एनबीएफ़सी के लिए तरलता मानदंड

भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) ने गैर-बैंकिंग वित्तीय फर्मों के ‘परिसंपत्ति-देयता प्रबंधन’ (Asset-Liability Management) को सुदृढ़ करने के उद्देश्य से इन फर्मों के तरलता प्रबंधन ढांचे (liquidity management framework) को सख्त कर दिया।

  • उल्लेखनीय है कि गैर बैंकिंग वित्तीय कम्पनियों (NBFC) द्वारा पिछले 1 वर्ष में व्यापक तरलता संकट (liquidity crisis) का सामना किया गया है।
  • भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) द्वारा 4 नवंबर, 2019 को जारी की गई अधिसूचना के अनुसार ‘गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों’ (NBFC) के लिए ‘तरलता कवरेज अनुपात’ (Liquidity Coverage Ratio - LCR) के मानदंड 1 दिसंबर, 2020 से प्रभावी होंगे।
  • आरबीआई के अनुसार 10,000 करोड़ रुपये और उससे अधिक की संपत्ति वाले एनबीएफसी (NBFC) को अपने तरलता कवरेज अनुपात (LCR) का न्यूनतम 50% ‘उच्च गुणवत्ता वाली तरल संपत्तियों’ (HQLA) के रूप में बनाए रखना होगा।
  • वहीं 5000-10,000 करोड़ रुपये तक की संपत्ति वाले एनबीएफसी को अपने एलसीआर का 30% रखना होगा। दिसंबर 2024 तक एलसीआर को बढ़ाकर 100% करना होगा।
  • ये परिवर्तन एनबीएफसी क्षेत्र द्वारा प्रस्तुत सुझावों के अनुरूप हैं, जिन्होंने एलसीआर मानदंडों में छूट मांगी थी।
  • आरबीआई ने संभावित तरलता तनावों की पहचान के लिए एनबीएफसी कंपनियों से ‘तरलता जोखिम निगरानी उपकरण’ अपनाने का भी निर्देश दिया है।
  • कई एनबीएफसी कम्पनियों द्वारा ऋण डिफॉल्ट होने के बाद जारी ये दिशानिर्देश एक मजबूत परिसंपत्ति देयता प्रबंधन (ALM) ढांचे की मांग करते हैं।

एसेट-लायबिलिटी मैनेजमेंट

परिसंपत्ति-देयता प्रबंधन (ALM) वित्तीय लेखांकन (financial accounting) में परिसंपत्तियों और देनदारियों के बीच बेमेल के कारण उत्पन्न वित्तीय जोखिमों (financial risks) के प्रबंधन की एक प्रक्रिया है।

अन्य शब्दों में, किसी फर्म के समय पर देयता का भुगतान नहीं करने के जोखिम को कम करने के लिए परिसंपत्तियों और नकदी प्रवाह के उपयोग के प्रबंधन की प्रक्रिया परिसंपत्ति-देयता प्रबंधन या एसेट-लायबिलिटी मैनेजमेंट कहलाती है। अच्छी तरह से प्रबंधित परिसंपत्ति व देयताएं व्यवसाय के मुनाफे को बढ़ाती हैं।

तरलता कवरेज अनुपात

  • तरलता कवरेज अनुपात (LCR) वित्तीय संस्थानों द्वारा रखी गई ‘उच्च-गुणवत्ता वाली तरल संपत्तियों’ (High Quality Liquid Assets) के अनुपात को संदर्भित करता है, ताकि अल्पकालिक दायित्वों को पूरा करने की उनकी निरंतर क्षमता सुनिश्चित हो सके।
  • यह एक तरह से सामान्य तनाव परीक्षण है जिसका उद्देश्य बाजार-व्यापी झटकों का अनुमान लगाना तथा यह सुनिश्चित करना है कि वित्तीय संस्थानों के पास किसी ‘अल्पकालिक तरलता व्यवधान’ (short-term liquidity disruptions) से निपटने के लिए उपयुक्त पूंजी संरक्षण हो।
  • 30 दिनों की अवधि में किसी वित्तीय संस्था की उच्च-गुणवत्ता वाली तरल संपत्तियों को कुल शुद्ध नकदी प्रवाह द्वारा विभाजित करके LCR की गणना की जाती है। उच्च गुणवत्ता वाली तरल संपत्तियों में केवल वे ही संपत्तियां शामिल होती हैं जिन्हें उच्च क्षमता के साथ आसानी से और जल्दी से नकदी में परिवर्तित किया जा सकता है।