भारतीय इतिहास की प्रमुख महिला व्यक्तित्व

सावित्रीबाई फ़ुले

जन्मः 3 जनवरी, 1831

मृत्युः 10 मार्च, 1897

प्रमुख तथ्य

ये महात्मा ज्योतिबा फुले की पत्नी थीं। महाराष्ट्र के दलित परिवार में जन्मी देश की प्रथम प्रशिक्षित शिक्षिका सावित्री बाई फुले, महिला शिक्षा हेतु 1848 ई. में पुणे में अपने पति ज्योतिबा फुले के साथ मिलकर प्रथम महिला विद्यालय की स्थापना की थीं।

  • महिला मुत्तिफ़ हेतु ‘विधवा आश्रम’ एवं शिशु बालिका हत्या प्रतिबन्धक गृह की स्थापना की।
  • ये मराठी भाषा की कवयित्री भी थीं। इनकी प्रमुख रचनाएँ ‘काव्य फुले’ एवं ‘बावनकशी सुबोध रत्नाकर’ हैं।

रानी लक्ष्मीबाई (1835-1858 ई.)

जन्मः 19 नवंबर, 1828

मृत्युः 18 जून, 1858 (ग्वालियर, मध्य प्रदेश)

प्रमुख तथ्य

  • रानी लक्ष्मीबाई का जन्म वाराणसी में हुआ था, इनके पितामोरोपन्त तांबे एवं माता भागीरथी बाई थीं।
  • लक्ष्मीबाई के बचपन का नाम ‘मणिकर्णिका’ था और उन्हें प्यार से ‘मनु’ कहा जाता था। इनका विवाह झांसी के राजा गंगाधर राव नेवलकर के साथ 1842 में हुआ था।
  • वर्ष 1853 में जब झांसी के महाराजा की मृत्यु हो गई, तब लॉर्ड डलहौजी ने पुत्र को स्वीकार करने से इनकार कर दिया और व्यपगत का सिद्धांत के आधार पर राज्य पर कब्जा कर लिया।
  • 17 जून, 1858 को युद्ध के मैदान में लड़ते हुए वीरगति को प्राप्त हो गई।
  • ब्रिटिश जनरल ह्यूरोज ने रानी की वीरता से अविभूति होकर कहा था कि ‘‘मेरे सामने सोयी हुई यह महिला विद्रोहियों में एकमात्र मर्द है।’’

झलकारी बाई

जन्मः 22 नवंबर, 1830

मृत्युः 4 अप्रैल, 1857

प्रमुख तथ्य

  • झलकारी बाई का जन्म 22 नवंबर, 1830 को झांसी के नजदीक भोजला गाँव में एक साधारण-से निर्धन कोली परिवार में हुआ था।
  • ये रानी लक्ष्मीबाई की नियमित सेना में महिला शाखा ‘दुर्गा दल’ की सेनापति थीं।
  • झलकारी बाई ने रानी लक्ष्मीबाई से उनके वस्त्र, पगड़ी और कलगी की माँग की थी। अपनी रानी को झाँसी से सुरक्षित बाहर निकालने के लिए इनके पास इसके अतिरित्तफ़ अन्य कोई चारा नहीं था। वे निर्णायक युद्ध लड़ने जा रही थीं। अतः इन्होंने यह योजना बनाई और रानी से कपड़ों की माँग की थी।
  • इनकी शक्ल रानी लक्ष्मीबाई से मिलती थी। अतः अंग्रेजों को चकमा देने के लिए उनकी वेष धारण कर युद्ध की थीं।

रानी वेलु नचियार

जन्मः 3 जनवरी, 1730

मृत्युः 25 दिसंबर, 1796

प्रमुख तथ्य

  • वर्ष 1780 में रामनाथपुरम में इनका जन्म हुआ था।
  • रानी वेलु नचियार भारत में अंग्रेजों के विरुद्ध लड़ने वाली तमिल मूल की प्रथम रानी थीं।
  • वर्ष 1857 के विद्रोह से कई वर्ष पूर्व वेलु नचियार ने अंग्रेजों के खिलाफ युद्ध छेड़ा और इसमें विजयी हुईं।
  • इन्होंने पहले मानव बम का निर्माण किया; साथ ही वर्ष 1700 के दशक के अंत में प्रशिक्षित महिला सैनिकों की पहली सेना की स्थापना की।

रमाबाई राणाडे (1863-1924 ई.)

जन्मः 25 जनवरी, 1863

मृत्युः 25 जनवरी, 1924

प्रमुख तथ्य

  • इनका जन्म सांगली (महाराष्ट्र) के चितपावन ब्राह्मण परिवार में हुआ था।
  • रमाबाई राणाडे 19वीं सदी में महिलाओं के अधिकारों के लिए लड़ने वाली प्रथम भारतीय सामाजिक कार्यकर्ताओं में से एक थीं। इनका विवाह महादेव गोविंद राणाडे से हुआ था।
  • रमाबाई पुणे में ‘सेवा सदन’ की संस्थापक अध्यक्षा भी थीं।
  • महिलाओं के कल्याण के लिए आर्य महिला समाज की स्थापना की। महिलाओं को सार्वजनिक स्थल पर वार्ता एवं भाषण हेतु प्रशिक्षित करने के लिए इन्होंने मुम्बई में ‘हिन्दू लेडीज सोशल क्लब’ की स्थापना की।
  • रमाबाई पति व अन्य सहयोगियों के साथ मिलकर 1886 ई- में पुणे में महिलाओं का पहला उच्च विद्यालय स्थापित किया था।

पंडिता रमाबाई

जन्मः 23 अप्रैल, 1858

मृत्युः 5 अप्रैल, 1922

प्रमुख तथ्य

  • इनके पिता का नाम अनंत शास्त्री डोंगरे और माता का नाम लक्ष्मीबाई था। रमाबाई के बचपन का नाम रमा डोंगरे था।
  • प्रख्यात विदुषी समाजसुधारक रमाबाई डोंगरे का जन्म महाराष्ट्र के एक ब्राह्मण परिवार में हुआ था।
  • इन्होंने 12 वर्ष की ही अवस्था में संस्कृत के 20 हजार श्लोक कंठस्थ कर लिए थे, इस कारण उन्हें ‘सरस्वती’ एवं ‘पंडिता’ जैसी उपाधि से विभूषित किया गया।
  • इन्होंने महिला मुत्तिफ़ हेतु ‘पुणे’ में ‘आर्य महिला समाज (1881)’ की स्थापना की तथा अछूतोद्धार हेतु संघर्ष करते हुए स्वयं का विवाह बिपिन बिहारी मेधावी नामक बंगाली अछूत से किया।
  • अपने ब्रिटेन प्रवास के दौरान पंडिता रमाबाई डोंगरे मेधावी ने ‘द हाई कास्ट हिंदू विमेन’ पुस्तक को लिखा, जिसमें उन्होंने एक हिंदू महिला होने के दुष्परिणामों की विस्तार से चर्चा की।
  • पंडिता रमाबाई के प्रयासों के फलस्वरूप अमेरिका में ‘रमाबाई एसोसिएशन’ की स्थापना की गई, जिसका उद्देश्य भारत में चल रहे विधवा आश्रम के लिए संसाधनों को इकट्टòा करना था।
  • स्त्री शिक्षा के विकास हेतु इन्होंने 1912 ई- में गुलबर्गा में ‘इसाई हाई स्कूल’ की स्थापना की।
  • मुम्बई में ‘शारदा सदन’ एवं ‘कृपा सदन’ नामक शैक्षणिक संस्था की भी स्थापना की।
  • ब्रिटिश सरकार द्वारा 1919 ई- में इन्हें ‘कैसर-ए-हिन्द’ जैसे सर्वोच्च पदक से सम्मानित किया गया था।

श्रीमती भीकाजी रुस्तम कामा

जन्मः 24 सितंबर, 1861

मृत्युः 13 अगस्त, 1936

प्रमुख तथ्य

  • भारतीय मूल की पारसी नागरिक मैडम कामा का जन्म बम्बई में हुआ था। इन्हें ‘भारतीय क्रान्ति की माता’ की उपाधि से विभूषित किया गया है।
  • इन्होंने जर्मनी के स्ट्रटगार्ट नगर में 22 अगस्त, 1907 में हुई सातवीं अंतर्राष्ट्रीय सोशलिस्ट कांग्रेस में भारत का प्रथम तिरंगा राष्ट्रध्वज फहराया था।
  • इनके द्वारा पेरिस से प्रकाशित ‘वन्देमातरम्’ पत्र प्रवासी भारतीयों में काफी लोकप्रिय हुआ।
  • 1907 में जर्मनी के स्ट्रटगार्ट में ‘अंतरराष्ट्रीय साम्यवादी परिषद’ में मैडम भीकाजी कामा ने साड़ी पहनकर भारतीय झंडा हाथ में लेकर लोगों को भारत के विषय में जानकारी दी। इन्हें ‘क्रांति-प्रसूता’ भी कहा जाता था।

कस्तूरबा गांधी

जन्मः 11 अप्रैल, 1869 (पोरबंदर)

मृत्युः 22 फरवरी, 1944, (आगा खां पैलेस, पूना)

प्रमुख तथ्य

  • कस्तूरबा गांधी का जन्म काठियावाड़ के पोरबन्दर नगर में गोकुलदास मकनजी की पुत्री के रूप में हुआ।
  • ये महात्मा गांधी की धर्मपत्नी थीं।
  • श्रीमती गांधी ने ‘असहयोग आन्दोलन’, ‘सविनय अवज्ञा आन्दोलन’ तथा ‘भारत छोड़ो आन्दोलन’ में महात्मा गांधी के साथ सक्रिय भूमिका का निर्वहन किया।
  • 9 अगस्त, 1942 ई- इन्हें गिरफ्तार करके पूना के आगा खां महल (जेल) में भेज दिया गया। जहां 1944 ई. में इनकी मृत्यु हो गयी।
  • इनकी मृत्यु के उपरांत राष्ट्र ने ‘महिला कल्याण’ के निमित्त एक करोड़ रुपया एकत्र कर इन्दौर में ‘कस्तूरबा गाँधी राष्ट्रीय स्मारक ट्रस्ट’ की स्थापना की।

मातंगिनी हजारा

जन्मः 19 अक्टूबर, 1870

मृत्युः 29 सितम्बर, 1942

प्रमुख तथ्य

  • मातंगिनी हजारा ‘गांधी बुढ़ी’ के नाम से जानी जाती थीं।
  • प्रसिद्ध क्रान्तिकारी नेता वीरांगना मातंगिनी हजारा को सविनय अवज्ञा आन्दोलन में सक्रिय भूमिका के कारण 1933 ई. में तत्कालीन गवर्नर एण्डरसन ने गिरफ्तार करके 6 माह का सश्रम कारावास देकर मुर्शीदाबाद जेल में बन्द कर दिया।
  • 1942 ई. में वे 5000 लोगों को एकत्र करके जब ब्रिटिश सरकार विरोधी नारे लगा रही थीं तो पुलिस की एक गोली बायें हाथ में लगी तो आपने झण्डे को दाहिने हाथ में ले लिया।
  • अन्त में एक गोली दाहिने हाथ और माथे पर लगी, लेकिन भारतीय झण्डे को जीचे नहीं गिरने दिया।
  • इस बलिदान से मिदनापुर क्षेत्र में इतना जनसैलाब उमड़ा कि 10 दिन के अन्दर ‘जातीय सरकार’ की स्थापना हो गयी, जो 21 महीने तक चली।

सरोजिनी नायडू

जन्मः 13 फरवरी, 1879, (हैदराबाद)

मृत्युः 2 मार्च 1949, (लखनऊ)

प्रमुख तथ्य

  • सरोजिनी नायडू का जन्म हैदराबाद में अघोरनाथ चट्टोपाध्याय वरदा सुन्दरी की पुत्री के रूप में हुआ।
  • इन्हें ‘भारत कोकिला’ (नाइटिंगल ऑफ इंडिया) की उपाधि से विभूषित किया गया था।
  • इन्हें 1925 के कानपुर कांग्रेस अधिवेशन में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की प्रथम भारतीय महिला अध्यक्ष तथा उत्तर प्रदेश एवं देश की प्रथम महिला राज्यपाल बनने का गौरव प्राप्त हुआ।
  • इन्होंने महिलाओं के उत्थान के लिए महिला विश्वविद्यालय एवं अनाथ आश्रम की स्थापना की।
  • नायडू ने 1947 ई. में एशियन रिलेशन कांफ्रेंस की अध्यक्षता की। इनकी प्रमुख रचनाएं गोल्डन थ्रेशोल्ड, वर्ड ऑफ टाईम, सांग ऑफ इण्डिया तथा ब्रोकन विंग आदि हैं।

सुचेता कृपलानी

जन्मः 25 जून, 1908, अम्बाला

मृत्युः 1 दिसंबर, 1974, नई दिल्ली

प्रमुख तथ्य

  • इनका जन्म 1908 ई. में हरियाणा राज्य के अम्बाला शहर में एस- एन- मजूमदार की पुत्री के रूप में हुआ। इनका विवाह 1936 ई. में आचार्य जे- बी- कृपलानी से हुआ।
  • सुचेता कृपलानी को भारत की पहली महिला मुख्यमंत्री होने का गौरव प्राप्त है। ये उत्तर प्रदेश की चौथी और भारत की प्रथम महिला मुख्यमंत्री थीं।
  • 1948 से 1960 तक वह भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की महासचिव रहीं। बनारस हिंदू विश्वविद्यालय में इतिहास की प्राध्यापिका भी रहीं। 1949 में संयुत्तफ़ राष्ट्रसंघ महासभा अधिवेशन में भारतीय प्रतिनिधि मंडल की सदस्य के रूप में भाग लीं।
  • 1952 और 1957 में नई दिल्ली से लोकसभा के लिए निर्वाचित। इस दौरान लघु उद्योग मंत्रलय में राज्य मंत्री रहीं।
  • 1962-1967 तक मेहदावल उत्तर प्रदेश, विधानसभा से विधायक रहीं। 2 अक्टूबर, 1963 से 13 मार्च, 1967 तक उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री निर्वाचित हुईं।
  • 1967 में गोण्डा से लोकसभा के लिए चुनी गईं।
  • इन्होंने अरुणा आसफ अली एवं ऊषा मेहता के साथ भारत छोड़ो आन्दोलन में सक्रिय भूमिका का निर्वहन किया।
  • इन्होंने कांग्रेस की महिला विभाग तथा अण्डरग्राउण्ड वालंटियर फोर्स की स्थापना की; जिसके अन्तर्गत महिलाओं की ड्रिल, लाठी चलाना, प्राथमिक चिकित्सा और आत्मरक्षा के लिए हथियार चलाने की ट्रेनिंग दी गयी।
  • माखली दंगे के समय गांधी के साथ रहीं।
  • इन्होंने राममनोहर लोहिया के साथ मिलकर ‘इंकलाब’ नामक मासिक पत्रिका का संपादन भी किया।

अरुणा आसफ़ अली

जन्मः 16 जुलाई, 1909, कालका

मृत्युः 29 जुलाई, 1996, नई दिल्ली

प्रमुख तथ्य

  • अरुणा जी का जन्म बंगाली परिवार मेंहरियाणा, तत्कालीन पंजाब के ‘कालका’ में हुआ था।
  • भारत छोड़ो आन्दोलन के दौरान मुम्बई के चिलिया टैंक मैदान में कांग्रेस का झण्डा फहराने वाली भूमिगत होकर अपनी सक्रीय भूमिका का निर्वाह किया था।
  • अरुणा आसफ अली 1958 ई. में दिल्ली की पहली महिला मेयर चुनी गई।
  • इन्हें 1964 ई. में शांति और सौहार्द्र के लिए अन्तर्राष्ट्रीय लेनिन पुरस्कार और आर्डर ऑफ लेनिन तथा 1991 में जवाहरलाल नेहरू पुरस्कार से सम्मानित किया गया। 1992 में पप्र विभूषण से भी सम्मानित किया गया।
  • इन्हें संयुत्तफ़ राष्ट्रसंघ महासभा की प्रथम महिला अध्यक्ष होने का गौरव प्राप्त है।
  • इन्होंने ‘नेशनल फेडरेशन ऑफ इण्डियन वूमेन’ एवं ऑल इंडियन वूमेन कांफ्रेंस की अध्यक्षता की तथा ‘ऑल इण्डिया ट्रेड यूनियन कांग्रेस’ की उपाध्यक्ष भी रहीं।
  • सन 1948 ई. में श्रीमती अरुणा आसफ अली ‘सोशलिस्ट पार्टी’ में सम्मिलित हुई और दो साल बाद सन् 1950 ई. में उन्होंने अलग से लेफ्ट ‘सोशलिस्ट पार्टी’ बनाई।
  • वे सक्रिय होकर ‘मजदूर-आंदोलन’ में जी-जान से जुट गईं। अंत में 1955 ई. में इस पार्टी का ‘भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी’ में विलय हो गया।

प्रीतिलता वाडेकर

जन्मः 5 मई, 1911

मृत्युः 24 सितम्बर, 1932

प्रमुख तथ्य

  • प्रीतिलता वाडेकर का जन्म वर्तमान बांग्लादेश के चटगांव में हुआ था। इन्होंने कोलकाता के बेथुन कॉलेज से दर्शनशास्त्र से स्नातक परीक्षा उत्तीर्ण की।
  • ‘इण्डियन रिपब्लिकन आर्मी’ की सदस्या तथा मास्टर सूर्यसेन की शिष्या थीं। इन्होंने चटगांव विद्रोह में अहम् भूमिका निभाया था। यूरोपियन क्लब पर हमले की जिम्मेदार यही थीं।

बीना दास

जन्मः 24 अगस्त, 1911

मृत्युः 26 दिसंबर, 1986

प्रमुख तथ्य

  • इनका जन्म बंगाल के कृष्णा नगर में बेनी माधव दास (ब्रह्म समाजी शिक्षक) तथा सरला देवी (सामाजिक कार्यकर्ता) की संतान के रूप में हुआ था।
  • ये कलकत्ता में महिलाओं द्वारा संचालित अर्द्ध क्रान्तिकारी संगठन ‘छात्री संघ’ की सदस्या थी, जिसके लिए इन्हें 9 वर्ष के कारावास की सजा दी गयी थी।
  • 6 फरवरी, 1932 ई. को कलकत्ता विश्वविद्यालय के दीक्षान्त समारोह में उपाधि लेने पहुंची।
  • बीना दास ने गवर्नर स्टैनले जैक्सन पर गोली चला दी, परन्तु वह बच गया, परन्तु उन्हें 10 साल का कारावास हुआ।
  • 1937 में कांग्रेस की सरकार बनने के बाद कई राजबंदियों के साथ बीना दास को भी रिहा कर दिया गया।
  • बीना दास का सम्पर्क ‘युगांतर दल’ के क्रांतिकारियों से था।
  • ‘भारत छोड़ो आन्दोलन’ के समय इन्हें तीन वर्ष के लिए नजरबंद कर दिया गया था।
  • 1946 से 1951 तक यह बंगाल विधानसभा की सदस्या रहीं।
  • गांधीजी की नोआखाली यात्र के समय लोगों के पुनर्वास के काम में बीना ने भी बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया।
  • बंगाली में इनकी दो आत्मकथाएं हैं- ‘ श्रृंखल झंकार’ और ‘पितृधन’।

रानी गिडालू/रानी गाइडिन्ल्यू

जन्मः 26 जनवरी, 1915

मृत्युः 17 फरवरी, 1993

प्रमुख तथ्य

  • रानी गिडालू का जन्म मणिपुर के नुंगकाओ (तमेंगलोंग) में हुआ था।
  • इन्हें ‘नागालैण्ड की रानी’ एवं क्रान्तिकारी नेत्री कहा जाता था।
  • ये नागा नेता जादोनांग की शिष्या एवं उत्तराधिकारिणी थी।
  • इन्होंने गांधी जी के सविनय अवज्ञा आन्दोलन के दौरान ‘कर न देने’ का आन्दोलन चलाया।
  • 1932 ई. में इन्हें गिरफ्तार करके आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई। 1933 से लेकर 1947 तक रानी गाइडिन्ल्यू गौहाटी शिलांग, आइजोल और तुरा जेल में कैद रहीं।
  • 1946 में अंतरिम सरकार का गठन हुआ, तब प्रधानमंत्री नेहरू के निर्देश पर रानी गाइडिन्ल्यू को तुरा जेल से रिहा कर दिया गया।
  • भारत सरकार द्वारा उन्हें ‘ताम्रपत्र स्वतंत्रता सेनानी पुरस्कार’, पप्र भूषण और ‘विवेकानंद सेवा पुरस्कार’ प्रदान किया गया।
  • भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में अपनी सक्रिय भूमिका निभाने के कारण रानी गाइडिन्ल्यू को ‘नागालैंड की रानी लक्ष्मीबाई’ भी कहा जाता है।

उषा मेहता

जन्मः 25 मार्च, 1920, गुजरात

मृत्युः 11 अगस्त, 2000

प्रमुख तथ्य

  • इन्होंने भारत छोड़ो आन्दोलन के दौरान 14 अगस्त, 1942 ई. को ‘खुफिया कांग्रेस रेडियो’ से अपनी आवाज में पहला प्रसारण किया था।
  • स्वतन्त्रता के बाद ऊषा जी ने गांधीवादी दर्शन के अनुरूप महिलाओं के उत्थान के लिए प्रयासरत रहीं, जिसके कारण इन्हें ‘गांधी स्मारक निधि’ का अध्यक्ष चुना गया।
  • तदुपरान्त गांधी शान्ति प्रतिष्ठान की सदस्या बनीं तथा भारत सरकार ने पप्र विभूषण से सम्मानित किया।

कादम्बिनी गांगुली

जन्मः 18 जुलाई, 1861, भागलपुर, बिहार

मृत्युः 3 अक्टूबर, 1923, कलकत्ता, ब्रिटिश-भारत

प्रमुख तथ्य

  • ये भारत की पहली महिला स्नातक और पहली महिला फिजीशियन थीं।
  • कादंबिनी गांगुली, कलकत्ता मेडिकल कॉलेज में प्रवेश पाने वाली पहली महिला भी थीं, जहां से इन्होंने वर्ष 1886 में स्नातक की डिग्री हासिल की थीं।
  • गांगुली भी उन छः महिलाओं में से एक थीं, जिन्होंने वर्ष 1889 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की पहली सर्व-महिला प्रतिनिधिमंडल का गठन किया था।
  • एनी बेसेंट ने अपनी पुस्तक में कादंबिनी गांगुली को ‘भारत की आजादी में भारत की नारीत्व का प्रतीक’ बताया है।
  • 1906 ई. की कोलकाता कांग्रेस के अवसर पर आयोजित महिला सम्मेलन की अध्यक्षता भी कादम्बिनी जी ने ही की थीं।

कनकलता बरुआ

जन्मः 22 दिसंबर, 1924, गोहपुर

मृत्युः 20 सितंबर, 1942, गोहपुर

प्रमुख तथ्य

  • ये असम के सोनितपुर जिले के गोहपुर की रहने वाली थीं।
  • स्थानीय लोग इन्हें ‘बीरबाला’ के नाम से जानते हैं।
  • भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान इनकी आयु मात्र 18 वर्ष की थी।
  • एक गुप्त सभा में 20 सितंबर, 1942 ई. को तेजपुर की कचहरी पर तिरंगा झंडा फहराने का निर्णय लिया गया था। तिरंगा फहराने आई हुई भीड़ पर गोलियाँ दागी गईं और यहीं पर कनकलता बरुआ ने शहादत पाई।

कल्पना दत्ता

जन्मः 27 जुलाई, 1913

मृत्युः 8 फरवरी, 1995

प्रमुख तथ्य

  • इन्होंने अपनी क्रांतिकारी गतिविधियों को अंजाम देने के लिए क्रांतिकारी सूर्यसेन के दल से नाता जोड़ लिया था।
  • 1933 ई. में कल्पना दत्ता पुलिस से मुठभेड़ होने पर गिरफ्तार कर ली गई।
  • महात्मा गांधी और रबीन्द्रनाथ टैगोर के प्रयत्नों से ही वह जेल से बाहर आ पाई थीं। कल्पना दत्ता बंगाल में वामपंथी राजनीति तथा क्रांतिकारी गतिविधियों में सक्रिय थीं।
  • वर्ष 1930 के चटगांव शस्त्रगार लूट (Chittagong Armoury Raid) में वे सूर्य सेन (मास्टर दा) के साथ शामिल थीं, इसलिए वर्ष 1932 में इन्हें आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई थी।
  • कल्पना दत्ता भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी में शामिल हो गई तथा CPI के नेता पी-सी- घोष से विवाह कर लिया।
  • आजादी आन्दोलन में महत्त्वपूर्ण योगदान के लिए कल्पना दत्ता को ‘वीर महिला’ की उपाधि से सम्मानित किया गया था।

राजकुमारी अमृत कौर

जन्मः 2 फरवरी, 1887

मृत्युः 6 फरवरी, 1964

प्रमुख तथ्य

  • राजकुमारी ने भारत छोड़ो आंदोलन में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।
  • वे गांधीजी के विचारों से काफी प्रभावित थीं तथा नमक सत्याग्रह में भी उन्होंने अपने योगदान दिया था।
  • अखिल भारतीय ग्रामोद्योग संगठन (All India Village Industries Association) की अध्यक्ष भी रहीं।
  • राजकुमारी अमृत कौर वर्ष 1932 में अखिल भारतीय महिला सभा (All India Women's Conference) की स्थापना में मुख्य भूमिका निभाई।
  • इन्होंने वर्ष 1932 में मताधिकारों के लिये बनी लोथियन समिति (Lothian Committee) के विरोध में आवाज उठाई तथा सार्वभौम वयस्क मताधिकार (Universal Adult Suffrage) की मांग की।
  • नई दिल्ली में ‘अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान’ की स्थापना में भी इनका प्रमुख योगदान था।
  • ये भारत की प्रथम महिला थीं, जो केंद्रीय मंत्री बनीं थीं।
  • 1950 में इन्हें ‘विश्व स्वास्थ्य संगठन’ का अध्यक्ष बनाया गया था। यह सम्मान हासिल करने वाली वह पहली एशियाई महिला थीं।
  • 2 अक्टूबर, 1964 को राजकुमारी अमृत कौर का निधन हुआ।

अनुसूयाबाई काले

जन्मः 1896

मृत्युः 1958

प्रमुख तथ्य

  • अनुसूयाबाई काले महाराष्ट्र की थीं, परंतु इनका मुख्य कार्यक्षेत्र मध्य प्रदेश था।
  • वर्ष 1920 में इन्होंने महिलाओं का एक संगठन भगिनी मंडल की स्थापना की।
  • इसके अलावा वे अखिल भारतीय महिला सभा की सक्रिय सदस्य रहीं।
  • वर्ष 1928 में अनुसूयाबाई केंद्रीय प्रांत विधानमंडल की सदस्य निर्वाचित हुईं तथा इसका उपाध्यक्ष भी रहीं; लेकिन शीघ्र ही नमक सत्याग्रह के समय गाँधीजी की गिरफ्तारी के बाद इन्होंने अपना पद त्याग दिया तथा गाँधीजी की रिहाई के लिये प्रदर्शन करने लगीं।
  • वर्ष 1937 में हुए प्रांतीय चुनावों के बाद अनुसूयाबाई मध्य प्रदेश विधानमंडल की उपाध्यक्ष चुनी गईं।
  • भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान महाराष्ट्र के अश्ती तथा चिमूर में आदिवासियों के साथ किये गए सरकार के दमन के विरुद्ध इन्होंने आवाज उठाई।
  • अश्ती तथा चिमूर में हुए विद्रोह के लिए 25 लोगों को फांसी की सजा हुई थी, जिन्हें इनके प्रयासों से बचाया जा सका।
  • 1952 और 1957 में अनुसूयाबाई लोकसभा की सदस्य चुनी गईं।
  • 1952 में राष्ट्रमंडल सम्मेलन में भारत के प्रतिनिधिमंडल के सदस्य के रूप में उन्होंने कनाडा की यात्र की थी।

कमलादेवी चट्टोपाध्याय

जन्मः 3 अप्रैल, 1903

मृत्युः 29 अक्टूबर, 1988

प्रमुख तथ्य

  • कमलादेवी चट्टोपाध्याय का जन्म 3 अप्रैल, 1903 को कर्नाटक के मैंगलोर शहर में हुआ था।
  • इन्होंने साल 1920 में ‘ऑल इंडिया वीमेंस कॉन्फ्रेंस’ की स्थापना की।
  • कमलादेवी चट्टोपाध्याय नमक सत्याग्रह तथा सविनय अवज्ञा आंदोलन से ही राजनीति में सक्रिय रहीं।
  • इन्होंने राष्ट्रीय नाटड्ढ अकादमी (National School of Drama-NSD), संगीत नाटक अकादमी तथा भारतीय दस्तकारी परिषद (Crafts Council of India) की स्थापना में अपना योगदान दिया।
  • वर्ष 1955 में कला के क्षेत्र में योगदान के लिये इन्हें पप्र भूषण से सम्मानित किया गया।
  • वर्ष 1966 में एशियाई हस्तियों और संस्थाओं के लिए विशेष कार्य करने पर इन्हें रेमन मैग्सेसे अवार्ड से भी नवाजा गया।
  • वर्ष 1974 में लाइफटाइम एचीवमेंट पुरस्कार और शांति निकेतन द्वारा देसिकोत्तम जैसे सर्वोच्च सम्मान भी प्राप्त कीं।

मीराबेनः

जन्मः 22 नवंबर, 1892

मृत्युः 20 जुलाई, 1982

  • मीराबेन का वास्तविक नाम मेडलिन स्लेड (Madeleine Slade) था।
  • ये ब्रिटिश सैन्य अधिकारी की पुत्री थीं। इन्होंने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में महात्मा गांधीजी के सिद्धांतों से प्रभावित होकर खादी का प्रचार किया था।
  • वर्ष 1925 में वह भारत पहुंची और साबरमती आश्रम में रहने लगीं। गाँधीजी ने इन्हें अपनी पुत्री माना और मीराबेन नाम दिया। तबसे वह गाँधीजी की सहयोगी के रूप में हमेशा उनके साथ रहने लगीं।
  • वर्ष 1931 में गाँधीजी के साथ दूसरे गोलमेज सम्मेलन में लंदन गयी थीं।
  • भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान मीराबेन को भी गाँधीजी के साथ गिरफ्तार किया गया था और इन्हें आगा खाँ महल में भेज दिया गया, जहाँ वे 21 महीने तक रहीं।
  • स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद उत्तर प्रदेश सरकार की ‘ग्रो मोर फूड’ (Grow More Food) अभियान की सलाहकार रहीं।
  • इन्होंने ऋषिकेश में एक आश्रम की स्थापना की तथा जीवन के अंतिम समय तक वे वहीं रहीं।
  • शेगांव, यानी सेवाग्राम में बापू कुटी का निर्माण मीराबेन ने किया।
  • 1982 में इन्हें पप्र विभूषण से सम्मानित किया गया।
  • मीरा बेन के प्रति सम्मान प्रकट करने के लिए ‘इंडियन कोस्ट गार्ड’ ने नए गश्ती पोत का नाम उनके नाम पर रखा है।

हैलना पैट्रोवना ब्लावाट्स्की

जन्मः 1831 ई.

मृत्युः 1891 ई.

प्रमुख तथ्य

  • थियोसोफिकल सोसायटी की संस्थापिका हैलना पैट्रोवना ब्लावट्स्की का जन्म तत्कालिक दक्षिणी रूस के यूक्रेन प्रदेश में हुआ था।
  • इन्होंने 1879 ई. में बम्बई में थियोसोफिकल सोसायटी की एक शाखा स्थापित किया था।
  • ब्लावाट्स्की ने ‘द थियोसॉफिट’ नामक पत्र का संपादन किया।
  • 1882 ई. में थियोसोफिकल सोसायटी का अन्तर्राष्ट्रीय कार्यालय अडड्ढार (चेन्नई) में स्थान्तरित किया।
  • इस सोसायटी का मुख्य उद्देश्य धार्मिक शिक्षा तथा महिला कल्याण एवं तुलनात्मक धर्म, दर्शन और विज्ञान के अध्ययन को प्रोत्साहन देना था।

एनी बेसेन्ट (1847-1933 ई.)

जन्मः 1 अक्टूबर, 1847

मृत्युः 20 सितंबर, 1933

प्रमुख तथ्य

  • आयरन लेडी के नाम से प्रसिद्ध श्रीमती एनी बेसेन्ट का जन्म लन्दन में हुआ था।
  • 1891 ई. में एनी बेसेंट भारत आई थीं।
  • इन्होंने 1898 ई. में बनारस में ‘सेन्ट्रल हिन्दू कॉलेज’ की स्थापना की, जो आगे चलकर लगभग 1916 ई. में ‘बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय’ बन गया।
  • आयरलैण्ड के ‘होमरूल लीग’ की तरह बेसेन्ट ने भारत में होमरूल लीग की स्थापना की।
  • इन्होंने भारत में स्वशासन के उद्देश्य से 1916 ई. में ‘होम रूल लीग’ आन्दोलन चलाया।
  • इन्हें 1917 ई. में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की प्रथम महिला अध्यक्ष बनने का गौरव प्राप्त हुआ।
  • जन जागरण हेतु ‘कामनबील’ तथा ‘न्यू इंडिया’ नामक समाचार पत्रें का सम्पादन भी किया।
  • देशवासियों ने इन्हें मां बसंत कहकर सम्मानित किया तो महात्मा गांधी ने इन्हें वसंत देवी की उपाधि से विभूषित किया।
  • इनकी प्रमुख रचनाएँ डेथ-ऐण्ड आफ्टर, इन द आउटर कोर्ट, द सेल्फ ऐण्ड इट्स शीथ्स आदि हैं।
  • डॉ- एनी बेसेन्ट ने ‘हाऊ इण्डिया रौट् फॉर फ्रीडम’ (1915) में भारत को अपनी मातृभूमि बतलाया है।

भगिनी निवेदिता

जन्मः 28 अक्टूबर, 1867

मृत्युः 13 अक्टूबर, 1911

प्रमुख तथ्य

  • भगिनी निवेदिता एक ब्रिटिश-आइरिश सामाजिक कार्यकर्ता, लेखिका, शिक्षक एवं स्वामी विवेकानन्द की शिष्या थीं।
  • इनका मूल नाम‘मार्गरेट एलिजाबेथ नोबल’ था।
  • स्वामी विवेकानंद के आ“वान पर मार्गेट ने भारत आने का निर्णय लिया और 28 जनवरी, 1898 को कोलकाता पहुंची।
  • शारदा देवी ने इन्हें बंगाल की कुकी, अर्थात् छोटी लड़की कहकर बुलाया।
  • 25 मार्च, 1898 को स्वामी विवेकानंद ने सार्वजनिक तौर पर इन्हें निवेदिता नाम दिया।
  • यह भारतीय मठ परम्परा को स्वीकारने वाली प्रथम पश्चिमी महिला थीं।
  • 1899 में कोलकाता में आई प्लेग महामारी के दौरान सिस्टर निवेदिता ने कई रोगियों की देखभाल की, गंदे इलाकों को साफ किया एवं कई युवाओं को आगे आकर इस तरह की सेवा करने के लिए प्रेरणा और प्रोत्साहन दिया।
  • स्वामी विवेकानन्द ने ‘शेरनी’, रबीन्द्र नाथ टैगोर ने ‘लोकमाता’ तथा अरविन्द घोष ने ‘अग्नि शिखा’ की उपाधि से विभूषित किया।
  • दार्जिलिंग में महज 43 साल की उम्र में 13 अक्टूबर, 1911 में निवेदिता का देहान्त हुआ।
  • दार्जिलिंग के विक्टोरिया फॉल्स के पास इनका स्मारक स्थित है।
  • 1968 में भारतीय सरकार ने इनके सम्मान में एक डाक टिकट जारी किया। इनकी दो प्रमुख रचनाएं ‘द वेव आफ इंडियन लाइफ’ तथा ‘द मास्टर ऐज आई सा हिम’ हैं।