103वां संविधान संशोधान अधिनियम, 2019

12 जनवरी, 2019 को राष्ट्रपति ने संविधान संशोधन (103वां संशोधन) अधिनियम, 2019 (124वां संविधान संशोधन विधेयक) को स्वीकृति प्रदान कर दी है। यह अधिनियम आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों (Reservation for Economically Wekaer Sections - EWS) को सरकारी नौकरियों तथा शैक्षणिक संस्थानों में 10 प्रतिशत आरक्षण प्रदान करता है।

  • यह अधिनियम सरकार को फ्आर्थिक रूप से कमजोर वर्गोंय् (EWS) की प्रगति हेतु विशिष्टि उपाय (आरक्षण तक सीमित नहीं) करने हेतु सशक्त करने के लिए अनुच्छेद 15 को संशोधित करता है।
  • अनुच्छेद 15 में नागरिकों को समानता के अधिकार का उल्लेख किया गया है। अनुच्छेद 15(1) के अनुसार राज्य किसी के विरुद्ध केवल धर्म, मूलवंश, जाति, लिंग, जन्म स्थान या इनमें से किसी के आधार पर कोई विभेद नहीं करेगा। अनुच्छेद 15 के अंतर्गत ही अनुच्छेद 15(4) और 15(5) में सामाजिक और शैक्षिणिक दृष्टि से पिछड़े वर्गो या अनुसूचित जाति और जनजाति के लिए विशेष उपबंध की व्यवस्था की गई है। इस अधिनियम के तहत इस प्रकार के वर्गोर्ं के शैक्षणिक संस्थानों में प्रवेश हेतु 10 प्रतिशत सीटों को आरक्षित किया जा सकता है; यह आरक्षण अल्पसंख्यक शैक्षणिक संस्थानों पर लागू नहीं होगा।
  • यह संशोधन अनुच्छेद 15(6) और 16(6) को अंतःस्थापित करता है, जो सरकार को नागरिकों के ष्टआर्थिक रूप से कमजोर वर्गोंष्ट हेतु सभी पदों में 10 प्रतिशत आरक्षण करने हेतु सक्षम बनाता है। EWS को 10 प्रतिशत तक का आरक्षण अनसुसूचित जाति (SC), अनुसूचित जनजाति (ST) और अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) हेतु 50 प्रतिशत के वर्तमान आरक्षण सीमा के अतिरिक्त प्रदान किया जाएगा।
  • अनुच्छेद 16 सार्वजनिक रोजगार के संबंध में अवसर की समानता की गारंटी देता है और राज्य को किसी आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों का पहचान केंद्र सरकार द्वारा पारिवारिक आय एवं आर्थिक पिछड़ेपन के अन्य संकेतकों के आधार पर किया जाएगा।
  • यह प्रथम अवसर है, जब किसी आर्थिक वर्ग को संवैधानिक रूप से कमजोर वर्ग के रूप में मान्यता दी गई तथा यह वर्ग सकारात्मक कार्रवाई कार्यक्रम के आधार का निर्माण करेगा। यह सकारात्मक कार्रवाई के निर्धारण हेतु पारंपरिक रूप से प्रयुक्त जाति संबंधी केंद्रीयता के प्रस्थान को इंगित करता है।

इंदिरा साहनी बनाम सर्वोच्च न्यायालय

वर्ष 1992 के इंदिरा साहनी वाद में सर्वोच्च न्यायालय के नौ न्यायाधीशों की एक संवैधानिक बेंच ने इस विषय में विचार किया था कि क्या किसी पिछड़े वर्ग की पहचान मात्र आर्थिक मापदंड पर की जा सकती है अथवा नहीं? उस समय यह स्पष्ट रूप से आदेश दिया गया था कि किसी पिछड़े वर्ग का निर्धारण केवल आर्थिक मापदंड पर नहीं किया जा सकता और आर्थिक रूप से पिछड़े लोगों के लिए 10% आरक्षण की मांग से संबंधित एक प्रावधान को निरस्त कर दिया था।

  • सर्वोच्च न्यायालय ने यह भी स्पष्ट किया था कि इसके लिए आर्थिक मापदंड पर तभी विचार हो सकता है, जब संबंधित वर्ग के सामाजिक पिछड़ेपन पर भी विचार किया जाए।
  • इसी संवैधानिक बेंच ने यह भी कहा था कि यदि कोई असाधारण परिस्थिति नहो तो आरक्षण की ऊपरी सीमा 50% से अधिक नहीं होनी चाहिए।