यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण (संशोधन) अधिनियम, 2019

यह अधिनियम बच्चों को यौन शोषण, यौन उत्पीड़न और अश्लील साहित्य जैसे अपराधों से संरक्षण का प्रयास करता है।

  • संशोधनों अधिनियम के द्वारा निम्नलिखित प्रावधानों को बदल दिया गया हैः

प्रवेशन लैंगिक हमला (Penetrative Sexual Assault): बच्चों पर प्रवेशन लैंगिक हमला करने वाले व्यक्ति के लिए न्यूनतम सजा 7 साल से बढ़ाकर 10 साल कर दी गयी है और अगर 16 साल से कम उम्र के बच्चों के विरुद्ध प्रवेशन लैंगिक हमला किया जाता है, तो इसके लिए न्यूनतम 20 साल से लेकर आजीवन कारावास की सजा हो सकती है।

गंभीर प्रवेशन यौन हमला (Aggravated Penetrative Sexual assault): अधिनियम कुछ कार्यों जैसे कि ‘गंभीर पेनेट्रेटिव यौन हमला’को परिभाषित किया गया है। इसमें ऐसे मामले शामिल हैं; जब पुलिस अधिकारी, सशस्त्र सेनाओं के सदस्य या पब्लिक सर्वेंट बच्चे पर प्रवेशन यौन हमला करें। इसमें ऐसे मामले भी शामिल हैं, जहां अपराधी बच्चे का संबंधी हो या हमले से बच्चे के सेक्सुअल ऑर्गेन्स घायल हो जाएं या बच्ची गर्भवती हो जाए इत्यादि। बिल गंभीर प्रवेशन यौन हमले की परिभाषा में दो अतिरिक्त आधार को जोड़ा गया हैः

(i) हमले के कारण बच्चे की मौत और (ii) प्राकृतिक आपदा के दौरान किया गया हमला या हिंसा की अन्य समान स्थितियां शामिल है। वर्तमान में गंभीर प्रवेशन यौन हमले की सजा 10 वर्ष से लेकर आजीवन कारावास के साथ जुर्माना भी है। बिल न्यूनतम कारवास को 10 वर्ष से 20 वर्ष करता है और अधिकतम सजा मृत्यु दंड है।

पोर्नोग्राफिक उद्देश्यः अधिनियम के अंतर्गत अगर कोई व्यक्ति यौन सुख पाने के लिए किसी माध्यम से बच्चे का इस्तेमाल करता है तो वह पोर्नोग्राफिक उद्देश्य से बच्चे का इस्तेमाल करने का दोषी माना जायेगा।

पोर्नोग्राफिक सामग्री का भंडारणः अधिनियम के तहत पोर्मोग्राफिक सामग्री के भंडारण पर सजा 3 साल से 3-5 साल तक बढ़ाया गया है और चाइल्ड पोर्नोग्राफी से जुड़े दंड के लिए 2 घटकों को जोड़ा गया है - (i) बच्चों से संबंधित पोर्नोग्राफिक सामग्री को नष्ट, डिलीट या रिपोर्ट करने में असफलता और (ii) ऐसी किसी सामग्री को ट्रांसमिट, प्रचारित या प्रबंधित करना (ऐसा सिर्फ अथॉरिटीज को रिपोर्ट करने के उद्देश्य से किया जा सकता है) शामिल है।

अधिनियम और संशोधन से संबंधित मुद्देः

सजा गंभीरता नहीं, वरन सजा की निश्चितता वह कारण है, जो अपराध को रोकने में कारगर होती है। इसलिए सजा को गंभीर बनाने के बदले सजा दर में सुधार करने की जरूरत है।

  • लंबित मामलों की उच्च संख्या, समाज में पीडि़त को शर्मिंदगी झेलने की मजबूरी, पितृसत्तात्मक मानसिकता और कमजोर यौन शिक्षा कुछ ऐसे क्षेत्र हैं, जहाँ उचित नीतिगत हस्तक्षेप की आवश्यकता है।