जल संरक्षण

जल संरक्षण का अर्थ पानी बर्बादी तथा प्रदूषण को रोकने से है। जल संरक्षण एक अनिवार्य आवश्यकता है, क्योंकि वर्षाजल हर समय उपलब्ध नहीं रहता है। अतः पानी की कमी को पूरा करने के लिये पानी का संरक्षण आवश्यक है।

आवश्यकता

यदि हमारे देश में वर्षाजल के रूप में प्राप्त पानी का पर्याप्त संग्रहण व संरक्षण किया जाए, तो यहाँ जल संकट को समाप्त किया जा सकता है।

  • हमारे देश की अधिकांश नदियों में पानी की मात्र में कमी आयी है। इनमें कावेरी, कृष्णा, माही, पेन्नार, साबरमती, गोदावरी और तृप्ति आदि प्रमुख हैं; जबकि कोसी, नर्मदा, ब्रह्मपुत्र, सुवर्ण रेखा, वैतरणी, मेघना और महानदी में जलातिरेक की स्थिति है।
  • ऐसे में सतही पानी का जहाँ ज्यादा भाग हो, उसे वहीं संरक्षित करना चाहिए, क्योंकि अन्तरराष्ट्रीय जल प्रबंधन संस्थान के अनुसार भारत में वर्ष 2050 तक अधिकांश नदियों में जलभराव की स्थिति उत्पन्न होने की पूरी सम्भावना है।
  • भारत के 4,500 बड़े बाँधों में 220 अरब घनमीटर जल के संरक्षण की क्षमता है।
  • देश के 11 मिलियन ऐसे कुएँ हैं, जिनकी संरचना पानी के पुनर्भरण के अनुकूल है। यदि मानसून अच्छा रहता है तो इनमें 25-30 मिलियन पानी का पुनर्भरण हो सकता है।

इस प्रकार जल संरक्षण की आवश्यकता स्वयं सिद्ध हो जाती है; क्योंकि जल ही संपूर्ण प्राणि जगत का आधार है; तथापि जल संरक्षण की आवश्यकता निम्नलिखित कारणों से हैः

  1. जल का समुचित वितरण एवं उपयोग सुनिश्चित करना;
  2. शुद्ध जल की निरंतर हो रही कमी को पूरी करना;
  3. भावी पीढ़ियों के लिये जल की उपलब्धता सुनिश्चित करना।

जल संग्रहण के उपाय

जल संग्रहण के लिये प्रत्येक स्तर पर प्रयास की आवश्यकता है। यदि निम्नलिखित बातों पर ध्यान दिया जाए तो जल संरक्षण सुगम हो सकता है।

  • प्रत्येक गाँव/बस्ती में एक तालाब होना आवश्यक है, जिसमें जल संग्रह हो सके तथा आवश्यकतानुसार उपयोग में लाया जा सके।
  • नदियों पर छोटे-छोटे बाँध व जलाशय बनाए जाएं, ताकि बाँध में पानी एकत्र हो सके तथा आवश्यकतानुसार उपयोग में लाया जा सके।
  • नदियों में प्रदूषित जल को डालने से पूर्व उसे साफ करना जरूरी है, ताकि नदियों का जल साफ सुथरा बना रहे।
  • अधिक से अधिक वृक्षारोपण किया जाए, ताकि ये वृक्ष एक तरफ तो पर्यावरण को नमी पहुँचाए तथा दूसरी ओर वर्षा करने में सहायता करें।
  • जल प्रवाह की समुचित व्यवस्था होनी आवश्यक है। कस्बों, नगरों से गंदे पानी का निकास आवश्यक है।
  • जल को व्यर्थ में बर्बाद न करें और न ही प्रदूषित करें।
  • भूमिगत जल का उपयोग समय तथा उपलब्धता के आधार पर ही किया जाना चाहिए। ताकि आवश्यकता के समय इसका उपयोग किया जा सके।
  • भवनों, सार्वजनिक स्थलों, सरकारी भवनों में जल संरक्षण के लिये व्यवस्था की जाए।
  • जल को गहरी जमीन में छोड़ दें, ताकि वह अंदर जाकर भूजल स्तर को ऊपर उठाने में मदद करें।
  • जल संरक्षण के लिये जल का उचित संचय आवश्यक है।
  • जल का उचित संवहन तथा स्थानांतरण भी जल संरक्षण के लिये महत्त्वपूर्ण है।