बेसल मानदंड और भारत

बैंक पर्यवेक्षण पर बेसल समिति (Basel Committee on Bank Supervision.BCBS) द्वारा समझौतों का एक सेट जो पूंजीगत जोखिम, बाजार जोखिम तथा संचालकीय जोखिम के संदर्भ में बैंकिंग विनियामकों पर सिफारिशें देती है। मानदंडों के मुख्य उद्देश्य के तहत यह सुनिश्चित किया जाता है कि वित्तीय संस्थान अपनी देयताओं व अप्रत्याशित घाटों की पूर्ति के लिए पर्याप्त पूंजी अपने पास सुरक्षित रखें।

बेसल I: बैंक पर्यवेक्षण पर बेसल कमेटी द्वारा वित्तीय संस्थानों द्वारा साख जोखिम को कम करने हेतुअपने पास रखे जाने वाली न्यूनतम पूंजी अनिवार्यता है बेसल.प् मानदंड। ये मानदंड पहली बार वर्ष 1988 में रखे गये थे।इसके तहत अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कारोबार करने वाले वित्तीय संस्थानों को अपनी जोखिम भारांश संपदा (Risk Weighted Assets) के बराबर या न्यूनतम 8 प्रतिशत टीयर.1 व टीयर.2 पूंजी अपने पास रखना अनिवार्य किया गया है। उदाहरण के तौर पर यदि किसी बैंक की जोखिम भारांश संपदा 100 मिलियन डॉलर का है तो उसे न्यूनतम 8 मिलियन डॉलर की पूंजी अपने पास रखनी होगी।इसका उद्देश्य मुख्यतः वित्तीय संस्थानों में जमाकर्ताओं के धन को सुरक्षित रखना रहा है।

बेसल II: बेसल प्प्ए बेसल मानदंड का दूसरा चरण है। यह 26 जून, 2004 को जारी किया गया और वर्ष 2006 से लागू करने का प्रावधान किया गया। जहां बेसल एक साख जोखिम पर केंद्रित था वहीं बेसल दो का उद्देश्य वित्तीय संस्थानों द्वारा अलग रखे जानी वाली पूंजी के लिए मानक तैयार करना व उसका विनियमन करना था। बैंकों को निवेश व कर्ज देने की अपनी गतिविधियों के साथ जुड़े जोखिमों के मद्देनजर अलग से पूंजी रखना जरूरी होता है। बेसल प्प् मानदंड मुख्यतः तीन कारकों पर प्रभाव डालता है। ये हैं_ पूंजी पर्याप्तता, पर्यवेक्षीय मूल्यांकन व बाजार अनुशासन। बेसल कमेटी इन तीनों कारकों को जोखिम प्रबंधन के तीन स्तंभ मानती है। बेसल 2 मानदंड की पूंजी पर्याप्तता स्तंभ के तहत बैंकों के लिए 8 प्रतिशत की पूंजी पर्याप्तता अनुपात (Capital Adequacy Ratio.CAR) या जोखिम भारांश संपदा अनुपात (Capital Risk Weighted Assets Ratio.CRAR) बनाए रखना अनिवार्य है। सामान्यतः बैंक तीन प्रकार की जोखिमों का सामना करते हैं_ ऋण संबंधी जोखिम, संचालकीय जोखिम व बाजार जोखिम। पर्यवेक्षीय मूल्यांकन के तहत बेसल 2 मानदंड यह सुनिश्चित करना चाहता है कि बैंक न केवल अपने जोखिमों की भारपाई के लिए अपने पास पर्याप्त पूंजी रखें वरन् अपने जोखिमों की निगरानी व प्रबंधन के क्रम में बेहतर जोखिम प्रबंधन तकनीक का उपयोग व विकास भी करें। बाजार अनुशासन बैंकों पर अपनी बैंकिंग व्यवसाय को सुरक्षित, सुदृढ़ व प्रभावी तरीके से संचालन करने का निर्देश देता है। बैंकों के लिए अपनी पूंजी, जोखिम विवरण या एक्सपोजर देना अनिवार्य है ताकि बाजार के भागीदार उस बैंक की पूंजी पर्याप्तता का अनुमान लगा सकें।

बेसल III: वर्ष 2008 की अमेरिकी सब प्राइम संकट व वैश्विक संकट के परिप्रेक्ष्य में बेसल 3 मानक तैयार किया गया। बेसल 2 में किसी खास बैंक के जोखिमों व विनियमनों को केंद्र में रखा गया था पर आर्थिक संकट को देखते हुये पूरी आर्थिक व्यवस्था की वित्तीय स्थिरता पर बेसल.3 मानक को केंद्र में रखा गया।

जोखिम प्रबंधन तंत्र को मजबूत करने हेतु भारतीय रिजर्व बैंक ने 2 मई, 2012 को नई वैश्विक पूंजी पर्याप्तता मानदंडों को कार्यान्वयन के लिए दिशा.निर्देश जारी किए। इस मानदंड को ‘बेसल.3’ के नाम से जाना जाता है जिसे पूरी तरह से राष्ट्रीय स्तर पर 31 मार्च, 2018 तक लागू किया जाना था जिसे भारतीय रिजर्व बैंक ने 27 मार्च, 2014 को भारतीय बैंकों के लिए बेसल.3 पूंजी पर्याप्ता मानदंडों के अनुपालन की समय सीमा को बढ़ाकर 31 मार्च, 2019 कर दिया।

रिजर्व बैंक द्वारा बेसल.3 के मानदंडों को 1 अप्रैल, 2013 से अपनाया गया था। रिजर्व बैंक के दिशा.निर्देशों में बैंकों से 9% के न्यूनतम कुल पूंजी (Minimum Total Capital.MTC) को बनाए रखने की प्रत्याशा जताई गई है। हालांकि बेसल समिति ने कुल जोखिम भारित परिसंपत्तियों(Risk Weighted Assets.RWAs) को 8% तक के ही स्तर को निर्धारित किया है.

  • कॉमन इक्विटी टीयर 1 (CET 1) पूंजी, जोखिम भारित परिसंपत्तियों का कम से कम 5.5% होना चाहिए।
  • न्यूनतम कॉमन इक्विटी टीयर 1 पूंजी, जोखिम भारित परिसंपत्तियों का 5.5% होना चाहिए।
  • बैंकों को कॉमन इक्विटी टीयर 1 पूंजी के रूप में पूंजी संरक्षण बफर (Capital Conservation Buffer.CCB) जोखिम भारित परिसंपत्तियों का 2.5% बनाए रखना चाहिए।

भारतीय बैंकों में बेसल 3 मानक को 31 मार्च, 2019 तक लागू करने के लिए 140 बिलियन डॉलर तक की पूंजी की दरकार होगी।