बलवंतराय मेहता समिति

भारत में "पंचायती राज" की स्थापना के उद्देश्य से ही भारत सरकार ने बलवंतराय मेहता की अध्यक्षता में एक समिति की नियुक्ति की थी।इस समिति ने भारतीय लोकतंत्र की सफलता के लिए लोकतंत्र की इमारत को मजबूत करने की आवश्यकता पर बल दिया। इस समित्तिका गठन केंद्र सरकार द्वारा जनवरी 1957 में किया गया और इस समित्तिने अपनी रिपोर्ट नवंबर 1957 में सौंपी। इसके लिए उसने प्रजातांत्रिक विकेंद्रीकरण के सिद्धांत को लागू करने की सिफारिश की। इस समिति ने निम्नलिखित सुझाव दिए -

  1. सरकार को अपने कुछ कार्यों और उत्तरदायित्वों से मुक्त हो जाना चाहिए और उन्हें एक ऐसी संस्था को सौंप देना चाहिए, जिसके क्षेत्रधिकार के अंतर्गत विकास के सभी कार्यों की पूरी जिम्मेदारी रहे- सरकार का काम सिर्फ इतना रहे कि ये इन संस्थाओं को पथ-प्रदर्शन और निरीक्षण करती रहे।
  2. लोकतंत्र की आधारशिला को मजबूत बनाने के लिए राज्यों की उच्चतर इकाइयों (जैसे प्रखंड, जिला) से ग्राम पंचायतों का अटूट सम्बन्ध हो। इसलिए प्रखंड और जिले में भी पंचायती व्यवस्था को अपनाना आवश्यक है।
  3. प्रखंड-स्तर पर एक निर्वाचित स्वायत्त शासन संस्था की स्थापना की जाए जिसका नाम पंचायत समिति रखा जाए- इस पंचायत समिति का संगठन ग्राम पंचायतों द्वारा हो।
  4. जिला-स्तर पर एक निर्वाचित स्वायत्त शासन संस्था की स्थापना की जाए जिसका नाम जिला परिषद् रखा जाए- इस जिला परिषद् का संगठन पंचायत समितियों द्वारा हो।

ग्राम पंचायत के आय के स्रोत

  • भू-राजस्व की धनराशि के अनुसार 25 प्रतिशत से 50 प्रतिशत तक पंचायत कर।
  • प्रांतीय सरकार अथवा स्थानीय अधिकारियों द्वारा अनुदान।
  • मनोरंजन कर।
  • गांव के मेले, बाजारों आदि पर कर।
  • पशुओं तथा वाहनों आदि पर कर।
  • मछली तालाब से प्राप्त आय।
  • नालियों, सड़कों की सफाई तथा रोशनी के लिए कर।
  • कूड़ा-करकट तथा मृत पशुओं की बिक्री से आय।
  • चूल्हा कर।
  • व्यापार तथा रोजगार कर।
  • संपत्ति के क्रय-विक्रय पर कर।
  • पशुओं का रजिस्ट्रेशन फीस।
  • दुग्ध उत्पादन कर आदि।