73वां संविधान अधिनियम

भारत में सदियों से चली आ रही पंचायत व्यवस्था जो कई कारणों से काफी समय से मृतप्रायः हो रही थी, को पुर्नजीवित करने के लिये संविधान में संशोधन किये गये। ये संशोधन 73वां व 74वां संशोधन अधिनियम कहलाये। तिहत्तरवें संविधान संशोधन अधिनियम द्वारा भारत के ग्रामीण क्षेत्रों में पंचायती राज व्यवस्था की स्थापना की गई। इसी प्रकार 74वें संविधान संशोधन अधिनियम द्वारा भारत के नगरीय क्षेत्रों में नगरीय स्वशासन की स्थापना की गई। इन अधिनियमों के अनुसार भारत के प्रत्येक राज्य में नयी पंचायती राज व्यवस्था को आवश्यक रूप से लागू करने के नियम बनाये गये। इस नये पंचायत राज अधिनियम से त्रिस्तरीय पंचायत व्यवस्था को सुचारू रूप से चलाने व स्थानीय स्तर पर उसे मजबूत बनाने के प्रयत्न किये जा रहे हैं। इस अधिनियम में जहां स्थानीय स्वशासन को प्रमुखता दीगईहै व सक्रिय किये जाने केनिर्देशदिएगएहैंवहीं दूसरी ओर सरकारों को विकेन्द्रीकरण हेतु बाध्य करने के साथ-साथ वित्तीय ससांधनों की उपलब्धता सुनिश्चित करने के लिये वित्त आयोग का भी प्रावधान किया गया है।

ग्राम पंचायत के कार्य

  • पंचायत क्षेत्र के विकास के लिए वार्षिक योजनाएं तैयार करना
  • वार्षिक बजट तैयार करना
  • प्राकृतिक आपदा में साहयता-कार्य पूरा करना
  • लोक सम्पत्ति से अतिक्रमण हटाना
  • कृषि और बागवानी का विकास और उन्नति
  • बंजर भूमि का विकास
  • पशुपालन, डेयरी उद्योग और मुर्गीपालन
  • चारागाह का विकास
  • गाँवों में मत्स्यपालन का विकास
  • सड़कों के किनारे और सार्वजनिक भूमि पर वृक्षारोपण
  • ग्रामीण, खादी एवं कुटीर उद्योगों का विकास
  • ग्रामीण गृह-निर्माण, सड़क, नाली पुलिया का निर्माण एवं संरक्षण
  • पेय जल की व्यवस्था
  • ग्रामीण बिजलीकरण एवं गैर-परम्परागत ऊर्जास्रोत की व्यवस्था एवं संरक्षण
  • प्राथमिक एवं माध्यमिक विद्यालयों सहित शिक्षा, व्यस्क एवं अनौपचारिक शिक्षा, पुस्तकालय, सांस्कृतिक कार्यक्रम आदि की व्यवस्था करना
  • ग्रामीण स्वस्थता, लोक स्वास्थ्य, परिवार कल्याण कार्यक्रम, महिला एवं बाल विकास, विकलांग एवं मानसिक रूप से मंद व्यक्तियों, कमजोर वर्ग खासकर अनुसूचित जाती एवं जनजाति के कल्याण-सबंधी कार्यक्रमों को पूरा करना।
  • जन वितरण प्रणाली की उचित व्यवस्था करना।
  • धर्मशालाओं, खटालों, खातालों, कसाईखानों, सार्वजनिक पार्क, खेलकूद का मैदान, झोपड़ियों का निर्माण करना।

73वां संविधान संशोधन अधिनियम अर्थात फ्नया पंचायती राज अधिनियमय् प्रत्यक्ष प्रजातन्त्र को जनता तक पहँचाने का एक उपकरण है। गांधी जी के स्वराज के स्वप्न को साकार करने की पहल है। पंचायती राज स्थानीय जनता का, जनता के लिये, जनता के द्वारा शासन है।

73वां संविधान संशोधन पंचायती राज से संबंधित है, जिसमें पंचायतों से संबंधित व्यवस्था का पूर्ण विधान किया गया है। इसकी निम्नलिखित विशेषताएं हैं।

  1. संविधान में ‘‘ग्राम सभा’’ को पंचायती राज की आधारभूत इकाई के रुप में स्थान मिला है।
  2. पंचायतों की त्री-स्तरीय व्यवस्था की गयी है। ग्राम स्तर पर ग्राम पंचायत, क्षेत्र स्तर पर (ब्लाक स्तर) क्षेत्र पंचायत व जिला स्तर पर जिला पंचायत की व्यवस्था की गयी है।
  3. प्रत्येक स्तर पर पंचायत के सदस्यों का चुनाव प्रत्यक्ष मतदान के द्वारा की जाने की व्यवस्था है। लेकिन क्षेत्र व जिला स्तर पर अध्यक्षों के चुनाव चुने हुए सदस्यों में से, सदस्यों द्वारा किये जाने की वयवस्था है।
  4. 73वें संविधान संशोधन में अनुसूचित जाति व अनुसूचित जनजाति के लिए उस क्षेत्र की कुल जनसंख्या में उसके प्रतिशत के अनुपात से सीटों के आरक्षण की व्यवस्था है। महिलाओं के लिए कुल सीटों का एक तिहाई भाग प्रत्येक स्तर पर आरक्षित किया गया है। अनुसूचित जातियों व अनुसूचित जनजातियों के लिए उनकी जनसंख्या के अनुपात में ही आरक्षण की व्यवस्था है। प्रत्येक स्तर पर अध्यक्षों के कुल पदों का एक-तिहाई भाग महिलाओं के लिए आरक्षित किया गया है।
  5. अधिनियम में पंचायतों का कार्यकाल (पांच वर्ष) निश्चित किया गया है। यदि कार्यकाल से पहले ही पंचायत भंग हो जाय तो 6 माह के भीतर चुनाव कराने की व्यवस्था है।
  6. अधिनियम के द्वारा पंचायतों से संबंधित सभी चुनावों के संचालन के लिए राज्य चुनाव आयोग को उत्तरदायी बनाया गया है।
  7. अधिनियम के द्वारा प्रत्येक राज्य में राज्य वित्त आयोग का गठन किया गया है, ताकि पंचायतों के पास पर्याप्त साधन उपलब्ध हो। जिससे विभिन्न विकास कार्य किये जा सके।