न्यायिक सुरक्षा अदालतें

ग्राम अदालत

2007 में केन्द्र सरकार के निर्णय के अनुसार प्रत्येक ग्राम सभा क्षेत्र में ग्राम पंचायत का प्रावधान किया गया है। जो की 5 वर्षों के लिए निर्वाचित कार्यपालिका का काम करती है। इससे वंचित वर्ग को स्थानीय स्तर पर त्वरित एवं सुलभ न्याय पाने में सुविधा होती है।

लोक अदालतें

लोक अदालतों को कानूनी सेवा प्राधिकरण अधिनियम, 1987 के तहत कानूनी दर्जा दिया जाता है। लोक अदालतें कानूनी सेवा प्राधिकरणों/समितियों द्वारा सामान्य तरीके से अर्थात कानूनी सेवा प्राधिकरण अधिनियम की धारा 19 के तहत आयोजित की जाती हैं। इनमें निम्नलिखित प्रकार के मामले आते हैं-

  • वैवाहिक/पारिवारिक मामले, आपराधिक मामले जो बढ़ सकते हैं जैसे श्रम विवाद, कामगारों को मुआवजा, बैंक वसूली मामले, नगरपालिका संबंधी मामले आदि आते हैं।
  • इस जनोपयोगी सेवा के साथ विवाद वाले पक्ष को कानूनी सेवा (संशोधन) अधिनियम, 2002 की धारा 22 (बी) के तहत स्थायी लोक अदालत को आवेदन करना होता है।

वंचित समूहों के न्यायिक सुरक्षा के उपाय

  • दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 320 में उन अपराधों की सूची दी गई है, जिनमें पक्षकार आपस में समझौता करके लोक अदालतों के माध्यम से मुकदमों का निपटारा कर सकते हैं।
  • इस सूची में अनेक छोटे अपराधों को जोड़कर इस प्रावधान का दायरा बढ़ाया जाना चाहिए।
  • मलीमथ कमेटी (2000) के सुझाव ‘कुछ संगीन अपराधों को छोड़ कर बाकी मामलों को असंज्ञेय अपराध के रूप में पुनः वर्गीकृत किया जाए ताकि पुलिस इन मुकदमों में गिरफ्रतारी ही न कर सके' को लागू करना चाहिए।
  • सरकार को डिजिटल तकनीक का लाभ उठाना चाहिए और इसकी मदद से फास्ट ट्रैक कोर्ट को जेल से ही कैदियों का बयान ले लेना चाहिए।
  • सबूतों को जमा करने के लिए नवीन तकनीक, जैसे- मोबाइल कैमरे, मैसेज और आधार कार्ड का इस्तेमाल करना चाहिए।