भूरिया आयोग

वर्ष 2002 में संविधान के अनुच्छेद 339(1) के प्रावधान के तहत दिलीप सिंह भूरिया की अध्यक्षता में एक आयोग का गठन किया, जिसने अपनी रिपोर्ट 2004 में प्रस्तुत की।

  • इस आयोग ने अनुसूचित क्षेत्रों, अनुसूचित जनजाति, आदिवासी उप योजना, भूमि, वन, कृषि और संबद्ध क्षेत्रों, उद्योग, स्वास्थ्य और पंचायतों की भूमिका आदि विभिन्न विषयों / मुद्दों पर सिफारिशें की।

महत्वपूर्ण सिफारिशें निम्नलिखित हैं:

  • ग्राम सभा को टोला/ग्राम स्तर पर भूमि, जंगल, जल और वायु के प्रबंधन जैसे पारंपरिक कार्यों को करना चाहिए।
  • राज्यों को सीमाओं का पुनर्गठन जातीय, जनसांख्यिकीय और भौगोलिक आधार पर करना चाहिए।
  • जनजातीय क्षेत्रों को उप-राज्य का दर्जा मिलने पर आदिवासी आकांक्षाएँ संतुष्ट हो सकती हैं। मध्य भारतीय आदिवासी इलाकों में उप-संघवाद प्रकृति की स्वायत्त जिला परिषद का गठन किया जा सकता है।
  • योजनाओं के माध्यम से सहभागी लोकतंत्र को बढ़ावा देना चाहिए। विशेषकर जमीनी स्तर और जिला स्तर पर।
  • पुनर्वास योजना का संचालन स्थानीय ग्राम समुदाय की सहमति से किया जाना चाहिए। प्रभावित परिवारों को पुनर्वास पैकेज के रूप में आजीविका के व्यवहार्य और स्वीकार्य साधन प्रदान की जानी चाहिए।
  • स्वायत्त जिलों में तैनात विभागों/सरकारी सेवकों के कार्य पर जिला परिषदों का नियंत्रण होना चाहिए।
  • जिला परिषदों को भूमि एवं अन्य संसाधनों के नियमन के लिए कानून बनाने की शक्ति होनी चाहिए।

भूरिया आयोग की सिफारिशों के आधार पर एक मसौदा नीति (draft policy) बनाई गई, लेकिन वन अधिकार अधिनियम, 2006 में बदलाव और उसी पर सर्वोच्च न्यायालय में इससे सम्बंधित लंबित मामले के कारण इस पर कार्य रुका हुआ है।