126वां संविधान संशोधान विधोयक 2019

दिसंबर 2019 में 126वां संविधान संशोधन विधेयक (126th Constitutional Amendment Bill) संसद द्वारा पारित किया गया, जिसे 10 दिसंबर, 2019 को लोकसभा द्वारा तथा 12 दिसंबर, 2019 को राज्यसभा द्वारा पारित किया गया था।

  • इस संशोधन विधेयक के तहत अनुसूचित जातियों (SC) और अनुसूचित जनजातियों (ST) के लिए लोकसभा एवं विधायी निकायों में आरक्षण की समयावधि में विस्तार करते हुए इसे 10 वर्ष बढ़ाने का प्रावधान किया गया है।
  • इस विधेयक के माध्यम से अनुच्छेद 334 में संशोधन कर अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के लिए लोकसभा एवं विधायी निकायों में आरक्षण की समयावधि (जो वर्ष 2020 में समाप्त हो जाएगी) को 25 जनवरी, 2030 तक विस्तारित किया गया है।
  • इस विधेयक में आग्ल-भारतीयों (एंग्लो-इंडियन) को लोकसभा एवं विधायी निकायों में नामित (नाम निर्देशित) पदों को समाप्त करने का प्रावधान है।
  • प्रारंभ में यह उपबंध 1960 तक के लिए थी, लेकिन 95वें संविधान संशोधन अधिनियम 2009 में इस उपबंध को 2020 तक के लिए बढ़ा दिया गया था।
  • संविधान का अनुच्छेद 334 यह अधिकथित करता है कि लोकसभा में और राज्यों की विधान सभाओं में अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के लिए सीटों के आरक्षण और नामित द्वारा आंग्ल-भारतीय समुदाय के प्रतिनिधित्व संबंधित संविधान के उपबंध संविधान के प्रारंभ से 70 वर्ष की अवधि की समाप्ति पर प्रभावी नहीं रहेंगे।
  • यदि इन उपबंधों का और विस्तार नहीं किया गया, तो ये 25 जनवरी, 2020 को प्रभावी नहीं रहेंगे।
  • यह संशोधन विधेयक फ्संसद मे ंराज्यों के प्रतिनिधित्वय् से संबंधित होने के कारण अनुच्छेद 368(2)(क) के दायरे में आता है, इसलिए कम-से-कम आधे राज्यों के विधान-मंडलों द्वारा साधारण बहुमत से इसके अनुसमर्थन की आवश्यकता होगी।
  • अनुच्छेद 368 संविधान का संशोधन करने की संसद की शक्ति और उसके लिए प्रक्रिया से संबंधित है।

SC/ST सीटों के आरक्षण के लिए संवैधानिक प्रावधान

अनुच्छेद 334 के अंतर्गत मूल प्रावधान यह था कि सीटों का आरक्षण संविधान के आरंभ होने के 10 वर्ष पश्चात् समाप्त हो जाएगा; लेकिन प्रत्येक 10 वर्षों में इसका विस्तार किया जाता रहा है।

अनुच्छेद 330 और 332 क्रमशः लोकसभा एवं राज्यों की विधान सभाओं में SC/ST के लिए उनकी जनसंख्या अनुपात के आधार पर सीटों के आरक्षण का प्रावधान करता है। साथ ही, SC/ST समुदाय के सदस्यों को सामान्य निर्वाचन क्षेत्र से भी चुनाव लड़ने का अधिकार है।

अनुच्छेद 330(1) के अनुसार लोकसभा में निम्नलिखित के लिए आरक्षण का प्रावधान है-

(क) अनुसूचित जातियों के लिए,

(ख) असम के स्वशासी जिलों की अनुसूचित जनजातियों को छोड़कर अन्य जनजातियों के लिए, और

(ग) असम के स्वशासी जिलों की अनुसूचित जनजातियों के लिए-

  • अनुच्छेद 332(1) के अनुसार प्रत्येक राज्य की विधान सभा में अनुसूचित जातियों के लिए (असम के स्वशासी जिलों की अनुसूचित जनजातियों को छोड़कर) और अन्य अनुसूचित जनजातियों के लिए स्थान आरक्षित रहेंगे।

आंग्ल-भारतीय सीटों के आरक्षण के लिए संवैधानिक प्रावधान

अनुच्छेद 331 के अनुसार अनुच्छेद 81 में किसी बात के होते हुए भी, फ्यदि राष्ट्रपति की यह राय है कि लोक सभा में आंग्ल-भारतीय समुदाय का प्रतिनिधित्व पर्याप्त नहीं है तो वह दो से अधिक सदस्य नाम निर्देशित कर सकेगा।

  • आंग्ल-भारतीयों के नाम निर्देशन का विचार ऑल इंडिया एंग्लो-इंडियन एसोसिएशन के अध्यक्ष फ्रैंक एंथनी द्वारा प्रस्तुत किया गया था।
  • अनुच्छेद 333 के अनुसार अनुच्छेद 170 में किसी बात के होते हुए भी, फ्यदि किसी राज्य के राज्यपाल की यह राय है कि उस राज्य की विधानसभा में आंग्ल-भारतीय समुदाय का प्रतिनिधित्व पर्याप्त नहीं है तो वह उस विधानसभा में उस समुदाय का एक सदस्य नाम निर्देशित कर सकेगा।
  • आंग्ल-भारतीय सदस्यों की शक्तियां भी अन्य सांसदों के समान होती हैं, परंतु वे राष्ट्रपति के निर्वाचन में मतदान नहीं कर सकते। वर्तमान लोकसभा में आंग्ल-भारतीय समुदाय से एक भी सदस्य को नामित नहीं किया गया है।

आंग्ल-भारतीय

अनुच्छेद 366(2) के अनुसार, फ्आंग्ल-भारतीयय् से आशय एक ऐसे व्यक्ति से है, जिसका पिता या पितृ-परंपरा में से कोई अन्य पुरुष जनक यूरोपीय वंश का है या था, किंतु जो भारत के राज्यक्षेत्र के अधिवासी हैं, जो ऐसे राज्यक्षेत्र में ऐसे माता-पिता से जन्मा है या जन्मा था, जो वहां साधारणतः निवासी रहे हैं और केवल अस्थायी प्रयोजनों के लिए वास नहीं कर रहे हैं।

  • आंग्ल-भारतीय शब्द पहली बार भारत सरकार अधिनियम 1935 में सामने आया। जनगणना 2011 के अनुसार, आंग्ल-भारतीयों के रूप में अपनी पहचान बताने वालों की संख्या 296 थी।
  • वर्तमान समय में 14 राज्यों की विधानसभाओं में एक-एक आंग्ल-भारतीय सदस्य हैं।
  • इन राज्यों में आन्ध्र प्रदेश, बिहार, छतिसगढ़, गुजरात, झारखंड़, कर्नाटक, केरल, मघ्य प्रदेश, महाराष्ट्र, तमिलनाडु, तेलंगाना, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड़ तथा पश्चिम बंगाल शामिल हैं।