पर्यावरणीय शरणार्थी

प्राकृतिक आपदाओं यथा सूखा, अकाल, बढ़ते हुए समुद्री जल स्तर जो जलवायु परिवर्तन की वजह से देखने को मिल रहे हैं वैश्विक स्तर पर लाखों लोगों के विस्थापन के कारण बने हैं। ऐसे शरणार्थियों को आजकल ‘पर्यावरणीय शरणार्थी’ (environmental refugees) की संज्ञा दी जा रही है। एक अंतरराष्ट्रीय संस्था इंटरनल डिसप्लेसमेंट मॉनीटरिंग सेंटर, जो कि आंतरिक विस्थापन का अध्ययन करतीहै के अनुसार वर्ष 2008 से प्राकृतिक आपदाओं के कारण प्रतिवर्ष 24 मिलियन लोग प्रतिवर्ष अपने निवास स्थान को छोड़ने के लिए मजबूर हो रहे हैं।

अगर यही स्थिति बनी रही तो इस शताब्दी के अंत तक समूचे विश्व में लगभग आधा बिलियन लोग विस्थापित होने के लिए मजबूर हो जाएंगे। संयुक्त राष्ट्र शरणार्थी कन्वेंशन 1951 (UN Refugee Convention 1951) प्रजाति, धर्म, राष्ट्रीयता तथा किसी समूह/समुदाय विशेष से ताल्लुक रखने के कारण विस्थापित होने को मजबूर हो जाते हैं, को कुछ अधिकार प्रदान करता है। ये अधिकार उन्हें भेदभाव, अनावश्यक दंड तथा दमन का विरोध करनेवाले सिद्धांतों को ध्यान में रखकर दिए जाते हैं। लेकिन पर्यावरणीय हादसों के कारण विस्थापित लोगों को संयुक्त राष्ट्र संघ के अंतर्गत किसी भी प्रकार के अधिकार नहीं दिए गए हैं क्योंकि ऐसे विस्थापितों को संयुक्त राष्ट्र के अंतर्गत किसी प्रकार की मान्यता प्राप्त नहीं है। वस्तुतः अंतरराष्ट्रीय कानून के मुताबिक इन्हें ‘शरणार्थी’ की संज्ञा नहीं दी गई है। अतः इन्हें मुआवजे तथा पुनर्वास संबंधी अधिकार प्रदान नहीं किए गए हैं।

सितंबर 2015 में पेरिस में आयोजित 21वीं कांफ्रेंस ऑफ पार्टीज के पहले न्यूजीलैंड ने एक व्यक्ति को तथा उसके परिवार को शरणार्थी के रूप में स्वीकार करने से इंकार कर दिया। किरिबाती के आओएन टिटोटा ने न्यूजीलैंड के न्यायालय में पर्यावरणीय शरणार्थी के रूप में स्वीकार करने के लिए अपील किया था परंतु न्यूजीलैंड के न्यायालय द्वारा उसकी अपील को इस आधार पर ठुकरा दिया गया कि वह पर्यावरणीय आपदा के कारण विस्थापित होने के लिए मजबूर नहीं हुआ है और साथ ही न्यायालय द्वारा यह भी कहा गया कि संयुक्त राष्ट्र के अंतर्गत ऐसे विस्थापितों के लिए कोई प्रावधान नहीं है। अतः उस व्यक्ति को पुनः अपने मूल स्थान पर वापस भेज दिया गया जहां प्राकृतिक हादसा यथा तूफान, बाढ़ तथा जल-प्रदूषण की समस्या होना जैसे आम बात है।

पर्यावरणीय हादसों के कारण विस्थापित लोगों को अंतरराष्ट्रीय कानून के अंतर्गत मान्यता नहीं मिलने के कारण ये लोग कानूनी रूप से अधर में लटकने को मजबूर हो जाते हैं जो इनके अस्तित्व के लिए खतरा बन जाता है। इस परिदृश्य को दो तरीके से बदला जा सकता है- प्रथम, इसके लिए संयुक्त राष्ट्र रिफ्रयुजी कंवेंशन को और व्यापक बनाकर पर्यावरणीय शरणार्थियों के लिए प्रावधान किया जाए या फिर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर एक अलग संधि/मसौदा तैयार कर पर्यावरणीय घटनाओं के कारण विस्थापित लोगों की समस्या का समाधान किया जाए।