दिव्यांगजन अधिकार अधिनियम, 2016

यह अधिनियम विकलांग व्यक्ति (समान अवसर, अधिकारों का संरक्षण और पूर्ण भागीदारी) अधिनियम, 1995 को प्रतिस्थापित किया है और विकलांग व्यक्तियों के अधिकारों पर यूनाइटेड नेशनल कन्वेंशन ऑन द राइट आफ पर्सन्स विद डॉइसेबिलिटिज (UNCRPD) के प्रति भारत की प्रतिबद्धता को दर्शाता है।

अधिनियम की मुख्य विशेषताएं

दिव्यांगता के प्रकार को 7 से बढ़ाकर 21 कर दिया गया है, जिसमें मानसिक बीमारी और एसिड अटैक के शिकार को शामिल किये गए हैं।

  • अधिक जरूरतों वाले दिव्यांग व्यक्तियों को आरक्षण एवं अतिरिक्त लाभ प्रदान किया गया है; जैसे उच्च शिक्षा (5% से कम नहीं), सरकारी नौकरी (4% से कम नहीं), भूमि के आवंटन में आरक्षण, गरीबी उन्मूलन योजना (5% आवंटन) आदि।
  • सरकारी वित्तपोषित शिक्षण संस्थानों के साथ-साथ सरकारी मान्यता प्राप्त संस्थानों को दिव्यांग बच्चों को समावेशी शिक्षा प्रदान करनी होगी।
  • सुगम्य भारत अभियान को मजबूत करने के लिए एक निर्धारित समय-सीमा में सार्वजनिक भवनों (सरकारी और निजी दोनों) में पहुंच सुनिश्चित करने पर जोर दिया गया है।
  • केंद्रीय और राज्य स्तर पर सर्वोच्च नीति निर्धारण निकाय के रूप में केंद्रीय और राज्य सलाहकार बोर्ड स्थापित किए जाएंगे।
  • दिव्यांग व्यक्तियों को वित्तीय सहायता प्रदान करने के लिए राष्ट्रीय और राज्य कोष का निर्माण किया जाएगा।
  • 6 से 18 वर्ष की आयु के दिव्यांग बच्चों के लिए मुफ्त शिक्षा का प्रावधान।
  • दिव्यांग व्यक्तियों के अधिकारों के उल्लंघन से संबंधित मामलों के लिए प्रत्येक जिले में विशेष न्यायालयों को नामित किया जाएगा। नए अधिनियम के किसी भी प्रावधान का उल्लंघन करने पर दंडात्मक कार्रवाई होगी।

अधिनियम की सकारात्मक पक्ष

एसिड अटैक जैसी विकृति को पहचानना एक सही कदम है, क्योंकि वे अन्य दिव्यांग व्यक्तियों की तरह ही कलंक और अक्षमता झेलती हैं।

  • संयुक्त राष्ट्र कन्वेंशन के पालन से हमारी अंतरराष्ट्रीय छवि बेहतर होती है, जो दर्शाता है कि भारत अपने दायित्वों का पालन कर रहा है।
  • सरकारी शिक्षण संस्थानों और अन्य कार्यालयों को सक्षम बनाने से दिव्यांग व्यक्तियों को अपने दैनिक कार्यों में आने वाली कठिनाइयों का सामना करने में मदद मिलेगी।

अधिनियम के नकारात्मक पक्ष

संरक्षक (Guardianship) से सम्बंधित प्रावधान अस्पष्ट है और कई मौजूदा विधानों के विपरीत है। इसलिए उचित सुधारात्मक उपाय किया जाना चाहिए।

  • केंद्रीय आदेश को लागू करने का दायित्व राज्य के विधि पर पड़ना स्वस्थ संघवाद के विरुद्ध है।
  • 2014 में प्रस्तावित राष्ट्रीय आयोग के बजाय दिव्यांगों के मुख्य आयुक्त की नियुक्ति केवल एक निःशक्त संस्था का निर्माण करेगा।
  • दिव्यांगजन अधिकार अधिनियम, 2016 एक अच्छी शुरुआत है; लेकिन दिव्यांगजन के अधिकारों की रक्षा तभी की जा सकेगी, जब यह अधिनियम अपनी वास्तविक भावना में लागू होगा।
  • संपूर्ण सरकारी मशीनरी और बड़े पैमाने पर समाज को दिव्यांगजनों की जरूरतों और समानता के प्रति संवेदनशील बनाना होगा। सभी के लिए समान अवसर केवल एक कानून पास करके हासिल नहीं किया जा सकता है। पूरे समाज को ऐसे अवसर पैदा करने में भाग लेना होगा।