य उद्देश्य गरीब ग्रामीणों को सक्षम और प्रभावशाली संस्थागत मंच प्रदान कर उनकी आजीविका में निरंतर वृद्धि करना, वित्तीय सेवाओं तक उनकी बेहतर और सरल तरीके से पहुंच बनाना और उनकी पारिवारिक आय को बढ़ाना है। इनके लिए मंत्रालय को विश्व बैंक से आर्थिक सहायता मिलती है।