नैनोटेक्नोलॉजी

21वीं सदी नैनो सदी बनने जा रही है। आज वस्तुओं के आकार को छोटा और मजबूत बनाने की होड़ मची हुई है। विभिन्न क्षेत्रें में नैनो तकनीक विकसित करने के लिए दुनिया भर में बड़े पैमाने पर शोध हो रहे हैं। अति सूक्ष्म आकार, बेजोड़ मजबूती और टिकाऊपन के कारण इलेक्ट्रॉनिक्स, मेडिसिन, ऑटो, बायोसाइंस, पेट्रोलियम, फॉरेंसिक और रक्षा, कृषि जैसे तमाम क्षेत्रें में नैनो टेक्नोलॉजी की असीम संभावनाएं बन रही हैं।

नैनोटेक्नोलॉजीकी अवधारणा: नैनोसाइंस और नैनोटेक्नोलॉजी के पीछे का विचार कैलिफोर्निया इंस्टीटड्ढूट ऑफ टेक्नोलॉजी में एक अमेरिकी भौतिक सोसाइटी की बैठक में भौतिक विज्ञानी रिचर्ड फेनमैन द्वारा 29 दिसंबर, 1959 को तब दिया गया जब नैनोटेक्नोलॉजी शब्द का प्रयोग भी नहीं हुआ था। अपने भाषण में, फेनमैन ने एक प्रक्रिया का वर्णन किया जिसमें वैज्ञानिक अलग-अलग परमाणुओं और अणुओं को नियंत्रित करने में सक्षम होंगे। उससे एक दशक बाद, अत्याधुनिक मशीनिंग के अपने अन्वेषण में, प्रोफेसर नोरियो तनुगुची ने 1974 में नैनोटेक्नोलॉजी शब्द का प्रयोग किया। यह कल्पना करना कठिन है कि नैनो तकनीक कितनी छोटी है। एक नैनोमीटर एक मीटर का एक बिलियन वां भाग (10- 9 मीटर) है। नैनोटेक्नोलॉजी नैनो स्केल (1 से 100 नैनोमीटर) पर आयोजित विज्ञान, इंजीनियरिंग और प्रौद्योगिकी है स नग्न आंखों से परमाणु आकर के कणों को देखना असंभव है। स्कैनिंग टनलिंग माइक्रोस्कोप (एसटीएम) और परमाणु बल माइक्रोस्कोप (एएफएम) के विकास से नैनोटेक्नोलॉजी का जन्म हुआ। वर्तमान में वैज्ञानिकों और इंजीनियरों ने नैनो स्केल पर सामग्री (materials) बनाने के लिए कई तरह की विधियों की खोज कर ली है जिससे कि उनकी उच्च शक्ति, हल्के वजन, हल्के स्पेक्ट्रम के बढ़ते नियंत्रण, और अधिक रासायनिक प्रतिक्रिया का लाभ उठाया जा सके।

वहीं नैनोटेक्नोलॉजी को लोकप्रिय बनाने में के- एरिक ड्रेक्सलर, जिन्होंने सन् 1991 में मैसाचुसेट्स इंस्टिट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी से मॉलिक्यूलर नैनोटेक्नोलॉजी विषय पर पी-एच-डी- की डिग्री हासिल की थी, ने बड़ी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। डेªक्सलर की अवधारणा के आधार पर ही नैनोटेक्नोलॉजी को मॉलिक्यूलर नैनोटेक्नोलॉजी या मॉलिक्यूलर मैनुफैक्चरिंग भी कहा जाता है।

नैनोतकनीक में दो प्रमुख पद्वतियों को अपनाया गया है। पहली पद्वति में पदार्थ और उपकरण आणविक घटकों से बनाए जातें हैं जो अणुओं के आणुविक अभिज्ञान के द्वारा स्व-एकत्रण के रसायनिक सिधान्तों पर आधरिथ है। दूसरी पद्वति में नैनो-वस्तुओं का निर्माण बिना अणु-सतह पर नियंत्रण के, बडे सत्त्वों से किया जाता है। नैनोतकनीक में आवेग माध्यम और कोलाइडल् विज्ञान पर नवीकृत रुचि और नयी पीढी के विशलेष्णात्मक उपकरण, जैसे कि परमाण्विक बल सूक्ष्मदर्शी यंत्र (AFM) और अवलोकन टनलिंग सूक्ष्मदर्शी यंत्र (STM)। इन यन्त्रें के साथ इलेक्ट्रॉन किरण अश्मलेखन और आणविक किरण एपिटैक्सी जैसे विधिओं के प्रयोग से नैनो-विन्यासों के प्रकलन से इस विज्ञान में उन्नति हुई।

नैनोटेक्नोलॉजी के विविध अनुप्रयोग

कृषि क्षेत्र में नैनोटेक्नोलॉजीः मृदा में ही फसलें उगती हैं, अतः सभी प्राकृतिक संपदाओं में मृदा का सर्वाधिक महत्व है। लेकिन भू-क्षरण, रासायनिक उर्वरकों तथा कीटनाशकों से उत्पन्न प्रदूषण तथा मानवीय क्रियाकलापों आदि नाना कारणों के चलते आज मिट्टी की गुणवत्ता बहुत प्रभावित हो गई है। अतः मृदा प्रबंधन बहुत आवश्यक है। नैनोटेक्नोलॉजी की मृदा प्रबंधन में महत्वपूर्ण भूमिका हो सकती है। इसकी मदद से न केवल मिट्टी की गुणवत्ता में सुधार लाया जा सकता है बल्कि इसमें मौजूद प्रदूषणकारी तत्वों एवं प्रदूषकों से भी इसे मुक्ति दिलाई जा सकती है।

  • विश्व स्तर पर ऐसी कई परियोजनाएं चलाई जा रही हैं जहां नैनो कणों की मदद से मृदा प्रबंधन किया जा रहा है। हालांकि ये परियोजनाएं अभी अपने आरंभिक स्तर पर ही हैं लेकिन इनसे प्राप्त सफ़लता ने भविष्य के लिए नई संभावनाओं के द्वार तो खोले ही हैं।
  • इस दिशा में पहल करते हुए अमेरिकी संस्थान सिकोया पेसिफिक रिसर्च ऑफ उटा ने महत्वपूर्ण अनुसंधान कार्य किया है। इस संस्थान ने सन् 2003 में ‘साइल सेट’ नामक महत्वपूर्ण माटी बंधन यानी ‘साइल बाइंडिंग’ पद्धति का विकास किया था जिसकी सराहना कृषि के क्षेत्र में एक उल्लेखनीय उपलब्धि के रूप में हुई है। साइल सेट पद्धति नैनो स्तर पर रासायनिक अभिक्रियाओं द्वारा मिट्टी को बांधने में मददगार होती है। परीक्षणों द्वारा पाया गया है कि साइल सेट में मिट्टी को लंबे समय तक बांधने की क्षमता होती है। आमतौर पर देखा गया है कि ढलान युक्त या पहाड़ी क्षेत्रें में जल के तेज बहाव या कुछ अन्य कारणों से भू-क्षरण या भूमि कटाव के चलते मृदा के पोषक तत्व नष्ट होते जाते हैं और अंततः जमीन बंजर हो जाती है। इसका उत्पादन पर सीधा असर पड़ता है। अतः मिट्टी को बांधे रखने में नैनो स्तरीय मृदा बंधन पद्धति का विशेष महत्व है।
  • इस दिशा में मिट्टी की गुणवत्ता में सुधार भी एक महत्वपूर्ण कदम है। कनाडा की ओटावा स्थित कंपनी ईटीसी से संबंद्ध वी- जैंग झैंग ने कुछ वर्ष पूर्व एक ‘नैनो क्लीन-अप सिस्टम’ का विकास किया था। उनके द्वारा विकसित पद्धति में पहले प्रदूषणकारी तत्वों से प्रभावित मृदा को चिह्नित किया जाता है, फिर उस मृदा में लोह नैनो कणों को इंजेक्शन द्वारा पहुंचाया जाता है।
  • मृदा में पहुंचते ही ये नैनो कण अपना असर दिखाते हैं। जमीन को सींचने के लिए साधारणतया जिस भौम या भूमिगत जल (ग्राउंड वॉटर) का इस्तेमाल किया जाता है उसी जल के प्रवाह के साथ बहते हुए ये नैनो कण आगे बढ़ते हैं और मिट्टी में मौजूद प्रदूषणकारी तत्वों से उसे मुक्ति दिलाते जाते हैं। उल्लेखनीय है कि मृदा सुधार के पारंपरिक तरीकों के अंतर्गत मिट्टी को खोदकर निकाला जाता है। अनुसंधानकर्ताओं का कहना है कि नैनो आधारित पद्धति पारंपरिक पद्धति की तुलना में न केवल कम लागत वाली है बल्कि अधिक प्रभावी भी है।
  • प्रदूषणकारी तत्वों से न केवल मृदा बल्कि भौमजल भी प्रदूषण का शिकार होता है। अतः भौमजल शोधन का फसलों के लिए सीधा महत्व है क्योंकि अधिकांश सिंचाई भौमजल द्वारा ही होती है। भौमजल शोधन हेतु अमेरिका में महत्वपूर्ण अनुसंधान कार्य किया जा रहा है। ऑर्गेनाइड नामक अमेरिकी कंपनी ने एलुमिनियम ऑक्साइड से निर्मित बेहद सूक्ष्म नैनो तंतुओं (नैनो फाइबर्स) का विकास किया है जिनका व्यास करीब 2 नैनोमीटर है। ऐसे नैनो तंतुओं से बने छन्नकों यानी फिल्टरों का प्रयोग संदूषित जल से वाइरस, बैक्टीरिया तथा प्रोटोजोआ जैसे सूक्ष्म जीवों को दूर करने के लिए किया जा सकता है। नैनो झिल्लियों यानी नैनो मैम्ब्रेन्स के प्रयोग द्वारा भी न केवल जल शोधन बल्कि उसका विलवणीकरण भी किया जा सकता है। हालांकि ये तरीके महंगे पड़ते हैं लेकिन इस दिशा में मिली सफलता ने वैज्ञानिकों के हौसले बहुत बुलंद किए हैं और वे नित नवीन तरीके ईजाद करने के लिए निरंतर अपने अनुसंधान कार्यों में लगे हैं।
  • मृदा की उर्वरा शक्ति को बढ़ाने के लिए रासायनिक उर्वरकों का व्यापक तौर पर प्रयोग किया जाता है। लेकिन अधिक प्रयोग से न केवल मृदा बल्कि भूमिगत जल भी प्रदूषित होता है। अतः सही परिमाण में अगर उर्वरकों का इस्तेमाल किया जाए तो इससे धन की बचत के साथ-साथ प्रदूषण की समस्या से भी निजात मिल सकती है। इसी तरह सीमित जल से ही अगर सिंचाई हो सके तो इससे जल की भारी बचत हो सकती है।

चिकित्सा के क्षेत्र में नैनोटेक्नोलॉजीः नैनो तकनीक आज तक की सभी तकनीकी इजाद मे सबसे महान तकनीक मानी जाती है। इसका उपयोग अनेक क्षेत्रें जैसे यांत्रिकी, कम्प्युटर्स, हथियार, चिकित्सा विज्ञान आदि मुख्य क्षेत्रे मे होता है- चिकित्सा विज्ञान मे इसके अनुप्रयोग की असीमित सम्भावनाएं हैं। कुछ मात्र कल्पना मे हैं कुछ अभी परीक्षण मे हैं और कुछ प्रचलन मे भी हैं।

राष्ट्रीय अमेरिकन नैनो तकनीकी (National US Nano Technology) ने नैनो तकनीक मे अनुसंधान द्वारा लोगों के जीवन को और भी बेहतर बनाये जाने की दिशा मे कई कदम उठाए हैं। तत्व पहुंचाने (drug delivery) की प्रक्रिया मे नैनो कण दवा, प्रकाश, उष्मा या अन्य कोई तत्व को विशिष्ट कोशिकाओं (उदाहरण के लिये कैंसर कोशिकाओं) तक पहुंचाने मे महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। इन नैनो कणों को इस प्रकार जनित किया जाता है कि वे कैंसर पीडित कोशिकाओँ की ओर आकर्षित होते हैं और सीधे ही उनका इलाज करते हैं। साथ ही यह तकनीक स्वस्थ कोशिकाओं को हानि से बचाते हैं और बीमारी को उसकी प्रारम्भिक अवस्था मे ही पता लगा लेते हैं। जाहिर तौर पर इनका अनुप्रयोग केमोथिरेपी मे भी होता है।

समस्त शरीर को लक्ष्य बनाने की आवश्यकता नही पडती बल्किकैंसर ग्रस्त कोशिकाओं पर सीधे हमला किया जा सकता है। नैनो तकनीक द्वारा नैनोशेल्स बनाये जा सकते हैं जो इंफ्रारेड किरणो से प्राप्त उष्मा को केंद्रित कर सकते हैं जो मात्र कैंसरग्रस्त कोशिकाओं को ही नष्ट करते हैं ताकि समीप के स्वस्थ कोशिकाओं को कम से कम हानि पहुंचें। इस तकनीक का उपयोग रेडिएशन थिरेपी जिनमे कैंसर ग्रस्त कोशिकाओं के साथ स्वस्थ कोशिकाएं भी नष्ट हो जाती हैं, के एक बेहतर विकल्प की तरह किया जाता है।

कुछ इस प्रकार के नैनो कण भी होते हैं जो गम्भीर रुप से घायल मरीज के शरीर से जल का अधिशोषण कर रक्त के बहाव को शीघ्र नियंत्रित (तुरंत क्लॉटिंग) कर सकती हैं- ऐसे भी नैनो कण होते हैं जिनको सांस के साथ लेने से श्वास सम्बंधित बीमारियोँ के प्रति इम्युन प्रणाली को उत्तेजित कर सकते हैं।

नैनो-कंपोजिट्सः एंटीबायोटिक का विकल्प

भारतीय वैज्ञानिकों ने नैनो-कंपोजिट्स नामक एक गैर-जैविक पदार्थे की मदद से बैक्टीरिया से होने वाले संक्रमण के इलाज का नया तरीका खोजा है जो एंटीबायोटिक दवाओं का विकल्प बन सकता है। वैज्ञानिकों के मुताबिक इसकी मदद से दवाओं के प्रति प्रतिरोधक क्षमता विकसित कर चुके बैक्टीरिया को भी निशाना बनाया जा सकता है।

किसी संक्रामक बीमारी के उपचार के लिए आमतौर पर एंटी-बायोटिक दवाओं का उपयोग किया जाता है पर उपयुक्त तरीके से दवा का उपयोग न होने से बैक्टीरिया में उन दवाओं के प्रति प्रतिरोधक क्षमता विकसित हो जाती है। बैक्टीरिया के संक्रमण का वैकल्पिक इलाज खोजने में जुटे भारतीय और ऑस्ट्रेलियाई शोधकर्ताओं ने पाया है कि नैनो-कंपोजिट्स के जरिए प्रतिरोधक क्षमता विकसित कर चुके बैक्टीरिया को भी आसानी से नष्ट किया जा सकता है। नैनो-कंपोजिट्स हाइब्रिड पदार्थ हैं, जो चांदी के सूक्ष्म कणों और ग्रेफीन से बने होते हैं। ये बैक्टीरिया के विकास को रोक देते हैं।

सामान्यतया दवाओं की अपेक्षा नैनो- कंपोजिट्स बैक्टीरिया की कोशिकाओं के विभिन्न हिस्सों को एक साथ निशाना बनाकर उन्हें मार देते हैं। वहीं चांदी के सूक्ष्म कण बैक्टीरिया के श्वसन तंत्र और ऊर्जा पैदा करने वाले तंत्र को बाधित कर देते हैं। चेन्नई की अन्ना यूनिवर्सिटी, ऑस्ट्रेलिया की क्वींसलैंड यूनिवर्सिटी ऑफ टेक्नोलॉजी, कॉमनवेल्थ साइंटिफिक एंड इंडस्ट्रियल रिसर्च ऑर्गनाइजेशन और यूनिवर्सिटी ऑफ सर्दन ऑस्ट्रेलिया के वैज्ञानिकों ने मिलकर यह अध्ययन किया है। इसके प्राथमिक नतीजे साइंटिफिक रिपोर्ट्स जर्नल में प्रकाशित किए गए हैं। बैक्टीरिया संक्रमण के उपचार के लिए परंपरागत तौर पर उपयोग होने वाली एंटी-बायोटिक दवा नाइट्रोफ्रयूरैंटॉइन की अपेक्षा नैनो-कंपोजिट्स को अधिक प्रभावी पाया गया है। हालांकि इसका परीक्षण अभी लैब में विकसित बैक्टीरिया पर किया गया है पर वैज्ञानिकों को उम्मीद है कि नैनो-कंपोजिट्स कई परंपरागत बैक्टीरिया रोधी दवाओं का विकल्प बन सकते हैं। नैनो-कंपोजिट्स के सटीक असर को लेकर अभी भी परीक्षण चल रहे हैं। पूर्व एवं ताजा अध्ययनों में नैनो-कंपोजिट्स के घटकों के व्यवधान तंत्र के बारे में बताया जा चुका है।

नैनो तकनीक के वर्तमान उपयोग

आज हर दैनिक जीवन की घरेलु वस्तु मे नैनो तकनीक का समावेश है। उपभोत्तफ़ा वस्तुओँ मे इनके अनेकों अनुप्रयोग हैं। उदाहरण के लिये धूप का चश्मा- ग्लास की कोटिंग मे नैनो तकनीक का उपयोग होता है जिसके कारण वे और भी मजबूत और हानिकारक पैराबैंगनी (UV rays) किरणों को पहले की तुलना मे अधिक बेहतर तरीके से ब्लॉक कर सकते हैँ। सनस्क्रीन और अन्य कॉस्मेटिक्स मे भी नैनो कण होते हैँ जो प्रकाश को आर पार जाने देते हैं परंतु पैराबैंगनी (UV rays) किरणों को रोक देते हैं। पहनावे हेतु कपडों को भी ये अधिक टिकाउ बनाते हैं उन्हे वाटरप्रूफ और हवा प्रूफ बनाते हैं।

टेनिस की गेंद भी नैनो कम्पोसिट कोर से बनाई जाती हैं ताकि उनका बॉउंस अधिक हो और पुरानी तकनीक से बनी गेंदों की तुलना मे अधिक टिकाउ हो। पैकेजिंग जैसे की दूध आदि के कार्टन मे नैनो कण इस्तेमाल किये जाते हैँ ताकि दूध प्लास्टिक की थैली मे अधिक समय तक तरोताजा रहे- ये कुछ उदाहरण हैं उन वस्तुओँ के जिन्हे हम अपने दैनिक जीवन मे उपयोग मे लाते हैं।

नैनोतकनीक के वर्तमान उपयोग

नैनोतकनीकी के व्यापक सम्भावित उपयोगों के दावों के कारण कई चिन्ताओं को व्यक्त किया जा रहा है। सामाजिक स्वास्थ्य पर इसके दुश्प्रभाव के डर से नैनो पदार्थों के औद्योगिक स्तर पर उत्पादन पर, जहाँ शासन के नियंत्रण की अपेक्षा की जा रही है, वहाँ इन नियंत्रणों से इस अनुसन्धान पर प्रोत्साहान देने की राय दी जा रही है। दीर्घकालीन चिन्ताएं समाज पर आर्थिक कुप्रभाव, जैसे विकसित और विकासशील राष्टों के बीच बढते आर्थिक असमताएं और अर्थव्यवस्था का पश्च-अभावग्रस्त अवस्था में जाना हैं।

नैनो टेक्नोलॉजी मार्केट का काफी तेजी से विस्तार हो रहा है। वैज्ञानिक गतिविधियां बढ़ने और हर क्षेत्र में नैनो टेक्नोलॉजी की बढ़ती मांग की वजह से पिछले कुछ वर्ष में इस क्षेत्र में अत्यधिक विस्तार की जरूरत पड़ रही है। अभी तक भारत में नैनो टेक से संबंधित अधिकांश कार्य आयात किए जा रहे हैं। हालांकि देश में रिसर्च का काम तेजी से चल रहा है, लेकिन अभी तक देश इस क्षेत्र में आत्मनिर्भर नहीं हो पाया है। ऐसे में आने वाले समय में इस क्षेत्र में देश में विकास की काफी संभावनाएं हैं।

नैनो टेक्नोलॉजी के क्षेत्र में लगातार विकास होने की वजह से युवाओं के लिए इस क्षेत्र में असीम संभावनाएं उत्पन्न होंगी। वर्तमान में देश के अलावा विदेश में भी अच्छे व जानकार नैनो टेक्नोलॉजिस्ट की काफी मांग है। यह इंटरडिसिप्लिनरी एरिया है, इसलिए इस क्षेत्र में आने वाले युवाओं को फिजिक्स, केमिस्ट्री, बायोलॉजी और मैथ्स जैसे सब्जेक्ट में अच्छा होना जरूरी है। लगातार रिसर्च एंड डेवलपमेंट की वजह से यह बात कही जा सकती है कि आने वाला समय नैनो टेक्नोलॉजी का ही है।

आधुनिक कपड़ों की उम्दा संरचना बनाने के लिए नैनो फेब्रिकेशन तकनीक का उपयोग किया जा रहा है। हालांकि वर्तमान तकनीक के द्वारा ये संभव नहीं है। वैज्ञानिकों के अनुसार इस तकनीक की मदद से ऐसे व्यक्तिगत शारीरिक कवचों व कपड़ों का निर्माण किया जा सकता है जिस पर कोई दाग-धब्बा नहीं पड़ेगा, न क्रीज खराब होगी, और तो और उस पर किसी भी तरह के बैक्टिरीया भी पैदा नहीं हो पाएंगे। इस तरह कई अन्य चीजों पर भी नैनो तकनीक की परत चढ़ा कर उसे सुरक्षित रखा जा सकेगा।