भारतीय लोकतंत्र में असमान प्रतिनिधित्व

आम चुनाव 2019 में, एक बार पुनः भारतीय लोकतंत्र में असमान प्रतिनिधित्व (Unequal Representation in Indian Democracy) का मुद्दा विवादास्पद रहा। अध्ययनों के अनुसार, अन्य लोकतांत्रिक देशों की तुलना में भारत में जनसंख्या के अनुपात में सांसदों की संख्या न्यूनतम है। भारतीय संविधान के अनुच्छेद 81 के अनुसार प्रत्येक राज्य और संघ शासित प्रदेश (UT) को लोकसभा में सीटों का आबंटन ऐसी रीति से किया जाएगा कि सीटों की संख्या से उस राज्य की जनसंख्या का अनुपात सभी राज्यों के लिए एक ही हो।

  • अनुच्छेद 82 के अनुसार संसदीय निर्वाचन क्षेत्रों का परिसीमन प्रत्येक जनगणना की समाप्ति के पश्चात् किया जायेगा। इस कार्य को परिसीमन आयोग अधिनियम के प्रावधानों के तहत भारत सरकार द्वारा स्थापित परिसीमन आयोग द्वारा किया जाता है।
  • इसे वर्ष 1976 तक प्रत्येक जनगणना के पश्चात् किया जाता था। परंतु सरकार द्वारा 42वें संविधान संशोधन अधिनियम, 1976 के तहत परिसीमन को 2001 की जनगणना के बाद तक अपरिवर्तित घोषित कर दिया गया। इसे 54वें संविधान संशोधन अधिनियम (2002) द्वारा 2026 तक बढ़ा दिया गया है।

परिसीमन आयोग

परिसीमन का तात्पर्य नवीन जनगणना के आधार पर लोकसभा एवं विधानसभा क्षेत्रों की सीमा निर्धारण करने से है, जिससे यह सुनिश्चित किया जा सके कि व्यावहारिक रूप से प्रत्येक निर्वाचन क्षेत्र में मतदाताओं की संख्या एक समान हो तथा लोकसभा एवं विधानसभा के अंतर्गत सभी मतदाताओं के मत का महत्व एक समान हो।

  • यह एक शक्तिशाली निकाय है, जिसके आदेशों में कानून के समान शक्ति निहित है और इसके आदेशों को किसी भी न्यायालय में चुनौती नहीं दी जा सकती है। इसके आदेशों को भारत के राष्ट्रपति द्वारा निर्दिष्ट तिथि से क्रियान्वित किया जाता है।
  • इसके आदेशों की प्रतियां लोकसभा और संबंधित राज्य विधानसभाओं के समक्ष प्रस्तुत की जाती हैं; परंतु उनके द्वारा उसमें कोई संशोधन नहीं किया जाता है।
  • परिसीमन आयोग अधिनियम 1952, 1962, 1972 और 2002 के तहत वर्ष 1952, 1963, 1973 और 2002 में चार बार परिसीमन आयोग का गठन किया गया है।
  • 2002 में परिसीमन आयोग ने प्रत्येक राज्य को आबंटित सीटों की संख्या में परिवर्तन किए बिना, जनगणना 2001 के आधार पर राज्यों में प्रादेशिक निर्वाचन क्षेत्रों का पुनः समायोजन और युक्तिकरण किया था।