भारत में मुद्रास्फीति

भारत में मुद्रास्फीति उत्पन्न होने का प्रमुख कारण आपूर्ति संकट, सूखा और उनके कारण खाद्य पदार्थों की कीमत में होने वाली वृद्धि रहा है। या फिर कच्चे तेल के अंतरराष्ट्रीय कीमतों में वृद्धि के कारण ऐसा होता रहा है। यदा.कदा मुद्रास्फीति में मांग के दबाव का भी प्रभाव दिखाई देता है। छठे वेतन आयोग की सिफारिशों के फलस्वरूप सरकारी कर्मचारियों के वेतन में हुई वृद्धि को इसका कारण माना जाता है। पिछले दशक के शुरुआती हिस्से में अपेक्षाकृत हल्की और स्थिर मुद्रास्फीतिकारी अवधि की तुलना में, थोक मूल्य सूचकांक मुद्रास्फीति 2008.09 में बढ़नी शुरू हुई और इसमें तेजी निरंतर बनी रही। दबाव मुख्यतः प्राथमिक और ईंधन उत्पादों पर था और इन पदार्थों में औसत मुद्रास्फीति 2008.09 के बाद से लगातार दो अंकीय रही। इसकी सापेक्षतः विनिर्मित उत्पादों की मुद्रास्फीति अपेक्षाकृत स्थिर बनी रही।

वैश्विक आर्थिक संकट और इसके भारत में प्रभावों के कारण 2009.10 में इसमें तीव्र गिरावट आई और 2011.12 के आरंभ में इसमें तेजी आनी शुरू हुई और यह लगभग 5 प्रतिशत दीर्घावधिक औसत से पार जा पहुंची। अलग.अलग उत्पाद समूहों में से, खाद्य उत्पादों, पेय पदार्थ, वस्त्र, रसायन और मूल धातुओं में मुद्रास्फीति मुख्यतया विश्वभर में पदार्थों के उच्च मूल्यों और लागत बढ़ने के दबावों के कारण उच्च बनी रही।