स्थानीय निकायों का विश्लेषण (स्थापना के 25 वर्ष)

यह लोकतंत्र को जमीनी स्तर तक ले गया है। वर्तमान ग्राम सभा में प्रत्यक्ष लोकतंत्र को देखा जा सकता है।

  • यह भविष्य के नेताओं के लिए प्रशिक्षण स्थल बन गया है।
  • अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और महिलाओं के लिए आरक्षण का प्रावधान कर सशक्त बनाया गया है। अधिकांश राज्यों (20) में, 50% से अधिक सीटें महिला प्रतिनिधियों के लिए आरक्षित हैं।
  • पंचायत चुनावों ने राजनीतिक और जनहित को बढ़ावा दिया है। इस तथ्य के बावजूद कि राजनीतिक दल सीधे स्थानीय स्तर पर चुनाव में भाग नहीं लेते हैं।
  • इससे स्थानीय मुद्दों को अधिक प्रभावी ढंग से हल करने में मदद मिली है, क्योंकि स्थानीय प्रशासन को स्थानीय मुद्दों की बेहतर समझ होती है।
  • तीन एफ यानी फण्ड (कोष), फंक्शन (प्रकार्य) और फंक्शनरिज (पदाधिकारी) से सम्बन्धित समस्या अभी भी व्याप्त हैं।

फण्डः स्थानीय निकायों के पास वित्त उत्पन्न करने के लिए पर्याप्त साधन नहीं हैं, जो इन्हें वित्त विहीन बनाता है, जिसके कारण कोई पहल नहीं कर पाते हैं।

फंक्शनः राज्य सरकारों ने ग्राम पंचायतों और शहरी स्थानीय निकायों के लिए निर्दिष्ट विषयोंको अवक्रमित करना नहीं चाहते हैं, जो क्रमशः 29 और 18 को है।

फंक्शनरिजः स्थानीय निकाय में बहुत कम कर्मचारी कार्यरत होते हैं। गाँव स्तर पर और मध्यवर्ती स्तर पर अधिकांश पंचायतें बिना एक उचित सचिवालय के काम करती हैं।

  • संवैधानिक/सांविधिक अधिदेश का पालन नहीं किया जाना;
  • कई राज्यों द्वारा राज्य वित्त आयोग का गठन पांच वर्षों के निर्धारित समय के भीतर नहीं किया जाता है। राज्य वित्त आयोग राज्य सरकार और स्थानीय सरकारों के बीच करों के वितरण की अनुशंसा करती है।
  • अनेक राज्यों ने स्थानीय सरकार को विधायी शक्तियां नहीं दी हैं, जिससे वे राज्य सरकार पर निर्भर संस्था बनकर रह गयी हैं।

प्रतिनिधि शासन (च्तवगल त्नसम): ऐसा आरोप लगाया जाता है कि चुनाव जीती महिलाएं अपने पति के निर्देश पर कार्य करती हैं; वहीं अनुसूचित जाति/जनजाति के प्रमुख उस क्षेत्र के प्रभावशाली समुदाय के प्रभाव में कार्य करते हैं। उन्हें अपने विवेक से कार्य करने नहीं दिया जाता है।

समर्पित स्थानीय कर्मचारीः राज्य नागरिक सेवाओं और संघ नागरिक सेवाओं की तरह, जिला नागरिक सेवाओं के माध्यम से एक समर्पित कैडर सुनिश्चित किया जाए।

  • यह जिला नौकरशाही पर स्थानीय निकायों की निर्भरता को दूर करने में मदद करेगा, जो आमतौर पर संघ और राज्य सरकार के निर्देश पर काम करते है।

सुझाव

इसमें कोई संदेह नहीं है कि स्थानीय निकायों की आज तक महत्वपूर्ण उपलब्धियों में से एक हैं, लेकिन स्थानीय स्व-शासन के उद्देश्यों को सुनिश्चित करने के लिए इससे सम्बंधित मुद्दों को सुलझाया जाना चाहिए। इसके लिए निम्नलिखित कदम उठाने की जरूरत हैः

पर्याप्त वित्तः स्थानीय निकाय को पर्याप्त वित्तीय संसाधन प्रदान किया जाना चाहिए। कर लगाने के लिए शक्तियों और वर्तमान कराधान शक्तियों का कुशल उपयोग सुनिश्चित करने की आवश्यकता है।

  • स्थानीय उपज पर कर लगाने, नगरपालिका बांड जैसे नवीन साधनों, वित्त को आकर्षित करने के लिए अंतरराष्ट्रीय सहयोग आदि जैसे विकल्पों पर विचार करना चाहिए।
  • विषय और विधायी शक्तियों का समुचित हस्तांतरण सुनिश्चित करना; 29 पंचायती विषयों और 18 शहरी स्थानीय निकायों के विषयों को पूरी तरह से हस्तांतरित किया जाना चाहिए; इन्हें स्थानीय मुद्दों पर कानून बनाने की शक्ति भी प्रदान की जानी चाहिए, जिससे विकेंद्रीकरण के उद्देश्यों को प्राप्त किया जा सके।
  • जिला योजना समितियों (डीपीसी) को कार्यशील बनाया जाना चाहिए;
  • डीपीसी में नौकरशाही की अनुपस्थिति या ज्यादा प्रभुत्व चिंता का कारण रहा है। पूरे जिले के लिए डीपीसी को योजना बनाने की वास्तविक शक्ति प्रदान की जानी चाहिए। इसमें पंचायतों और यूएलबी दोनों का उचित प्रतिनिधित्व भी होना चाहिए।
  • डीपीसी विभिन्न योजनाओं के समन्वय में भी मदद करता है, वार्षिक योजनाओं, परियोजनाओं आदि को तैयार करता है। इससे उचित नियोजित विकास में मदद होती है।