राष्ट्रीय गंगा परिषद

दिसंबर, 2019 को उत्तर प्रदेश के कानपुर में राष्ट्रीय गंगा परिषद् की पहली बैठक का आयोजन प्रधानमंत्री की अध्यक्षता में किया गया। इस बैठक में विभिन्न केंद्रीय मंत्रियों और उत्तर प्रदेश एवं उत्तराखंड के मुख्यमंत्री, बिहार के उपमुख्यमंत्री, नीति आयोग के उपाध्यक्ष और अन्य वरिष्ठ अधिकारियों ने भाग लिया। बैठक में ‘स्वच्छता’, ‘अविरलता’ और ‘निर्मलता’ पर ध्यान केंद्रित करते हुए गंगा नदी की स्वच्छता से जुड़े विभिन्न पहलुओं पर कार्यों की प्रगति की समीक्षा की गई और गंगा के कायाकल्प के लिये ‘सहयोगात्मक संघवाद’ पर जोर दिया गया।

  • बैठक में ‘नमामि गंगे कार्यक्रम’ के अंतर्गत किये गए कार्यों जैसे- प्रदूषण उन्मूलन, गंगा का संरक्षण और कायाकल्प, कागज मीलों की रद्दी को पूर्ण रूप से समाप्त करने तथा चमड़े के कारखानों से होने वाले प्रदूषण में कमी लाने आदि लक्ष्यों को प्राप्त करने के उद्देश्य से किये गए विभिन्न सरकारी प्रयासों पर चर्चा की गई।
  • बैठक में प्रधानमंत्री ने गंगा से संबंधित आर्थिक गतिविधियों पर ध्यान केंद्रित करने के साथ ‘नमामि गंगे’ को ‘अर्थ गंगा’ जैसे एक सतत् विकास मॉडल में परिवर्तित करने का आग्रह किया।
  • अर्थ गंगा के अंतर्गत किसानों को टिकाऊ कृषि पद्धतियों को अपनाने के लिये प्रोत्साहित किया जाएगा, जिसमें शून्य बजट खेती, फलदार वृक्ष लगाना और गंगा के किनारों पर पौधा नर्सरी का निर्माण शामिल है। इन कार्यों के लिये महिला स्व-सहायता समूहों और पूर्व सैनिक संगठनों को प्राथमिकता दी जा सकती है।
  • पारिस्थितिक पर्यटन और गंगा वन्यजीव संरक्षण एवं क्रूज पर्यटन आदि के प्रोत्साहन से होने वाली आय को गंगा स्वच्छता के लिये आय का स्थायी स्रोत बनाने का प्रयास किया जाएगा।

राष्ट्रीय गंगा परिषद

राष्ट्रीय गंगा परिषद की स्थापना पर्यावरण संरक्षण अधिनियम, 1986 के तहत 2016 में की गई थी। गंगा उसकी सहायक नदियों सहित गंगा बेसिन के प्रदूषण निवारण और कायाकल्प के अधीक्षण की समग्र जिम्मेदारी इसे दी गई है। राष्ट्रीय गंगा परिषद की अध्यक्षता प्रधानमंत्री द्वारा की जाती है।

  • नेशनल मिशन फॉर क्लीन गंगा (छडब्ळ) राष्ट्रीय गंगा परिषद के कार्यान्वयन शाखा के रूप में कार्य करता है। एनएमसीजी की स्थापना वर्ष 2011 में एक पंजीकृत सोसायटी के रूप में की गई थी।

गंगा आमंत्रण अभियान

केंद्र सरकार के जल शक्ति मंत्रालय द्वारा अक्टूबर, 2019 को ‘गंगा आमंत्रण अभियान’ शुरू किया गया। यह महीने भर चलने वाला राफ्रिटंग और नौका चालन अभियान है, जिसमें उत्तराखंड के देवप्रयाग से पश्चिम बंगाल में गंगा सागर तक करीब 2,500 किलोमीटर की दूरी तय की जाएगी।

परियोजना का महत्व

हितधारकों के साथ जुड़ने के लिएः सरकार ने पिछले पांच वर्षों के दौरान गंगा के प्रवाह और स्वच्छता को बहाल करने के लिए कई पहल की है। इसने सकारात्मक परिणाम दिखाने शुरू कर दिए हैं, लेकिन ऐसे किसी भी आंदोलन को स्थिरता की आवश्यकता तब तक प्राप्त नहीं हो सकती, जब तक कि यह एक सार्वजनिक आंदोलन न बन जाए। प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से गंगा से जुड़े विभिन्न हितधारकों को जागरुक करने के उद्देश्य से इस अभियान का आयोजन किया जा रहा है। जन जागरुकता अभियान के दौरान टीम उन स्थानों पर जन जागरुकता अभियान चलाएंगे, जहां वे रुकेंगे। वे नदी के किनारे बसे गांवों, शहरों के छात्रों के साथ सामूहिक सफाई अभियान चलाएंगे और नदी संरक्षण का संदेश देंगे।

परियोजना की विशेषताएं

जल शत्तिफ़ मंत्री के अनुसार, स्वच्छ गंगा राष्ट्रीय मिशन द्वारा पूरी गंगा नदी में इस तरह का यह पहला प्रयास है। यह साहसिक खेल गतिविधि के माध्यम से चलाया गया सबसे बड़ा सामाजिक अभियान है; जिसके अंतर्गत गंगा पुनर्जीवन और जल संरक्षण का संदेश दिया जाएगा।

  • अभियान में गंगा के समक्ष उत्पन्न पारिस्थितिक चुनौतियों की तरफ ध्यान आकर्षित किया जाएगा। इसमें गंगा नदी घाटी के पांच राज्यों जैसे उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश, झारखंड, बिहार और पश्चिम बंगाल को शामिल किया जाएगा। इस अभियान का ठहराव ऋषिकेश, हरिद्वार, कानपुर, इलाहाबाद, वाराणसी, पटना, सोनपुर और कोलकाता में होगा।
  • अभियान द्वारा गंगा के सामने आने वाली पारिस्थितिक चुनौतियों की ओर ध्यान आकर्षित किया जाएगा।
  • भारतीय सशस्त्र बलों की तीनों सेवाओं के तैराकों तथा राफ्टरों की नौ सदस्यीय टीम का नेतृत्व अंतरराष्ट्रीय तैराक विंग कमांडर परमवीर सिंह करेंगे।
  • इस नौ सदस्यीय टीम में राष्ट्रीय आपदा राहत बल (NDRF) के तीन सदस्यों और वाइल्डलाइफ इंस्टीटड्ढूट ऑफ इंडिया (WildLife Institute of India) एवं इंडियन इंस्टीटड्ढूट ऑफ टॉक्सिकोलॉजी (Indian Institute of Toxicology) के दो सदस्यों को शामिल किया गया है।

जनगणना और जल परीक्षणः इस यात्रा में शामिल सीएसआईआर (CSIR) के सदस्यों की यात्रा जहां-जहां रुकेगी, उन जगहों से गंगा में पानी के सैंपल एकत्रित करेंगे और फिर उसकी जांच करेंगे। जांच की एक लंबी प्रक्रिया से गंगा के पूरे मार्ग में अलग-अलग क्षेत्रों में पानी की गुणवत्ता ज्ञात होगी।