पेटेंट संशोधन अधिनियम, 2005,

भारत ने ट्रिप्स समझौते के पूर्व कई क्षेत्रें में उत्पाद आधारित पेटेंट की बजाय प्रक्रिया.आधारित पेटेन्ट की व्यवस्था को अपनाया था। दवा, कृषि, रसायन और खाद्य.उत्पादन ऐसे ही क्षेत्र थे। ट्रिप्स समझौते के प्रावधानों के तहत् प्रक्रिया के साथ.साथ प्रोडक्ट.पेटेन्ट की भी व्यवस्था लागू की जानी थी। यह संभव था कि दूसरी प्रक्रिया से वस्तु का उत्पादन किया जा सके, जिसका पेटेंट किसी और के पास है। इसी के मद्देनजर 2005 में ‘पेटेंट संशोधन अधिनियम’ अस्तित्व में अया। इसके तहत उत्पाद एवं प्रक्रिया पेटेन्ट की व्यवस्था को लागू किया गया। इसके प्रमुख प्रावधान निम्न हैंः

  1. उन वस्तुओं के लिए पेटेन्ट दिए जाने का प्रावधान किया गया, जो नए, उपयोगी और स्पष्ट हैं।
  2. यह स्पष्ट किया गया कि न तो उपचार.प्रणाली को पेटेन्ट के दायरे में लाया जाएगा और न ही पौधों और जानवरों का पेटेन्ट कराना संभव होगा। लेकिन, इसके तहत् सूक्ष्म.जीवों को पेटेंट के दायरे में लाया गया है।
  3. पेटेंट अधिकार के लिए 20 वर्ष की समय.सीमा निर्धारित की गई है। इस समय.सीमा की समाप्ति के बाद कोई भी इसका उपयोग कर सकता है।
  4. यह अधिनियम एवर.ग्रीनिंग की अनुमति नहीं देता है। पेटेन्ट अवधि की समाप्ति के बाद किसी औषधि में छोटा.मोटा परिवर्तन करके और उसकी निर्माण.प्रक्रिया में संशोधन के साथ नए सिरे से पेटेंट के अधिकार को प्राप्त करने की प्रक्रिया एवर.ग्रीनिंग कहलाती है।
  5. यह अधिनियम अनिवार्य लाइसेंस का भी प्रावधान करता है। इसका मतलब है कि यदि आपात.स्थिति में पेटेंटधारक पेटेंट.वस्तु के उत्पादन के लिए अनुमति नहीं देता है, तो सरकार द्वारा विशेष अनुमति दी जा सकती है।