स्टेट ऑफ़ द ग्लोबल क्लाइमेट इन 2018

विश्व मौसम विज्ञान संगठन (WMO) ने 28 मार्च, 2019 को ‘स्टेट ऑफ द ग्लोबल क्लाइमेट इन 2018’ (State of the Global Climate in 2018) रिपोर्ट जारी की; नवीन रिपोर्ट इसका 25वां वार्षिक संस्करण है।

मुख्य बिंदु

  • वर्ष 2018 अभी तक दर्ज चौथा सबसे गर्म वर्ष था।
  • लंबे समय तक वार्मिंग की प्रवृत्ति जारी रहने के कारण 2015-2018 अभी तक दर्ज सबसे गर्म 4 वर्ष रहे।
  • समुद्र का तापमान अपने रिकॉर्ड उच्च स्तर पर है तथा वैश्विक स्तर पर समुद्र का जल स्तर भी बढ़ रहा है।
  • आर्टिक और अंटार्कटिक में समुद्री-बर्फ का विस्तार औसत से काफी कम है।
  • औसत वैश्विक तापमान पूर्व-औद्योगिक स्तर से लगभग 1 डिग्री सेल्सियस ऊपर पहुंच गया।

जलवायविक प्रभाव

वर्ष 2018 में अधिकांश प्राकृतिक प्रकोप जिन्होंने लगभग 62 मिलियन लोगों को प्रभावित किया, चरम मौसम तथा जलवायविक घटनाओं से जुड़े थे। वहीं बाढ़ (Floods) ने सर्वाधिक लोगों (35 मिलियन से अधिक) को प्रभावित किया।

  • 2018 में हरिकेन फ्रलोरेंस और माइकल ने अमेरिका में लगभग 49 बिलियन डॉलर का नुकसान पहुँचाया तथा इससे 100 से अधिक मौतें हुईं।
  • सुपर टाइफून मंगखुट के कारण मुख्य रूप से फिलीपींस में 134 लोगों की मृत्यु हुई तथा इससे 2.4 मिलियन से अधिक लोग प्रभावित हुए। यूरोप, जापान और अमेरिका में तीव्र हीट वेव्स (heat waves) और जंगल की आग की वजह से 1600 से अधिक लोगों की जानें गईं।
  • भारतीय राज्य केरल ने लगभग एक सदी बाद सर्वाधिक वर्षा और सबसे भीषण बाढ़ का सामना किया। नए साक्ष्य यह दर्शाते हैं कि विश्व में भूख की प्रवृत्ति में लंबे समय तक गिरावट होने के बाद अब इसमें निरंतर वृद्धि हो रही है।
  • वर्ष 2017 में कुपोषित लोगों की संख्या बढ़कर 821 मिलियन हो गई थी, जिसका संभावित कारण 2015-2016 के मजबूत एल-नीनो के कारण गंभीर सूखे की घटनाएं थीं।
  • सितंबर 2018 तक 17.7 मिलियन ‘आंतरिक रूप से विस्थापित लोगों’ (IDP) में से 2 मिलियन से अधिक लोग मौसम और जलवायु की घटनाओं से जुड़ी आपदाओं के कारण विस्थापित हुए।
  • सूखा, बाढ़ और तूफान (हरिकेन और चक्रवात सहित) ऐसी घटनाएं हैं, जिनके कारण 2018 में सबसे अधिक ‘आपदा-प्रेरित विस्थापन’ (disaster-induced displacement) हुआ है।
  • जनवरी से दिसंबर 2018 के बीच 8,83,000 नए आंतरिक विस्थापन दर्ज किए गए, जिनमें से 32% बाढ़ से और 29% सूखे से जुड़े थे। चरम घटनाओं, भारी बारिश, बाढ़ और भूस्खलन के कारण द्वितीयक विस्थापन की वजह से लाखों रोहिंग्या शरणार्थी प्रभावित हुए।