राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग (एनसीबीसी)

संविधान के अनुच्छेद 338(बी) के तहत यह एक संवैधानिक निकाय है। प्रारंभ में यह 1993 में संसद के अधिनियम द्वारा गठित किया गया था, लेकिन 102वें संवैधानिक संशोधन अधिनियम, 2018 के माध्यम से संवैधानिक दर्जा दिया गया।

संवैधानिक प्रावधान

अनुच्छेद 338(बी) एनसीबीसी को सामाजिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़े वर्गों के बारे में शिकायतों की जांच करने और कल्याणकारी उपायों पर अनुशंसा करने का अधिकार देता है।

  • अनुच्छेद 340, उन ‘सामाजिक और शैक्षिक रूप से पिछड़े वर्गों’की पहचान करता है, जो उनके पिछड़ेपन की स्थितियों को समझता है तथा उनके समक्ष आने वाली कठिनाइयों को दूर करने की सिफारिश करता है।
  • अनुच्छेद 342(ए) राष्ट्रपति को विभिन्न राज्यों, केंद्र शासित प्रदेशों में सामाजिक और शैक्षिक रूप से पिछड़े वर्गों को निर्दिष्ट करने का अधिकार देता है। संबंधित राज्य के राज्यपाल के परामर्श से ऐसा किया जाता है।
  • पिछड़े वर्गों की सूची में संशोधन करने के लिए संसद द्वारा अधिनियम लाया जाना चाहिए।

आयोग की शक्तियां

आयोग सामाजिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़े वर्गों के सुरक्षा उपायों से संबंधित सभी मामलों की जांच, निगरानी और ऐसे सुरक्षा उपायों के मूल्यांकन का काम करता है।

  • यह सामाजिक और शैक्षिक रूप से पिछड़े वर्गों के सामाजिक-आर्थिक विकास से सम्बंधित मामलों पर सलाह देता है, संघ एवं राज्य के तहत उनके विकास की प्रगति का मूल्यांकन करता है।
  • यह पिछड़े वर्गों से सम्बंधित रिपोर्ट को सालाना या अन्य उपयुक्त समय पर राष्ट्रपति के समक्ष प्रस्तुत करता है, राष्ट्रपति इस रिपोर्ट को संसद के प्रत्येक सदन के पटल पर रखते हैं।
  • ऐसी कोई रिपोर्ट या उसका कोई हिस्सा अगर किसी भी राज्य सरकार से संबंधित है तो उसकी एक प्रति राज्य सरकार को भेज दी जाएगी।
  • एनसीबीसी को सामाजिक, शैक्षणिक रूप से पिछड़े वर्गों के संरक्षण, कल्याण और विकास के संबंध में ऐसे अन्य कार्यों का निर्वहन करना होता है, जो राष्ट्रपति या संसद द्वारा किसी भी कानून के प्रावधानों के अधीन हो सकता है। दीवानी अदालत के समान शक्तियाँ प्राप्त होती है।