राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग

इसे 2003 में संविधान के अनुच्छेद 338 के अनुसार एक स्वायत्त संगठन के रूप में स्थापित किया गया। पहले अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति दोनों के लिए एक आयोग था।

आयोग की जिम्मेदारी

अनुसूचित जातियों को प्रदान किए गए सुरक्षा उपायों का मूल्यांकन करना, अनुसूचित जातियों से संबंधित सभी मामलों की जांच और निगरानी करना।

  • अनुसूचित जातियों के अधिकारों से वंचित करने और सुरक्षा उपायों के संबंध में विशिष्ट शिकायतों की जांच करना।
  • अनुसूचित जातियों के सामाजिक-आर्थिक विकास की योजना निर्माण प्रक्रिया में भाग लेना एवं सलाह देना, संघ तथा किसी भी राज्य के तहत उनके विकास की प्रगति का मूल्यांकन करना।
  • अनुसूचित जातियों से सम्बंधित सुरक्षा उपायों के सम्बन्ध में राष्ट्रपति के समक्ष वार्षिक रिपोर्ट प्रस्तुत करना।
  • ऐसी रिपोर्टों में अनुसूचित जातियों के संरक्षण, कल्याण और सामाजिक-आर्थिक विकास के लिए सिफारिश करना।
  • अनुसूचित जातियों के संरक्षण, कल्याण एवं विकास और उन्नति के संबंध में ऐसे अन्य कार्यों का निर्वहन करना, जो संसद द्वारा कानून बनाकर या राष्ट्रपति द्वारा प्रदान किया गया हो।

आयोग की शक्तियां निम्नलिखित हैंः

  1. भारत के किसी भी हिस्से से किसी भी व्यक्ति को उपस्थित होने के लिए सम्मन जारी करना और उसके शपथ की जाँच करना।
  2. किसी भी दस्तावेज का अन्वेषण और प्रस्तुत करने का आदेश।
  3. शपथ पत्र पर साक्ष्य प्राप्त करना।
  4. किसी भी अदालत या कार्यालयों से किसी भी सार्वजनिक रिकॉर्ड या उसकी प्रति की मांग करना।
  5. गवाहों और दस्तावेजों के परीक्षण के लिए आज्ञापत्र जारी करना।
  6. कोई अन्य मामला जो राष्ट्रपति द्वारा द्वारा सौंपा गया हो।