जैव ईंधान पर राष्ट्रीय नीति, 2018

यह नीति जैव ईंधन को ‘मूल जैव ईंधन’ के रूप में वर्गीकृत करती है, जिसमें प्रथम पीढ़ी (1G) बायोएथेनॉल और बायोडीजल और ‘उन्नत जैव ईंधन’; दूसरी पीढ़ी (2G) इथेनॉल, नगरपालिका ठोस अपशिष्ट (MSW) से लेकर ड्रॉप इन ईंधन तथा तीसरी पीढ़ी (3G) जैव ईंधन, जैव CNG आदि को श्रेणीबद्ध किया गया है, ताकि प्रत्येक श्रेणी में उचित वित्तीय और आर्थिक प्रोत्साहन बढ़ाया जा सके।

  • नीति में गन्ने का रस, चीनी वाली वस्तुओं जैसे चुकन्दर, स्टार्च वाली वस्तुएं जैसे- भुट्टा, कसावा, मनुष्य के उपभोग के लिए अनुपयुक्त बेकार अनाज जैसे- खराब गेहूं, टूटा चावल, सड़े हुए आलू के इस्तेमाल की अनुमति देकर इथनॉल उत्पादन के लिए कच्चे माल का दायरा बढ़ाया गया है।
  • नीति में गैर-खाद्य तिलहनों, इस्तेमाल किए जा चुके खाना पकाने के तेल, लघु गाभ फसलों से जैव डीजल उत्पादन के लिए आपूर्ति श्रृंखला तंत्रा स्थापित करने को प्रोत्साहन दिया गया।
  • अतिरिक्त उत्पादन चरण के दौरान किसानों को उनके उत्पाद का उचित मूल्य नहीं मिलने का खतरा होता है। इसे ध्यान में रखते हुए इस नीति में राष्ट्रीय जैव ईंधन समन्वय समिति की मंजूरी से इथनॉल उत्पादन (पेट्रोल में मिलाने के लिए) में अतिरिक्त अनाजों के इस्तेमाल की अनुमति दी गई है।
  • इस नीति के कुछ अपेक्षित लाभों में आयात निर्भरता में कमी, स्वच्छ पर्यावरण, स्वास्थ्य लाभ में वृद्धि, नगरपालिका ठोस अपशिष्ट प्रबंधन, ग्रामीण क्षेत्रों में अवसंरचनात्मक निवेश, उच्च रोजगार सृजन, किसानों को अतिरिक्त आय आदि शामिल हैं।
  • एमएनआरई ने 2030 तक पेट्रोल में इथेनॉल के मिश्रण का 20% और डीजल में बायोडीजल के 5% सम्मिश्रण का लक्ष्य रखा है। वर्तमान में इसका प्रतिशत पेट्रोल के लिए लगभग 2% और डीजल पर 0.1% से कम है।