भारत का अंतरिक्ष स्टेशन परियोजना

इसरो 13 जून, 2019 को भारत का अपना स्वयं का अंतरिक्ष स्टेशन प्रक्षेपित करने की योजना पर काम कर रहा है। यदि भारत अपने इस प्रयास में सफल होता है तो इसरो व्यापक पैमाने पर मनुष्यों को अंतरिक्ष में भेज सकेगा। इस अंतरिक्ष स्टेशन परियोजना से मिशन गगनयान परियोजना का भी विस्तार होगी। इसरो के अनुसार वर्ष 2022 में भारत के पहले मानवयुक्त मिशन के पूरा होने के बाद इसरो को प्रस्तावित अंतरिक्ष स्टेशन को लॉन्च करने में लगभग 5 से 7 वर्ष लगेंगे। इसके अंतर्गत एक छोटा मॉडड्ढूल प्रक्षेपित किया जायेगा जिसका उपयोग माइक्रोग्रैविटी के प्रयोगों के लिए किया जाएगा, वर्तमान में अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन (ISS), यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी (ESA), अमेरिकी एजेंसी (NASA), जापानी एजेंसी (JAXA), कनाडा की स्पेस एजेंसी (CSA) तथा रूसी अंतरिक्ष एजेंसी (Roscosmos) के नेतृत्व में संचालित किया जाता है। अंतरिक्ष विज्ञान और प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में यह दुनिया का सबसे बड़ा अंतरराष्ट्रीय सहकारी कार्यक्रम है।

विश्व अंतरिक्ष कार्यक्रम

  • अंतरिक्ष अनुसंधान या अन्वेषण मानव एवं विज्ञान दोनों के लिए ही चुनौतीपूर्ण रहा है। आज से चार दशक पूर्व यह प्रक्रिया तब प्रारंभ हुई, जब सोवियत संघ (पूर्व नाम) ने ‘स्पुतनिक’ (Sputnik) एवं अमेरिका ने ‘एक्सप्लोरर’ (Explorer) नामक अंतरिक्ष यान अंतरिक्ष में भेजे।
  • 1969 में ‘अपोलो’ (Apollo) नामक यान से चन्द्रमा की सतह पर पहुंचकर मानव ने इस दिशा में एक नयी उपलब्धि हासिल की। इसके पश्चात् अंतरिक्ष में ‘स्काईलैब’, ‘सोल्यूत’ एवं ‘मीर’ नामक तीन नये केन्द्रों की स्थापना की गयी।
  • 1989 में अमेरिका द्वारा भेजे गये ‘वायेजर्स’ नामक अंतरिक्ष यान ने ग्रहों एवं उपग्रहों के बारे में अनेक महत्त्वपूर्ण जानकारियां हासिल की। 4 अक्टूबर, 1957 को सोवियत संघ ने ‘स्पुतनिक’ नामक अंतरिक्ष यान को अंतरिक्ष की कक्षा में भेज कर एक नये युग की शुरुआत की।
  • इसके कुछ ही समय पश्चात् सोवियत संघ ने ‘स्पुतनिक प्प्’ नामक यान भेजा। 1958 को अमेरिका ने ‘एक्सप्लोरर’ नामक अंतरिक्ष यान प्रक्षेपित किया। इसके द्वारा पृथ्वी के ऊपर विद्यमान चुम्बकीय क्षेत्र एवं पृथ्वी पर उसके प्रभावों का अध्ययन किया गया।
  • अक्टूबर 1959 में सोवियत संघ द्वारा भेजे गये ‘लूना-3’ नामक अंतरिक्ष यान से सर्वप्रथम चन्द्रमा के चित्र प्राप्त हुए। 1962 में अमेरिका द्वारा भेजे गये ‘मैराइनर-2’ नामक यान ने ‘वीनस’ (शुक्र) के संबंध में पृथ्वी पर अनेक महत्त्वपूर्ण सूचनाएं भेजी। 1965 में ‘मैराइनर-4’ ने मंगल ग्रह के अनेक रहस्यों का पता लगाया।