भारत की रक्षा उत्पादन नीति (DPP)

स्वदेशी रक्षा उत्पादन तकनीक अथवा रक्षा क्षेत्र से जुड़ा औद्योगिक आधार किसी भी देश के दीर्घकालिक सामरिक नियोजन का अभिन्न अवयव है। आयात पर काफी अधिक निर्भरता न केवल सामरिक नीति एवं इस क्षेत्र की सुरक्षा में भारत द्वारा निभाई जाने वाली भूमिका के नजरिए से अत्यंत नुकसानदेह है, बल्कि विकास एवं रोजगार सृजन की संभावनाओं के मद्देनजर आर्थिक दृष्टि से भी चिंता का विषय है। सही अर्थों में सैन्य शक्ति में आधुनिक समृद्धि सुपर पावर के रूप में किसी भी राष्ट्र के उत्थान की कुंजी है।

रक्षा उत्पाद नीति का मुख्य लक्ष्य

वर्तमान में लघु एवं माध्यम उद्यमों (Small and micro interprises SMEs) प्रोत्साहन देना तथा भारत के अनुसंधान के आधुनिक मापदंडों को प्राप्त करना।

  • रक्षा खरीद प्रक्रिया में खरीदो और बनाओ (Buy and make) तथा ‘बाय (ग्लोबल) के श्रेणी से ‘बाय’ इंडियन एंड मेक (इंडियन) श्रेणी को प्रमुखता दिया जा रहा है।
  • प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) के ऑटोमेटिक रूट से 49 प्रतिशत तक विदेशी निवेश की अनुमति एवं 49 प्रतिशत से अधिक निवेश पर गवर्नमेंट रूट से अनुमति।
  • रक्षा औधोगिक लाइसेंस की आरंभिक वैधता को तीन वर्ष से बढ़ाकर 15 वर्ष कर दिया गया।
  • अधिकतर रक्षा उपकरण, पुर्जों उप-तंत्रों, रक्षा उत्पादों के औद्योगिक लाइसेंस की अनिवार्यता श्रेणी से बाहर कर दिया गया।

भारत की रक्षा प्रौद्योगिकी में वर्तमान स्थिति

भारत की रक्षा प्रद्यौगिकी वैश्विक शक्तियों के समान उच्चतम स्थिति पर पहुंच गई है। भारत विश्व के उन चार देशों में से एक है, जिनके पास बहुस्तरीय सामरिक क्षमता है, उन पांच देशों में से एक देश है, जिसके पास अपना बीएमडी कार्यक्रम है, उन 6 देशों में से एक देश है, जिसके पास अपना मुख्य युद्धक टैंक है और उन 7 देशों में से एक देश है, जिसके पास अपने चौथी श्रैणी के युद्धक विमान हैं।

  • रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन-डीआरडीओ देश का एक महत्वपूर्ण संगठन है, जिसका उदेश्य देश की रक्षा सेवाओं के लिए आधुनिक प्रौद्योगिकी में अनुसंधान करना, ताकि देश की सामरिक सुरक्षा को सुनिश्चित किया जा सके। हाल के वर्षों में डीआरडीओ ने आत्म-निर्भरता पर ज्यादा ध्यान दिया है। उससे रक्षा सेवाओं के लिए आधुनिक प्रणालियां और महत्वपूर्ण प्रौद्योगिकियां विकसित हुई हैं और आत्म-निर्भरता का सूचकांक 30 प्रतिशत से बढ़कर 55 प्रतिशत तक पहुंच गया है।
  • सामरिक प्रणालियों में दक्ष डीआरडीओ ने कई उपलब्धियां हासिल की हैं और लम्बी दूरी तक मार करने वाली सामरिक मिसाइल अग्नि-5 के शानदार प्रक्षेपण से संगठन ने नई ऊंचाइयों को छुआ है। अग्नि-1, अग्नि-2, पृथ्वी-2 और अग्नि-3 ने देश की सामरिक शक्ति को मजबूत बनाने में योगदान दिया, जबकि अग्नि-5 को सशस्त्र सेनाओं के अस्त्रें में शामिल करने की तैयारियां की जा रही हैं।
  • 70 से अधिक प्रमुख मिसाइल प्रणालियों का प्रक्षेपण, इस महत्वपूर्ण क्षेत्र में डीआरडीओ की शक्ति और दक्षता को दर्शाता है।
  • कई प्रकार के सफल परीक्षणों और नई प्रौद्योगिकियों के इस्तेमाल के बाद जलगत प्रणाली बीओ-5 के निर्माण की मंजूरी मिलना संगठन की एक और बड़ी उपलब्धि है।
  • भारत की पहली स्वदेशी परमाणु शक्ति युक्त पनडुब्बी-आईएनएस अरिहन्त समुद्री परीक्षणों के लिए तैयार है।
  • लम्बी दूरी की क्रूज मिसाइल निर्भय अपनी प्रारंभिक उड़ान भर चुकी है। सफल इंटरसेप्शन परीक्षणों के बाद विकसित की गई दो-स्तरीय बैलिस्टिक मिसाइल रक्षा प्रणाली की विश्वसनीयता प्रदर्शित हो गई है। कई लक्ष्यों को साधने वाली मध्यम दूरी की वायु रक्षा प्रणाली से विकसित आकाश एक और शानदार उपलब्धि है।
  • सर्वश्रेष्ठ सुपरसोनिक क्रूज मिसाइल ब्राह्मोस, जिसका प्रक्षेपण थल, वायु, समुद्र और समुद्र के अंदर के प्लेटफार्मों से तेज गति के साथ हमले के लिए किया जा सकता है, आधुनिक समय का एक और महत्वपूर्ण हथियार है। इसका ब्लॉक-2 डिजाइन लक्ष्य की पहचान कर सकता है और ब्लॉक-3 डिजाइन सुपरसोनिक गति के साथ गहराई तक गोता लगाने की क्षमता रखता है, जिसके कारण यह एक अत्यंत मारक क्षमता वाला हथियार बन गया है।
  • जमीन से जमीन तक मार करने वाली नई प्रहार मिसाइल 150 किलोमीटर से भी अधिक दूरी तक गोले फेंक सकती है और एक तरह से पिनाका रॉकेट और पृथ्वी मिसाइल के अंतर को पूरा करती है।
  • देश में निर्मित एक्टिव ऐरे रेडार एंटिना से युक्त एईडब्ल्यू एंड सीएस प्लेटफॉर्म डीआरडीओ की एक अन्य महत्वपूर्ण उपलब्धि है। इसके व्यापक उड़ान परीक्षण किये जा रहे हैं।
  • मिग-27, जगुआर और सुखोई-30 विमानों की उड़ान क्षमता में सुधार से इनकी लडाकू क्षमताओं में वृद्धि हुई है।
  • देश में पहली बार डिजाइन और निर्मित किये गये विमान इंजन कावेरी की सफल उडानों के बाद सफल परीक्षण चल रहे हैं। यूएवी के लिए वेंकल रोटरी इंजन को सफल रूप से विकसित करने के बाद यूएवी निशांत में इसका प्रयोग एक और बड़ी उपलब्धि है।
  • मुख्य युद्धक अर्जुन मार्क-2 में लगभग 70 नये फीचर हैं और इसे रिकॉर्ड समय में विकसित किया गया है।
  • पिनाका रॉकेट लांचर को और विकसित करके लंबी दूरी के पिनाका-2 का निर्माण किया गया है, जिसके परीक्षण चल रहे हैं।
  • एक नयी पुल निर्माण प्रणाली का विकास किया गया है, जिससे 46 मीटर लम्बा पुल तैयार किया जा सकता है और जो 70 टन के भार को झेल सकता है। भारतीय नौ-सेना की आवश्यकता के लिए बहुत उच्च गुणवत्ता वाले सेंसर USHUS, NAGAN और HUMSANG को नौ-सेना के जहाजों में इस्तेमाल के लिए विकसित किया गया है। भारी वजन वाले टॉरपिडो वरुणास्त्र के समुद्र में व्यापक परीक्षण हो चुके हैं और इसे अस्त्र प्रणालियों में शामिल किया जाना है।
  • रडार और इलैक्ट्रॉनिक युद्ध प्रणालियों के लिए डब्ल्यूएलआर, 3डी टीसीआर, भारानी और अश्लेषा जैसे अत्यंत आधुनिक किस्म की रडार प्रणालियां विकसित की गई हैं।
  • डीआरडीओ ने रक्षा सेनाओं की आवश्यकताओं के लिए विशेष सामग्री के विकास में अग्रणी भूमिका निभाई है। हाल की उपलब्धियों में एमआई 17 हैलीकॉप्टर के लिए हल्के हथियारों का निर्माण और भारतीय नौ-सेना के लिए 30 हजार टन के डीएमआर स्टील का उत्पादन शामिल हैं।
  • आज के युद्ध परिदृश्य की आवश्यकताओं को देखते हुए डीआरडीओ ने मानव रहित युद्धक मशीनें विकसित करनी शुरू की हैं, जो बहुत महत्वपूर्ण हैं। इनमें दूर से संचालित यान दक्ष बम गिराने की दिशा में एक महत्वपूर्ण उपलब्धि है। यूएवी रूस्तम-1 की कई सफल उड़ानें हो चुकी हैं। कई लघु और सूक्ष्म यूएवी विकसित किये गये हैं।
  • नौ-सेना के सब-मरीन एसकेप सूट के लिए, पैराशूटधारियों के लिए उतरने की विशेष प्रणाली के लिए और भारतीय वायु सेना के हल्के हैलीकॉप्टर की ऑक्सीजन प्रणाली के लिए डीआरडीओ को बडे पैमाने पर ऑर्डर मिले हैं। डीआरडीओ ने ऑन बोर्ड ऑक्सजीन जेनरेशन सिस्टम का भी विकास किया है।
  • सैनिकों की सहायता के लिए सौर ऊर्जा के प्रयोग वाले मॉडड्ढूलर ग्रीन शेल्टर का विकास भी एक महत्वपूर्ण उपलब्धि है।
  • डीआरडीओ ने सामाजिक क्षेत्र के लिए भी पर्यावरण हितैषी बॉयो डाइजेस्टर तैयार किये है जो अत्यंत ठंडे क्षेत्रों में मनुष्यों के शौच का निपटान करते हैं। इन्हें रेल डिब्बों के लिए और लक्षद्वीप समूह के लिए भी विकसित किया गया है। दो लाख से अधिक ग्राम पंचायतों के लिए जैव-शौचालय विकसित करने के लिए भी इस प्रौद्योगिकी का इस्तेमाल किया जा रहा है।
  • मलबे के अंदर दबे हुए या बोर-वेल में गिरे पीड़ितों की पहचान के लिए सोनार टैक्नोलॉजी से लाइफ डिटेक्टर संजीवनी का विकास किया गया है। जल क्षेत्रों के नीचे की सतह कितनी सख्त है, इसकी पहचान के लिए तरंगिणी उपकरण का विकास किया गया है।
  • इन सब प्रयासों का एक ही उद्देश्य है कि रक्षा प्रणालियों और प्रौद्योगिकियों के डिजाइन विकास और उत्पादन में भारत को एक विश्व स्तरीय केंद्र के रूप में विकसित किया जाये, ताकि इसे अन्य देशों पर निर्भर न रहना पड़े।
  • रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (डीआरडीओ) ‘डीआरडीओ- एकेडमिया इंटरैक्शन फॉर इंप्रूवमेंट इन फ्यूचर टेक्नोलॉजीज’ नामक कार्यशाला का आयोजन किया। कार्यशाला का उद्देश्य देश में उपलब्ध अकादमिक विशेषज्ञता का लाभ उठाना है, देश में उपलब्ध शोधकर्ताओं और प्रौद्योगिकी विशेषज्ञों को उन्नत रक्षा उत्पादों के डिजाइन और विकास में योगदान के तरीकों पर भी चर्चा की गई।