पत्र-पत्रिका संपादकीय

इंडिया डेटा एक्सेसिबिलिटी एंड यूज पॉलिसी

इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय द्वारा हाल में जारी 'इंडिया एक्सेसिबिलिटी एंड यूज पॉलिसी' (India Data Accessibility and Use Policy) का मसौदा सार्वजनिक डेटा को साझा करने में आमूल-चूल परिवर्तन का मार्ग प्रशस्त कर सकता है। विभिन्न सरकारी विभागों, स्थानीय प्राधिकरणों, पुलिस बलों, स्वास्थ्य सुविधा प्रणाली और स्कूलों के पास प्रमुख डेटा तक पहुंच है, जिसे साझा करने पर सार्वजनिक सेवाओं में सुधार हो सकता है, अनुसंधान और नवाचार की सुविधा हो सकती है, और नीति निर्माण में उपयोग किया जा सकता है। उदाहरण के लिए, रेलवे और स्थानीय परिवहन विभागों द्वारा साझा किए गए डेटा का उपयोग विभिन्न एप्लिकेशन में बसों और ट्रेनों की अनुसूची प्रदान करने के लिए किया जाता है, जो नागरिकों को उनकी यात्रा की योजना बनाने में मदद करते हैं।

हालाँकि, डेटा को पूल करना और साझा करना निजता के साथ ही व्यक्तियों के पास निजी तौर पर डेटा का स्वामित्व किस हद तक है जैसे महत्वपूर्ण प्रश्नों को जन्म देता है। हालांकि प्रस्तावित नीति निजता सुरक्षा को एक वांछित लक्ष्य मानती है, लेकिन यह इस बारे में कोई विवरण नहीं देती है कि यह कैसे सुनिश्चित किया जाएगा।

स्रोत- द हिंदू बिजनेसलाइन

कृषि में सरकारी खर्च को बढ़ाने की जरूरत

केंद्रीय बजट 2022-23 में कृषि क्षेत्र के लिए समग्र बजटीय आवंटन में मामूली रूप से 4.4% की वृद्धि हुई है। 2001 से 2019 के लिए संयुक्त राष्ट्र खाद्य और कृषि संगठन (एफएओ) की रिपोर्ट से पता चलता है कि, विश्व स्तर पर, भारत कृषि में सरकारी खर्च के मामले में शीर्ष 10 देशों में शामिल है, जो इसके कुल सरकारी व्यय का लगभग 7.3% हिस्सा है।

लेकिन जब हम कृषि अभिविन्यास सूचकांक (Agriculture Orientation Index: AOI) को देखते हैं तो तस्वीर निराशाजनक लगती है। कृषि अभिविन्यास सूचकांक को 2015 में सतत विकास के लिए 2030 एजेंडा के लक्ष्य- 2 (जीरो हंगर) के हिस्से के रूप में विकसित किया गया था। सतत विकास लक्ष्य- 2 ग्रामीण बुनियादी ढांचे, कृषि अनुसंधान और विस्तार सेवाओं में निवेश में वृद्धि, कृषि उत्पादकता बढ़ाने के लिए प्रौद्योगिकी के विकास और मध्यम और निम्न आय वाले देशों में गरीबी उन्मूलन पर जोर देता है। इस सूचकांक की गणना सरकारी व्यय के कृषि हिस्से को जीडीपी के कृषि मूल्य वर्धित हिस्से से विभाजित करके की जाती है।

कृषि क्षेत्र में सरकारी खर्च में बढ़ोतरी उच्च कृषि विकास और कृषि आय के सतत विकास लक्ष्यों को प्राप्त करने की कुंजी है। इसलिए सतत विकास लक्ष्य- 2 में निर्धारित क्षेत्रों पर जोर दिया जाना चाहिए।

स्रोत- द हिंदू

इलेक्ट्रिक वाहनों के लिए एक उत्साहजनक प्रोत्साहन

केंद्रीय विद्युत मंत्रालय ने कहा है कि सार्वजनिक क्षेत्र की तेल विपणन कंपनियों ने अगले साल के भीतर प्रमुख शहरों और राष्ट्रीय राजमार्गों पर इलेक्ट्रिक वाहनों (ईवी) के लिए कम से कम 22,000 चार्जिंग स्टेशन स्थापित करने की प्रतिबद्धता की है। यह एक महत्वपूर्ण पहल है क्योंकि ईवी मालिक बैटरी खत्म होने से पहले गंतव्य तक पहुंचने के लिए ईवी की क्षमता के बारे में चिंतित रहते हैं। परिवहन मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार, भारत में 1,010,021 पंजीकृत इलेक्ट्रिक वाहन हैं, लेकिन केवल 1,640 सार्वजनिक चार्जिंग स्टेशन हैं। भारत का लक्ष्य है कि 2030 तक सभी दोपहिया वाहनों का 80% और सभी निजी कारों का 30% इलेक्ट्रिक हो। चार्जिंग स्टेशन नेटवर्क का विस्तार इसके लिए महत्वपूर्ण है।

भारत को अपने परिवहन उत्सर्जन को कम करने, अपने जलवायु लक्ष्यों को पूरा करने के लिए, अपने तेल आयात बिल को कम करने और अपने विनिर्माण क्षेत्र को मजबूत करने के लिए इलेक्ट्रिक वाहनों के उपयोग का विस्तार करना महत्वपूर्ण है। इलेक्ट्रिक स्कूटर इलेक्ट्रिक वाहन अपनाने में अग्रणी हैं, लेकिन इलेक्ट्रिक कारों की कुल बिक्री 1% से भी कम है, इसका कारण सस्ती इलेक्ट्रिक कारों की कमी है। अगले दशक में हमारी सड़कों पर इलेक्ट्रिक वाहनों की संख्या में वृद्धि होगी, और इसलिए किसी के घर (या कार्यस्थल) से दूर आसानी से सुलभ चार्जिंग की आवश्यकता होगी।

स्रोत- हिंदुस्तान टाइम्स

भारत और श्रीलंका के बीच मछुआरों का मुद्दा

श्रीलंकाई नौसेना ने हाल में तमिलनाडु के 22 मछुआरों को गिरफ्तार किया और 84 नौकाओं को भी जब्त कर लिया। परिणामों से अवगत होने के बावजूद, तमिलनाडु के मछुआरे कथित रूप से अंतरराष्ट्रीय समुद्री सीमा रेखा को जिस आवृत्ति के साथ पार करते हैं, वह आजीविका की चिंताओं से प्रेरित उनके हताशा के स्तर को उजागर करता है। हालांकि, इससे वे श्रीलंका की समुद्री जैव विविधता को खतरे में डालने के अपराध की जिम्मेदारी से मुक्त नहीं हो जाते हैं। यह क्षेत्र श्रीलंका के उत्तरी प्रांत के तमिल मछुआरों के लिए महत्वपूर्ण है, जिन्हें गृह युद्ध का सामना करना पड़ा था।

गिरफ्तार किए गए मछुआरों को रिहा कराने के अलावा, दोनों देशों की सरकारों को संयुक्त कार्य समूह की जल्द से जल्द बैठक करनी चाहिए, जो आखिरी बार दिसंबर 2020 में हुई थी। इसके अलावा, सितंबर 2020 में आभासी शिखर सम्मेलन में भारत और श्रीलंका के प्रधानमंत्रियों की सहमति के अनुरूप नियमित परामर्श और द्विपक्षीय चैनलों के माध्यम से मछुआरों से संबंधित मुद्दों को हल करने के लिए बातचीत जारी रखनी चाहिए। भारत को गहरे समुद्र में मछली पकड़ने की परियोजना के लिए तमिलनाडु के पाक खाड़ी वाले जिलों के मछुआरों को अतिरिक्त प्रोत्साहन और रियायतें प्रदान करने पर भी विचार करना चाहिए। यह सद्भावना के रूप में उत्तरी प्रांत के मछुआरों के लिए सहायता का प्रस्ताव भी कर सकता है।

स्रोत- द हिंदू

भारत का तटस्थ रुख: रूस-यूक्रेन संघर्ष

भारत को यह स्पष्ट करने की आवश्यकता है कि संयुक्त राष्ट्र महासभा के साथ-साथ संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद और संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद में मतदान से दूर रहने का उसका निर्णय रूस के लिए कुछ भी मनमर्जी करने का समर्थन नहीं है। भारत रूस द्वारा दूसरे देश की संप्रभुता के निरंतर उल्लंघन और नागरिक ठिकानों पर हमलों को नजरअंदाज करने का जोखिम नहीं उठा सकता है।

भारत तेजी से बढ़ते हुए बहुध्रुवीय विश्व में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। विशेष रूप से विकासशील विश्व के लिए एक आवाज के रूप में। यूक्रेन के खिलाफ रूस के युद्ध में भारत की कठिन स्थिति उसे इस युद्ध के पीड़ितों की आवाज बनने से नहीं रोक सकती। एक उभरती हुई शक्ति के रूप में, भारत को एक वैश्विक नेतृत्वकर्ता के रूप में अपने दर्जे को कम किए बिना अपने हितों और अपने लोगों की सुरक्षा को सर्वोपरि रखना चाहिए। इस कारण भारत की तटस्थता की नीति उचित लगती है, जिसमें भारत ने संतुलित नीति अपनाई है।

भारत को विश्व और विशेष रूप से रूस को यह स्पष्ट कर देना चाहिए कि उसकी गैर-पक्षपातपूर्णता को हल्के में नहीं लिया जा सकता है और उसका दुरुपयोग नहीं किया ही जा सकता है।

स्रोत- द इकोनॉमिक टाइम्स

आईपीसीसी रिपोर्ट की चेतावनी

वैश्विक उथल-पुथल के बीच, जलवायु परिवर्तन पर अंतर सरकारी पैनल (आईपीसीसी) की रिपोर्ट ने गंभीर चेतावनी दी है। 1.5 डिग्री सेल्सियस के ग्लोबल वार्मिंग के साथ अगले दो दशकों में दुनिया अपरिहार्य कई जलवायु खतरों का सामना कर रही है; यहां तक कि अस्थायी रूप से इस वार्मिंग स्तर को पार करने के अतिरिक्त गंभीर प्रभाव होंगे, जिनमें से कुछ अपरिवर्तनीय होंगे। रिपोर्ट का एक प्रमुख बिंदु, विशेष रूप से दक्षिण एशिया के लिए, 'वेट बल्ब' तापमान (wet bulb temperature) प्रवृत्ति है, जो गर्मी और आर्द्रता के संयुक्त प्रभाव का एक सूचकांक है।

भारत जनसंख्या के मामले में सबसे सुभेद्य देशों में से एक है, जो समुद्र के स्तर में वृद्धि से प्रभावित होगा। सदी के मध्य तक, इसके लगभग 35 मिलियन लोगों को वार्षिक तटीय बाढ़ का सामना करना पड़ सकता है, यदि उत्सर्जन अधिक होगा तो सदी के अंत तक 45 मिलियन-50 मिलियन लोग जोखिम में होंगे। भारत को अपने अनुकूलन उपायों को तेज करना चाहिए और अपने कई कमजोर लोगों, जिनके पास खोने के लिए सबसे अधिक है, के भविष्य को सुरक्षित करने के लिए तत्काल कदम उठाना चाहिए।

स्रोत- द हिंदू

वनों के लिए पारिस्थितिक तंत्र दृष्टिकोण की आवश्यकता

दुनिया एक तिहरे पर्यावरणीय संकट से जूझ रही है - जलवायु परिवर्तन, जैव विविधता की हानि और प्रदूषण। वनों के स्वास्थ्य को सुनिश्चित करना प्रतिक्रिया का एक महत्वपूर्ण स्तंभ है। भारत के लिए इसका मतलब सिर्फ वन क्षेत्र बढ़ाना ही नहीं, बल्कि उसकी गुणवत्ता में भी सुधार लाना होगा। 2021 भारत वन सर्वेक्षण रिपोर्ट के अनुसार वन आवरण में 0.2% की वृद्धि दर्ज की गई है, ज्यादातर वन क्षेत्रों के बाहर दर्ज किए गए ।

क्योटो प्रोटोकॉल कार्बन सिंक के रूप में वनों की भूमिका को मान्यता देता है। प्राकृतिक वन एक व्यापक उद्देश्य की पूर्ति करते हैं, सबसे महत्वपूर्ण रूप से जीवन के लिए महत्वपूर्ण पारिस्थितिक तंत्र सेवाएं प्रदान करने में, जैसे कि जल विज्ञान प्रणाली (hydrological systems)। यह नीति और उपायों के माध्यम से प्राकृतिक वनों के स्वास्थ्य पर ध्यान केंद्रित करना महत्वपूर्ण बनाता है, जो उनके नुकसान को कम करते हैं, और अवक्रमित वनों (degraded forests) और मैंग्रोव की पुनर्बहाली में मदद करते हैं। तापमान वृद्धि को रोकने के लिए उत्सर्जन को कम करने और अनुकूलन पर ध्यान केन्द्रित करने की आवश्यकता है। यह वनों के लिए एक पारिस्थितिकी तंत्र दृष्टिकोण की आवश्यकता महसूस करता है ।

स्रोत- द इकोनॉमिक टाइम्स

पलायन रोकने के लिए मेडिकल सीटों को बढ़ाने की आवश्यकता

यूक्रेन में रूस द्वारा हमले ने इस बात को उजागर किया है कि भारत से बड़ी संख्या में छात्र मेडिकल (एमबीबीएस आदि) की पढ़ाई के लिए यूक्रेन जैसे यूरोपीय देशों का रुख करते हैं। प्रचलित आरक्षण और अन्य प्रणालियों को देखते हुए, इस बात की कोई गारंटी नहीं है कि नीट परीक्षा में 90 प्रतिशत अंक प्राप्त करने वाले छात्र को सरकारी मेडिकल कॉलेज में प्रवेश मिलेगा। मेडिकल शिक्षा हासिल करने का एक अन्य विकल्प यूक्रेन, चीन, रूस और फिलीपींस जैसे देशों में जाना है, जहां हवाई किराए सहित पांच वर्षीय पाठ्यक्रम की कुल लागत 25-30 लाख रुपये है।

भारत को 1,000 लोगों के लिए एक डॉक्टर के डब्ल्यूएचओ द्वारा निर्धारित मानदंड को पूरा करने के लिए 1.38 मिलियन डॉक्टरों की आवश्यकता है। इसे तभी पूरा किया जा सकता है जब इच्छुक मेडिकल छात्रों को अधिक सीटें उपलब्ध कराई जाएं। मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया को मेडिकल शिक्षा की गुणवत्ता से समझौता किए बिना मौजूदा मेडिकल कॉलेजों में छात्रों की संख्या को दोगुना करने के तरीके खोजने होंगे। भारतीय छात्रों के पलायन को रोकने के लिए इस क्षेत्र में तत्काल सुधार की आवश्यकता है।

स्रोत- फ्री प्रेस जर्नल