किशोर न्याय (बाल देख-रेख एवं संरक्षण) अधिनियम, 2015

किशोर न्याय (बच्चे की देखभाल और संरक्षण) अधिनियम, 2015,15 जनवरी, 2016 से लागू हुआ है और इसने किशोर न्याय (बच्चे की देखभाल और संरक्षण) अधिनियम, 2000 को प्रतिस्थापित कर दिया।

  • किशोर न्याय (बच्चे की देख-भाल और संरक्षण) अधिनियम, 2015 का उद्देश्य आरोपित बच्चों, कानून का अनुपालन नहीं करने वाले बच्चों (child in conflict with law) और जरूरतमंद बच्चों से संबंधित कानून को संशोधन करना है।
  • यह बच्चे के अनुकूल दृष्टिकोण को अपनाकर उचित देखभाल, संरक्षण, विकास, उपचार, सामाजिक पुनः एकीकरण के माध्यम से उनकी बुनियादी जरूरतों को पूरा करने पर बल देता है।

प्रमुख प्रावधान निम्नलिखित हैं:

  1. ‘किशोर’ शब्द से जुड़े नकारात्मक अर्थों को हटाने के लिए अधिनियम में ‘किशोर’ शब्द को ‘बच्चे’ या कानून का अनुपालन नहीं करने वाले ‘बच्चों’ शब्द से स्थानांतरित कर दिया गया है।
  2. कई नई परिभाषाओं का समावेश जैसे- अनाथ, परित्यक्त और आत्म-समर्पित (surrendered) बच्चों और बच्चों द्वारा किए गए गंभीर तथा जघन्य अपराध को किया गया है।
  3. किशोर न्यायिक बोर्ड (JJB) और बाल कल्याण समिति (CWC) की शक्तियों, कार्यों और जिम्मेदारियों को स्पष्ट किया गया है।
  4. किशोर न्यायिक बोर्ड (JJB) द्वारा जांच के लिए स्पष्ट समय सीमा।
  5. सोलह वर्ष से ऊपर के बच्चों द्वारा किए गए जघन्य अपराधों के लिए विशेष प्रावधान किया गया है।
  6. अनाथ, परित्यक्त और आत्म-समर्पित बच्चों को गोद लेने को कारगर बनाने के लिए दत्तक ग्रहण पर नया अध्याय जोड़ा गया है।
  7. बच्चों के खिलाफ किए गए नए अपराधों का समावेश किया गया है।
  8. बाल देखभाल संस्थानों का अनिवार्य पंजीकरण किया गया है।

कुछ महत्वपूर्ण प्रावधान

किशोर को वयस्क के रूप में माननाः अधिनियम के अनुसार, 16 साल या उससे अधिक उम्र के किशोरों को बलात्कार और हत्या जैसे जघन्य अपराधों के मामलों में वयस्कों के समान माना जायेगा। जघन्य अपराध वे हैं, जिसमें सात साल या उससे अधिक के कारावास का प्रावधान है।

  • प्रारंभिक मूल्यांकन करने के बाद किशोर न्याय बोर्ड जघन्य अपराधों के मामलों को बाल न्यायालय (सत्र न्यायालय) में स्थानांतरित करने का विकल्प दे सकता है।
  • यह अधिनियम बच्चे को सुनवाई के दौरान और बाद के अवधि में सुरक्षित स्थान देने का प्रावधान करता है, जब तक कि बालक 21 वर्ष की आयु प्राप्त न कर ले। इसके बाद बच्चे का मूल्यांकन बाल न्यायालय द्वारा किया जाएगा।
  • मूल्यांकन के बाद बच्चे को परिवीक्षा (probation) पर छोड़ दिया जाता है या बच्चे में सुधार नहीं होने की स्थिति में शेष अवधि के लिए जेल में ही रहने दिया जाता है। यह कानून बलात्कार और हत्या जैसे जघन्य अपराध करने वाले बाल अपराधियों के लिए एक निवारक के रूप में कार्य करेगा तथा पीडि़त के अधिकारों की रक्षा करेगा।

राष्ट्रीय विधि सेवा प्राधिकरण

  • यह विधिक सेवा प्राधिकरण अधिनियम, 1987 के तहत गठित एक विधिक प्राधिकरण है, जो समाज के गरीब और कमजोर वर्गों को मुफ्त विधिक सहायता प्रदान कर संविधान के अनुच्छेद 39A के उद्देश्यों को पूरा करता है।
  • कार्यस्थल पर महिलाओं का यौन उत्पीड़न (रोकथाम, निषेध और निवारण) अधिनियम, 2013 ।
  • भारत ने महिलाओं के विरुद्ध सभी स्वरूपों के भेदभाव के निवारण संबंधी अभिसमय (सीईडीएडब्ल्यू) पर हस्ताक्षर किया है। भारत के पास काम के स्थान पर महिलाओं के यौन उत्पीड़न के मुद्दे को संबोधित करने के लिए एक विशिष्ट कानून नहीं है।
  • वर्तमान में, भारतीय दंड संहिता (IPC) महिलाओं के ‘शील’(modesty) को अपमानित (insult) याभंग करने (outrage) को आपराधिक कृत्य मानता है।
  • कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न से संबंधित महिलाओं की शिकायतों के निवारण के उद्देश्य से इसे 2013 में पारित किया गया था।

अधिनियम की महत्वपूर्ण विशेषता

  • यह विधेयक यौन उत्पीड़न को परिभाषित करता है। शारीरिक संपर्क जैसे यौन संपर्क, शारीरिक रिश्ता/यौन सम्बन्ध बनाने की मांग करना या उसकी उम्मीद करना, यौन स्वभाव की (अश्लील) बातें करना, अश्लील तस्वीरें, फिल्में या अन्य सामग्री दिखाना, कोई अन्य कार्य, जो यौन प्रकृति के हों एवं बातचीत, लिखकर या छूकर किये गए हों। यह शिकायतों के निवारण के लिए एक तंत्र बनाता है। यह झूठे या दुर्भावनापूर्ण आरोपों के खिलाफ सुरक्षा उपाय भी प्रदान करता है।
  • यह घर पर काम करने वाली घरेलू कामगार महिला को छोड़कर हर महिला के कार्य-स्थल (चाहे नौकरी पर रखा गया हो या नहीं) को शामिल करता है। यह नियोक्ता को कार्य-स्थल के प्रबंधन, पर्यवेक्षण और नियंत्रण के लिए जिम्मेदार व्यक्ति के रूप में परिभाषित करता है।
  • प्रत्येक नियोक्ता को आंतरिक शिकायत समिति (आईसीसी) का गठन करना पड़ेगा (यदि संगठन की कुल संख्या 10 से अधिक है); जो ऐसे मामलों की जांच और महिलाओं की शिकायत / शिकायतों का निवारण करेगा।
  • अगर संगठन ने आंतरिक शिकायत समिति नहीं गठित की है तो पीडि़त को स्थानीय शिकायत समिति में शिकायत दर्ज करानी होगी।
  • किसी भी आंतरिक या स्थानीय समिति में नामांकित सदस्यों का कम से कम 50 प्रतिशत सदस्य महिलाएं होना चाहिए।
  • यदि आरोप सिद्ध या झूठे पाए जाते हैं, तो समिति अधिनियम की धाराओं के अनुसार अभियोग लगा सकती है।

कमियां एवं सुझाव

आईसीसी में सिविल सोसाइटी संगठन की कोई भागीदारी नहीं है। आईसीसी में सदस्य केवल संगठन से है, जो पूर्वाग्रह से ग्रस्त हो सकते है।

  • स्थानीय शिकायत समिति के गठन के लिए अस्पष्ट दिशा-निर्देश है एवं इन समितियों के क्षेत्रधिकार और कार्यों का परिसीमन नहीं किया गया है। सूची में घरेलू कामगारों को शामिल नहीं किया गया है।
  • सरकार को घरेलू कामगारों को सूची में शामिल करना चाहिए या उनके लिए एक अलग कानून तैयार करना चाहिए। इसके अलावा, अधिनियम का उचित पालन और कार्यान्वयन इसकी सफलता की कुंजी है।