भारत का माइक्रोबायोम प्रोजेक्ट

नवंबर, 2018 में पुणे ने माइक्रोबायोम रिसर्च पर एक अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन माइक्रोबायोम रिसर्च के मामले में भारत अभी आरंभिक स्थिति में है। माइक्रोबायोम प्रोजेक्ट जो पूरे देश में मानव माइक्रोबायोम का अध्ययन और मानचित्र तैयार इस प्रोजेक्ट में अलग-अलग भौगोलिक क्षेत्रों के विभिन्न जातीय समूहों के 20,000 भारतीयों के लार (Saliva), स्टूल (Stool) और त्वचा कोशिकाओं का संग्रह किया जाएगा।

मानव माइक्रोबायोम मानव शरीर में विभिन्न प्रकार के सूक्ष्मजीव होते हैं, जिनमें मुख्य रूप से जीवाणु हैं। इन्हें ही ‘‘मानव माइक्रोबायोम’’ कहा जाता है। ये जीव होस्ट फिजियोलॉजी (मेजबान शरीर विज्ञान) के कई पहलुओं में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। ये जीव जटिल कार्बोहाइड्रेट और वसा को आवश्यक विटामिन में परिवर्तित करने के चयापचय से लेकर इम्यून सिस्टम को बनाए रखने तथा पैथोजेन्स (Pathogens) के विरुद्ध रक्षा की पहली पंक्ति के रूप में कार्य करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।

माइक्रोबायोम प्रोजेक्ट का महत्व

‘नेशनल सेंटर फॉर सेल साइंस’ (The National Centre for Cell Science) के वैज्ञानिकों ने स्वस्थ भारतीय व्यक्तियों के आंत माइक्रोबायोटा पर मेटा-विश्लेषण किया है और इसकी तुलना दुनिया के अन्य हिस्सों के लोगों से की है। इस विश्लेषण से पता चला है कि भारतीयों में एक अलग आंत माइक्रोबियल मौजूद हैं। यही कारण है कि भारतीय माइक्रोबायोम पर गहन शोध की आवश्यकता है।

  • भारत में बड़ी संख्या में आदिवासी आबादी मौजूद हैं, जो आधुनिक आहार संबंधी आदत और जीवनशैली से अप्रभावित हैं। जीवनशैली से संबंधित विकारों जैसे मोटापा और मधुमेह का प्रसार दुनिया भर में गैर-जनजातीय (शहरीकृत) आबादी की तुलना में आदिवासी आबादी में काफी कम है।
  • वैज्ञानिकों का कहना है कि जनजातीय आबादी पर एक अध्ययन आंत माइक्रोबायोटा और होस्ट के बीच पारस्परिक आश्रय का सिद्धांत (Mutualism) के विकास के ज्ञान को समझने में मदद करेगा।