संयुक्त राष्ट्र द्वारा अल्पसंख्यकों के लिए की गई घोषणा

इस घोषणा को 1992 में संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा अपनाया गया था। घोषणा का मुख्य उद्देश्य जाति, लिंग, भाषा या धर्म के आधार पर भेदभाव किए बिना सभी के लिए मानवा अधिकारों को प्रोत्साहित करना और मौलिक स्वतंत्रता को बढ़ावा देना है। यह जातीय, धार्मिक और भाषाई मतभेदों के आधार पर भेदभाव के उन्मूलन पर बल देता है।

घोषणा में अनेक अनुच्छेद हैं, जिनमें से महत्वपूर्ण निम्नलिखित हैंः

अनुच्छेद 1: राज्य अपने संबंधित क्षेत्रों के भीतर राष्ट्रीय या जातीय, सांस्कृतिक, धार्मिक और भाषाई अल्पसंख्यकों के अस्तित्व और पहचान की रक्षा करेंगे।

अनुच्छेद 2: अलग-अलग धर्म से संबंधित व्यक्ति को अपने धर्म का मानने का अधिकार है। उसे विभिन्न गतिविधियों में भाग लेने, अन्य धार्मिक अल्पसंख्यकों के साथ स्वतंत्र रूप से बातचीत करने से प्रतिबंधित नहीं किया जाना चाहिए।

अनुच्छेद 3: अल्पसंख्यकों से संबंधित व्यक्ति अपने अधिकारों का प्रयोग बिना किसी भेदभाव के कर सकते हैं।

अनुच्छेद 4: राज्यों अल्पसंख्यकों से संबंधित व्यक्तियों को उनकी संस्कृति, भाषा, धर्म, परंपराओं और रीति-रिवाजों को विकसित करने के लिए अनुकूल परिस्थितियों को बनाने के लिए उपाय करेगा।

अनुच्छेद 5: अल्पसंख्यकों से संबंधित व्यक्तियों के हितों की रक्षा के लिए राष्ट्रीय नीतियों और कार्यक्रमों की योजना बनाई जाएगी तथा उन्हें लागू किया जाएगा।

अनुच्छेद 6: राज्यों को अल्पसंख्यकों एवं अन्य समुदायों के बीच आपसी समझ और विश्वास को बढ़ावा देने के लिए सहयोग करना चाहिए।

अनुच्छेद 7: राज्यों को वर्तमान घोषणा में प्रदान किये गए अधिकारों को बढ़ावा देने के लिए सहयोग करना चाहिए।

  • यह समझौता (convention) के बजाय सिर्फ एक घोषणा है; अतः यह हस्ताक्षरकर्त्ता देशों पर कानूनी रूप से बाध्यकारी नहीं है।