‘ओशन एंड क्रायोस्फ़ेयर इन ए चेंजिंग क्लाइमेट’

सितंबर, 2019 को जलवायु परिवर्तन पर अंतर सरकारी पैनल (IPCC) द्वारा ‘ओशन एंड क्रायोस्फेयर इन ए चेंजिंग क्लाइमेट’ (Ocean and Cryosphere in a Changing Climate) नामक एक नई रिपोर्ट जारी की गई। यह रिपोर्ट महासागरों तथा बर्फ से ढके भूमि क्षेत्रों (क्रायोस्फेयर) पर जलवायु परिवर्तन के प्रभावों पर प्रकाश डालती है।

  • जलवायु परिवर्तन के कारण महासागरों और क्रायोस्फेयर में अभूतपूर्व तथा स्थाई बदलाव आ रहे हैं, जिनसे विश्व के सामने नई चुनौतियां खड़ी हो रही हैं। आईपीसीसी की इस रिपोर्ट को 195 सदस्य देशों की सरकारों ने मंजूरी दी है।
  • रिपोर्ट के अनुसार वैश्विक स्तर पर समुद्र का औसत जल-स्तर वर्ष 1902 और 2015 के बीच 16 सेमी. बढ़ा।
  • इस रिपोर्ट को 36 देशों के 100 से ज्यादा वैज्ञानिकों ने ताजा आंकड़ों और सात हजार से ज्यादा वैज्ञानिक प्रकाशनों के आधार पर तैयार किया है।

प्रमुख तथ्य

वर्ष 2006 से 2015 के बीच वैश्विक औसत समुद्री जल-स्तर में प्रतिवर्ष 3.6 मिमी. की औसत वृद्धि दर्ज की गई; यह 20वीं शताब्दी के पहले 90 वर्ष की अवधि की दर (प्रति वर्ष 1.4 मिमी) की तुलना में दोगुने से अधिक था।

  • रिपोर्ट के अनुसार टिकाऊ विकास के लिए महत्वाकांक्षी तथा प्रभावी कदम उठाने के फायदे होंगे, लेकिन अगर कार्रवाई में देर हुई तो फिर उससे जोखिम और खर्च दोनों बढ़ जाएंगे।
  • ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को तात्कालिक ढंग से घटाने से महासागर के जलस्तर और क्रायोस्फेयर में आ रहे बदलावों को सीमित रखने में मदद मिल सकती है। साथ ही पारिस्थितिकी तंत्रों और उन पर निर्भर जीवन को भी संरक्षित किया जा सकेगा।
  • ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन के कारण पृथ्वी का औसत तापमान पहले ही पूर्व औद्योगिक स्तर से एक डिग्री सेल्सियस बढ़ चुका है।
  • रिपोर्ट के अनुसार आने वाले वर्षों में प्रशांत महासागर में एल नीनो और ला नीना की घटनाओं की आवृत्ति बढ़ने की संभावना है, जिसकी वजह से भारत में अधिक तीव्रता वाले आर्द्र या शुष्क मौसम घटित हो सकते हैं।
  • रिपोर्ट के अनुसार फ्महासागर गर्म हो रहे हैं, उनका अम्लीकरण बढ़ रहा है और उनकी उत्पादकता घट रही है। ग्लेशियरों (हिमनदों) और बर्फीले इलाकों के पिघलने से समुद्री जलस्तर बढ़ रहा है और तटीय इलाकों में चरम मौसम की घटनाएं और गंभीर हो रही हैं।
  • पर्वतीय इलाकों में लोग जल की उपलब्धता में आ रहे बदलावों का असर झेल रहे हैं, ग्लेशियर (हिमनद) और बर्फीले इलाके पिघल रहे हैं; जिससे भूस्खलन, हिमस्खलन, चट्टानों के गिरने और बाढ़ के खतरे बढ़ेंगे।
  • अगर ज्यादा मात्रा में कार्बन उत्सर्जन जारी रहा तो यूरोप, पूर्वी अफ्रीका और इंडोनेशिया में छोटे ग्लेशियर 80 प्रतिशत तक पिघल सकते हैं।