आईयूसीएन

इण्टरनेशनल यूनियन फॉर कन्जर्वेशन ऑन नेचर एण्ड नेचुरल रिसोर्सेज (IUCN) जिसे अब वर्ल्ड कर्न्जेशन यूनियन (WCU) के नाम से जाना जाता है, इसने अपने अस्तित्व के लिए झेल रहे जोखिम के आधार पर प्रजातियों की विभिन्न श्रेणियों की सन् 1988 में विस्तृत सूची तैयार की थी। इस तरह पौधों एवं जन्तुओं की संकटापन्न एवं विलोपन के कगार पर खड़ी प्रजातियों की सूची का समय-समय पर पुनरीक्षण किया जाता है तथा उसमें संशोधनभी किया जाता है। संकटापन्न प्रजातियों की इस तरह की सूची को रेड डेटा बुक या रेड डेटा लिस्ट कहते हैं। ICUN द्वारा जारी की गई संकटापन्न प्रजातियों की रेड लिस्ट में प्रजातियों की निम्न श्रेणियों को शामिल किया गया है।

  • विलुप्त प्रजातिः पौधों एवं जन्तुओं की उन प्रजातियों को विलुप्त प्रजाति कहा जाता है जिनका प्राकृतिक वन्य क्षेत्रें तथा प्रबन्धित क्षेत्रें यथा-फसलों के क्षेत्र, स्फूटनशाला- hatcherie पूर्णतया सफाया हो गया हो।
  • वन्य क्षेत्रें में विलुप्त प्रजातिः पौधों एवं जन्तुओं की उन प्रजातियों को वन्य क्षेत्र में विलुप्त प्रजाति कहते हैं जो वन्य क्षेत्रें की प्राकृतिक दशाओं में तो पूर्णताया विलुप्त हो गई हैं परन्तु मनुष्य द्वारा प्रबंधित क्षेत्रें में ऐसी प्रजातियों के कतिपय सदस्य अब भी बचे होते हैं।
  • संकटापन्न प्रजातिः उन प्रजातियों को संकटापन्न प्रजाति कहा जाता है जिनके 70 प्रतिशत सदस्यों का विगत 10 वर्षों में क्षय हो चुका है या उस प्रजाति की 3 पीढि़यों के सदस्यों में 70 प्रतिशत का ह्रास हो गया हो। इनमें से जिसका प्रतिशत सबसे अधिक होता है वही संकटापन्न प्रजाति होती है।
  • अति संकटापन्न प्रजातिः वे प्रजाति होती है जिनके 80 प्रतिशत सदस्यों का विगत 10 वर्षों में क्षय हो चुका हो, या उनकी 3 पीढि़यों का पूर्णतया सफाया हो गया हो, इनमें से जो भी अधिक हो।
  • सुभेद्य प्रजातिः कोई प्रजाति विलोपन के लिए समय सुभेद्य हो जाती है जबकि विगत 10 वर्षों में या तीन पीढि़यों में उस प्रजाति के 50 प्रतिशत सदस्यों का नाश हो गया हो, इनमें से जो भी अधिक हो।
  • लगभग संकटस्थ प्रजातिः उस प्रजाति को लगभग संकटस्थ प्रजाति कहा जाता है जो उपर्युक्त संकटापन्न अति संकटापन्न तथा सुभेद्य प्रजातियों की अवस्थाओं से ऊपर हो परन्तु इस प्रजाति के सदस्यों का ह्रास दर उच्च हो।
  • न्यूनतम चिन्ता वाली प्रजातिः उस प्रजाति को न्यूनतम चिन्ता वाली प्रजाति कहा जाता है जिनके सदस्यों की संख्या की वन्य क्षेत्रें में बहुलता होती है।