बायोलॉजिकल ऑक्सीजन डिमांड

भारी जल प्रदूषित देशों में एक तिहाई आर्थिक विकास की कटौती का रिपोर्ट का अनुमान ‘बायोलॉजिकल ऑक्सीजन डिमांड’ (बीओडी) पर आधारित है।

  • ऑक्सीजन युक्त वातावरण में रहने वाले बैक्टीरिया को अपघटन के जरिये अपशिष्ट कार्बनिक पदार्थ को नष्ट करने के लिए जितनी ऑक्सीजन की आवश्यकता होती है, उसे जैविक ऑक्सीजन डिमांड के रूप में मापा जाता है।
  • जल में जैविक प्रदूषण को ‘बीओडी’ के जरिए मापा जा सकता है और इससे परोक्ष रूप से जल की गुणवत्ता का भी पता चलता है। जब ‘बीओडी’ एक निश्चित सीमा को पार करता है तो स्वास्थ्य, कृषि और पारिस्थितिकी तंत्रों पर असर पड़ता है और सकल घरेलू उत्पाद में वृद्धि में एक-तिहाई की कमी आ सकती है।

नाइट्रोजन समस्या

कृषि में खाद के रूप में नाइट्रोजन के इस्तेमाल पर विशेष रूप से चिंता जताई गई है, क्योंकि इसके जल में घुलने से उसकी गुणवत्ता प्रभावित होती है।

  • नाइट्रोजन के नदियों, झीलों और महासागरों में प्रवेश करने से यह नाइट्रेट (nitrates) में तब्दील हो जाता है। छोटे बच्चों के लिए नाइट्रेट बेहद नुकसानदेह होता है, जिससे उनके बढ़ने की क्षमता और मस्तिष्क के विकास पर असर पड़ता है।
  • इससे प्रभावित बच्चों के भविष्य में धन कमाने की क्षमता पर भी असर पड़ता है और उनकी संभावित कमाई में कम से कम 2% की कमी आ सकती है।

जल की लवणता में वृद्धि

तीव्र सूखे, तबाही लाने वाले भीषण तूफानों तथा जल के अत्यधिक दोहन के कारण जल में बढ़ती लवणता भी अब चिंता का विषय है। लवणता में वृद्धि से कृषि योग्य भूमि की उत्पादकता प्रभावित हो रही है। रिपोर्ट में अनुमान लगाया है कि पानी के खारेपन की वजह से विश्व, प्रतिवर्ष 17 करोड़ (170 million) लोगों का पेट भरने के लिए आवश्यक भोजन गंवा रहा है।