नदी जोड़ो परियोजना

नदी जोड़ो परियोजना एक बड़े पैमाने पर प्रस्तावित परियोजना है, जिसका उद्देश्य भारतीय नदियों को जलाशयों और नहरों के माध्यम से आपस में जोड़ना है। इससे भारत के कुछ हिस्सों में लगातार बाढ़ या पानी की कमी की समस्या को दूर किया जा सकता है।

  • इस परियोजना को तीन भागों में विभाजित किया गया हैः उत्तर हिमालयी नदी जोडो घटक; दक्षिणी प्रायद्वीपीय घटक और 2005 से शुरू, अंतरराज्यीय नदी जोडो घटक।
  • परियोजना को जल संसाधन मंत्रालय के अन्तर्गत भारत के राष्ट्रीय जल विकास प्राधिकरण (एनडब्ल्यूडीए) द्वारा प्रबंधित किया जा रहा है। एनडब्ल्यूडीए ने हिमालयी घटक की 14 परियोजनाओं, प्रायद्वीपीय घटक की 16 परियोजनाएं और 37 अंतरराज्यीय नदी जोड़ने परियोजनाओं पर अध्ययन कर रिपोर्ट तैयार किया।
  • भारत में औसत वर्षा करीब 4,000 अरब घन मीटर है, लेकिन भारत की अधिकांश वर्षा 4 महीने की अवधि - जून से सितंबर (मानसून) के बीच होती है। हलांकि, देश भर में वर्षण समान नहीं है, पूर्व और उत्तरी में अधिक बारिश होती है, जबकि पश्चिम और दक्षिण में कम बारिश होती है।

भारत की राष्ट्रीय नदी जोड़ परियोजना के घटक

इस परियोजना के अंतर्गत हिमालयी क्षेत्र से 33 बीसीएम जल 16 नदी संपर्क के माध्यम से सीधे स्थानांतरित किया जाएगा। इसमें मुख्यरूप से दो क्षेत्र महत्वपूर्ण हैं-

  • गंगा और ब्रह्मपुत्र नदी से महानदी घाटी जोड़ना।
  • पूर्वी गंगा की सहायक नदियों को चंबल और साबरमती से जोड़ना।

प्रायद्वीपीय क्षेत्र के घटकों को 14 नदी संपर्क से 141 बीसीएम जल को स्थानांतरित करना। इसके मुख्य रूप से चार घटक हैं-

  1. महानदी-गोदावरी घाटी से कृष्णा-कावेरी और वैगई नदी को जोड़ना।
  2. पश्चिम में प्रवाहित होने वाली ताप्ती नदी को मुंबई से जोड़ना।
  3. केन नदी से बेतवा नदी को और पार्वती, काली सिंध से चंबल नदी को जोड़ना।
  4. कुछ पश्चिम में बहने वाली नदियों से पूर्व में बहने वाली नदियों को जोड़ना।

भारत को नदी जोड़ने के अभियान के लाभ

इस परियोजना से सूखे तथा बाढ़ की समस्या से राहत मिल सकती है, क्योंकि जरूरत पड़ने पर बाढ़ वाली नदी बेसिन का पानी सूखे वाले नदी बेसिन को दिया जा सकता है। गंगा और ब्रह्मपुत्र क्षेत्र में हर साल आने वाली बाढ़ से निजात मिल सकता है।

  • सिंचाई करने वाली भूमि भी तकरीबन 15 फीसदी तक बढ़ जाएगी।
  • 15,000 किलोमीटर नहरों का और 10,000 किलोमीटर नौवाहन का विकास होगा, जिससे परिवहन लागत में कमी आएगी।
  • बड़े पैमाने पर वनीकरण होगा और लगभग 3,000 टूरिस्ट स्पॉट बनेंगे।
  • इस परियोजना से पीने के पानी की समस्या दूर होगी और आर्थिक रूप से भी समृद्धि आएगी।
  • इससे ग्रामीण क्षेत्रों के भूमिहीन किसानों को रोजगार भी मिलने की सम्भावना है।