कोविड-19 और महिलाओं के साथ घरेलु हिंसा

कोविड-19 महामारी के चलते हुए देशव्यापी लॉकडाउन और क्वारनटाईन के कारण महिलाएं सर्वाधिक प्रभावित हुई है। यूएन वीमेन ने लैंगिक हिंसा में वृद्धि को शैडो पैनडेमिक की संज्ञा देते हुए अपने सदस्य देशों से कोविड-19 पर कार्य योजनाओं में महिलाओं के विरुद्ध हिंसा की रोकथाम संबंधी उपाय शामिल करने हेतु आग्रह किया है। इसके साथ ही वैश्विक स्तर पर घरेलु हिंसा में भयवाह स्थिति को देखते हुए संयुक्त राष्ट्र महासचिव ने घरेलु हिंसा को पूर्ण रूप से समाप्त करने की आग्रह किया है।

  • संयुक्त राष्ट्र जनसंख्या कोष के अनुसार यदि लॉकडाउन छः माह तक जारी रहा तो विश्वव्यापी घरेलु हिंसा के मामलों में 31 मिलियन की और अधिक वृद्धि हो जाएगी। क्योंकि लॉकडाउन के कारण लोगों की आवाजाही पर कठोर नियंत्रण अधिरोपित किया गया है, इस दौरान महिलाओं के साथ शारीरिक, लैंगिक और भावनात्मक दुर्व्यवहार किए जाने की अधिक संभावना है।

घरेलु हिंसा के कारण

पितृसत्तात्मक समाजः इसमें महिलाओं को दोयम दर्जे का तथा पुरुष को विशेषाधिकारों वाला माना जाता है। महिलाओं द्वारा अपने जीवन साथी से हिंसात्मक व्यावहार का समाना करने की अधिक संभावना तब होती है जब वे अल्प शिक्षित होती हैं।

लॉकडाउन में घर पर ही रहनाः लॉकडाउन के कारण लोगों की आवाजाही पर कठोर नियंत्रण अधिरोपित है, जिससे लोग घर पर ही रहने को मजबूर हैं। अतः इस दौरान महिलाओं के साथ शारीरिक, लैंगिक और भावनात्मक दुर्व्यवहार किए जाते है या होने की संभावना अधिक हो जाती है।

  • कोविड-19 महामारी के कारण लोगों को अनिवार्य रूप से घरों में रहने जैसे नियमों, सोशल डिस्टेंसिंग तथा आर्थिक चिंताओं ने घरेलु हिंसा की संभावनाओं को और अधिक बढा दिया है।

महिलाओं को सुरक्षा प्रदान करने वाली सहायता केद्रों का बंद होनाः कोरोनावायरस महामारी के कारण स्थानीय सहायता समूह सामर्थ्यहीन हो गए है या उनके पास निधियों का अभाव है तथा घरेलु हिंसा से पीडित महिलाओं हेतु आश्रय केंद्र या तो बंद है या स्थान उपलब्ध नहीं है। ये सभी महिलाओं के साथ होने वाले हिंसाओं को कम करने का प्रयास करता है।

घरेलु हिंसा को रोकने के लिए उठाए गए कदम

गैर-सरकारी संगठन की उत्तरदायित्व में वृद्धिः घरेलू हिंसा के विरुद्ध कार्य करने वाले गैर-सरकारी संगठन लॉकडाउन में यह सुनिश्चित कर रहे हैं कि प्रत्येक सदस्य प्रतिदिन कम से कम 10 महिलाओं को कॉल करें, जिससे महिलाओं को यह महसूस नहीं हो सके कि वे अकेली है।

महिला और बाल विकास मंत्रालय का दिशा-निर्देशः महिला एवं बाल विकास मंत्रालय द्वारा यह सुनिश्चित करने के लिए निर्देश दिया गया है कि हिंसा पीडि़त महिलाओं को विधिक एवं मानसिक व सामाजिक सहायता प्रदान करने वाले को स्थानीय मेडिकल टीम, पुलिस और राष्ट्रीय विधिक सेवा प्राधिकरण के साथ जोडा जाए ताकि उनके द्वारा प्रदत सेवाएं आवाजाही पर प्रतिबंधों के कारण बाधित न हों।

राष्ट्रीय महिला आयोग का प्रयासः कोविड-19 महामारी के दौरान राष्ट्रीय महिला आयोग ने हेल्पलाइन नंबर और ईमेल के विकल्प के साथ-साथ एक व्हाट्सएप नंबर भी जारी किया, जिससे महिलाओं को सहायता प्रदान करने में सुविधा हो।

जागरूकता कार्यक्रमः महिलाओं के विरुद्ध हिंसा को रोकने के लिए उत्तर प्रदेश में सामुदायिक रेडियो कार्यक्रम नामक जागरूकता अभियान चलाया गया, जिससे घरेलु हिंसा की पहचान और समाधान की जा सके।

बेल बजाओ अभियानः इस अभियान के तहत पुरूषों और लड़कों से घरेलु हिंसा के विरुद्ध सक्रिय होने का अनुरोध किया गया।

न्यायिक हस्तक्षेपः लॉकडाउन के दौरन घरेलु हिंसा के मामलों का स्वतः संज्ञान लेते हुए जम्मू-कश्मीर उच्च न्यायालय ने एक आदेश पारित किया। दिल्ली उच्च न्यायालय ने यह निर्देश दिया कि राज्य और केंद्र सरकार घरेलु हिंसा से महिलाओं की सुरक्षार्थ उपाय सुनिश्चित करें।

घरेलु हिंसा से संबंधित विधिक प्रावधान

महिला संरक्षण अधिनियम 2005: यह घरेलु हिंसा की परिभाषा को विस्तृत करता है। इसमें न केवल शारीरिक, बल्कि मौखिक, भावनात्मक, लैंगिक और आर्थिक हिंसा को भी शामिल किया गया है। यह अधिनियम लिव इन रिलेशनशिप में रह रहीं महिलाओं के साथ-साथ परिवार के अन्य सदस्यों को भी संरक्षित करता है। इस कानून के अनुसार महिलाएं घरेलु हिंसा के विरुद्ध संरक्षण और वित्तीय क्षतिपूर्ति की मांग कर सकती है।

दहेज प्रतिषेध अधिनियमः यह एक आपराधिक कानून है, जिसके तहत दहेज लेने व देने, दोनों को दंडनीय अपराध घोषित करता है।

भारतीय दंड संहिता की धारा 498A: यह अपराधिक कानून पति व पति के उन सगे-संबंधियों पर लागू होता है, जिसके द्वारा महिलाओं के साथ निर्दयी व्यवहार किया जाता है।