यूएनईपी उत्सर्जन अंतराल रिपोर्ट 2019

हाल ही में संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (United Nations Environment Programme - UNEP) ने उत्सर्जन अंतराल रिपोर्ट 2019 (Emission Gap Report 2019) प्रकाशित की। रिपोर्ट के अनुसार, पिछले एक दशक में वैश्विक ग्रीनहाउस गैसों (Green House Gsaes-GHG) के उत्सर्जन में प्रतिवर्ष 1.5 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि हुई है एवं 2018 में कुल वैश्विक ग्रीन हाउस गैस उत्सर्जन 55.3 गीगाटन कार्बन डाइऑक्साइड के समतुल्य हो गया है।

प्रकाश प्रदूषण

  • प्रकाश प्रदूषण (Light Pollution or Over Illumination), एक नया प्रदूषण है। किसी ने सोचा भी नहीं होगा कि प्रकाश भी प्रदूषण का एक सबल कारण हो सकता है। खगोलीय अध्ययन से लेकर पशु-पक्षी और मानव जाति भी परोक्ष-अपरोक्ष रूप से इसकी चपेट में आ चुके हैं।
  • अन्य प्रदूषण की तरह यह भी नयी सभ्यता और औद्योगिक विकास की देन है। इसके मुख्यतः दो कारण हैं - वायु प्रदूषण के साथ कृत्रिम रोशनी का गलत और बेवजह इस्तेमाल। जब प्रकाश के विभिन्न स्रोतों को गलत तरीके से लगाया जाए तो यह वायुमंडल में विद्यमान कणों से विसर्जित और बिखर कर पूरे वातावरण में फैल जाता है। इससे रात्रि का आकाश लालिमा लिए नजर आता है। जहाँ जगमगाहट ज्यादा है, वहाँ प्रकाश प्रदूषण और भी ज्यादा विद्यमान होता है।

प्रमुख तथ्य

यदि वैश्विक कार्बन उत्सर्जन में वर्ष 2020-30 के दौरान प्रतिवर्ष 7.6 प्रतिशत की कमी नहीं की गई, तो विश्व पेरिस समझौते के तहत किये 1.5 डिग्री सेल्सियस के लक्ष्य को प्राप्त नहीं कर सकेगा।

  • वर्तमान में यदि पेरिस समझौते के तहत निर्धारित सभी लक्ष्यों का पालन किया जाता है, तब भी वर्ष 2030 तक वैश्विक तापमान में 3.2 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि होगी, जिसके जलवायु पर व्यापक एवं घातक परिणाम होंगे।
  • उपभोग आधारित उत्सर्जन अनुमान (Consumption-based Emission Estimates) के आधार पर कुछ विकासशील देशों द्वारा अधिक मात्रा में कार्बन उत्सर्जन किये जाने के बावजूद यह विकसित देशों की तुलना में कम है।
  • विश्व का 78 प्रतिशत जीएचजी का उत्सर्जन जी20 देशों द्वारा होता है, जबकि चीन, अमेरिका, यूरोपियन संघ तथा भारत मिलकर 55 प्रतिशत ग्रीन हाउस गैसों का उत्सर्जन करते हैं। लगभग 65 देशों ने वर्ष 2050 तक जीएचजी के उत्सर्जन में कुल शून्य उत्सर्जन का लक्ष्य रखा है, लेकिन इसके क्रियान्वयन के लिये कुछ ही देशों ने रणनीति बनाई है।
  • ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन में कमी करने तथा वर्ष 2030 तक पेरिस समझौते के लक्ष्यों की प्राप्ति हेतु वर्ष 2020 से वैश्विक कार्बन उत्सर्जन में प्रतिवर्ष 7.6 प्रतिशत की कटौती करनी होगी।
  • वैश्विक तापमान में वृद्धि दर को 2°C तक लाने के लिये वर्ष 2020 तक देशों को अपनी राष्ट्रीय निर्धारित भागीदारी (Nationally Determined Contribution-NDC) के लक्ष्य को तीन गुना बढ़ाना होगा, जबकि 1.5°C तक लाने के लिये इस लक्ष्य को पांच गुना करना होगा। एनडीसी पेरिस समझौते के तहत इसके सदस्य देशों द्वारा निर्धारित एक लक्ष्य है, जिसके माध्यम से प्रत्येक देश अपने स्तर पर ग्रीन हाउस गैस उत्सर्जन में कमी करने का प्रयास करेगा।
  • ग्रीन हाउस गैस के उत्सर्जन में कमी हेतु वैश्विक अर्थव्यवस्था के अकार्बनीकरण की आवश्यकता होगी, जिसके लिये मूलभूत ढांचागत बदलाव जरूरी है।
  • ऐसे पदार्थ जिनकी वैश्विक स्तर पर मांग अधिक है तथा इनके उत्पादन में ग्रीन हाउस गैसों का उत्सर्जन अधिक होता है, का 3 आर (Reduce, Reuse, Recycle) के द्वारा सीमित किया जा सकता है। इनमें लोहा तथा इस्पात, सीमेंट, चूना एवं प्लास्टर, भवन निर्माण सामग्री, प्लास्टिक और रबर आदि शामिल हैं।
  • रिपोर्ट में इस बात पर भी जोर दिया गया है कि पिछले कुछ वर्षों में नवीकरणीय ऊर्जा के स्रोतों की कीमतों में कमी आई है तथा आगामी वर्षों में इसमें और कमी की उम्मीद की जा रही है। अतः इसके प्रयोग को बढ़ावा देने से जलवायु परिवर्तन के लक्ष्यों को प्राप्त करने में मदद मिलेगी।