लैंसेट रिपोर्ट 2018

लैंसेट द्वारा 2018 में जारी की गई एक रिपोर्ट के अनुसार हृदय से संबंधित बीमारियों में इस्केमिक डिसीज और स्ट्रोक के मामले ज्यादा होते हैं। हार्ट अटैक और स्ट्रोक भारत और ईरान में मृत्यु के सबसे आम कारण है।

  • विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार, हृदय रोग के कारण विश्व में होने वाली मौतों में तीन-चौथाई निम्न व मध्यम आय वाले देशों में होती हैं। इन देशों में भारत का भी स्थान आता है।
  • इस्केमिक डिसीज में धमनी में वसा जम जाने की वजह से हृदय को पर्याप्त रक्त नहीं मिल पाता है। कुल हृदय रोग के मामलों में 61.4 प्रतिशत इस्केमिक डिसीज के तो 24.9 प्रतिशत स्ट्रोक के होते हैं।
  • 2018 में किए गए अध्ययन के अनुसार 1990 में भारत में हृदय रोग के 2.57 करोड़ मामले सामने आए और 13 लाख मौतें हुईं। 25 सालों में यह आंकड़े दोगुने हो गए।
  • 2016 में 5.45 करोड़ मामले सामने आए थे, जिनमें 28 लाख लोगों की जान गई थी। युवाओं में हार्ट अटैक के बढ़ते स्थिति गंभीर चिंता का विषय है। आज विश्व भर में लगभग 170 लाख लोग सालाना हृदय रोगों के शिकार हो रहे हैं। भारत में भी 1990 से 2016 के बीच हृदय रोगों के कारण मृत्युदर में 34% की वृद्धि हुई है।
  • अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान और मैक्स हॉस्पिटल द्वारा कराए गए एक संयुक्त अध्ययन के अनुसार हाइपरटेंशन, मोटपे और हृदय रोग काफी तेजी से भारत में बढ़ रहे हैं। यह रोग युवा वर्ग को भी काफी तेजी से प्रभावित कर रहे हैं।

जीवन शैली से संबंधित रोग

  • हृदय रोगः दिल की बीमारी से तात्पर्य ऐसी समस्या से है, जो दिल को प्रभावित करती है। दिल की बीमारी को कोरोनरी धमनी रोग (Coronary artery disesae) से जोड़कर देखना पूरी तरह से गलत है। बल्कि दिल की बीमारी में कई सारी समस्याएं होती हैं। दिल की बीमारी मुख्य रूप से 4 प्रकार की होती है, 1. कोरोनरी आर्टरी डिजीज- यह हृदय रोग का सामान्य प्रकार है, जिसे आम भाषा में कोरोनरी धमनी रोग के नाम से जाना जाता है। 2. दिल का दौरा (Heart Attack) पड़ना- यह सबसे जान-मानी बीमारी है, जिससे अधिकांश लोग पीड़ित होते हैं। 3. दिल का खराब (Heart Failure) होना-जैसा कि नाम से ही स्पष्ट है, यह ऐसी दिल की बीमारी है, जिसमें दिल सही तरह से काम करना बंद कर देता है। 4. दिल की धड़कनों का अनियमित रूप से चलना- कई बार दिल की धड़कने धीमे या फिर तेज गति से चलने लगती है, इसे भी दिल की बीमारी के रूप में परिभाषित किया जाता है।
  • मानसिक स्वास्थ्यः 18 वर्ष से अधिक आयु की देश की 10 प्रतिशत से अधिक जनसंख्या विभिन्न प्रकार की मानसिक बीमारियों से ग्रस्त हैं। ऐसी मानसिक बीमारियों का जीवनकाल प्रचलन 13 प्रतिशत से अधिक है। सामाजिक समर्थन में कमी, बदलते आहार और आर्थिक अस्थिरता मानसिक विकारों के मुख्य कारण हैं। चीनी का अधिक सेवन मानसिक बीमारी से भी जुड़ा हुआ है। 4.34 माइक्रोग्राम / घन मीटर के वातावरण में PM2.5 की वृद्धि अल्जाइमर के जोखिम को बढ़ा सकती है।
  • श्वसन संबंधी रोगः भारत में अनुमानित 22.2 मिलियन क्रॉनिक सीओपीडी (Chronic Obstructive Pulmonary Disesae - COPD) के रोगी और 2016 में लगभग 35 मिलियन क्रॉनिक अस्थमा के रोगी थे। वाहनों और उद्योग से वायु प्रदूषण के अलावा, ग्लोबल वार्मिंग से श्वसन स्वास्थ्य को भी खतरा बढ़ जाता है। ग्लोबल वार्मिंग ने पराग के मौसम की अवधि को बढ़ाया है और एलर्जी के समय, उत्पादन और वितरण को बदल दिया है।
  • कैंसरः भारत में 2020 तक हर साल 1.73 मिलियन से अधिक नए कैंसर के मामले दर्ज किए जाने की संभावना है। आमतौर पर घरेलू रसायनों और सौंदर्य प्रसाधनों में कैंसर पैदा करने वाले यौगिक होते हैं। यह अनुमान लगाया गया है कि 20 प्रतिशत तक कैंसर के मामलों को पर्यावरणीय विषाक्त पदार्थों के जोखिम से जोड़ा जा सकता है। तम्बाकू एवं अल्कोहल, वायु प्रदूषण और मांस से भरपूर तथा सब्जियों में कम आहार, इसके प्राथमिक कारण हैं।