जल नीति

वर्तमान में भारत जल संकट का सामना कर रहा है, यदि उपचारात्मक कदम नहीं उठाए गए तो वर्ष 2030 तक देश में पीने योग्य जल की कमी हो सकती है। इसे ध्यान में रखते हुए सरकार नई राष्ट्रीय जल नीति (New Water Policy- NWP) के साथ ही जल से जुड़ी शासन की संरचना और नियामक ढाँचे में महत्वपूर्ण बदलाव करने की योजना बना रही है।

ज्ञातव्य है कि भारत की पहली जल नीति वर्ष 1987 में आई थी, जिसे वर्ष 2002 एवं 2012 में संशोधित किया गया था।

नई जल नीति की आवश्यकता

राष्ट्रीय जल नीति में अंतिम संशोधन आठ वर्ष पहले हो चुका है, इन आठ वर्षों के दौरान जल संसाधन से जुड़े कई सारे बदलाव देखे गए हैं, जिन्हें पहचानने के साथ जल के उपयोग की प्राथमिकता को परिभाषित करने की पुनः आवश्यकता है।

  • नीति आयोग ने अपने समग्र जल प्रबंधन सूचकांक, 2018 में यह माना है कि वर्तमान समय में जल का उपयोग बहुत अधिक एवं अनुचित रूप से किया जा रहा है।
  • सिंचाई क्षेत्र में प्रयुक्त जल की दक्षता 30-38% है। जहाँ शहरी क्षेत्र में पीने योग्य जल एवं स्वच्छता के लिये जल की आपूर्ति का लगभग 40-45% तक बर्बाद होता है।
  • वहीं दूसरी ओर गाँवों को बहुत कम मात्रा में पानी मिलता है,इसलिये जल की आपूर्ति को संतुलित करने की आवश्यकता है। नीति आयोग के अनुसार, जल प्रबंधन समस्या के कारण हिमालय में स्प्रिंग सेट कम हो रहे हैं।
  • ज्ञातव्य है कि पिछले वर्ष सितंबर में नीति आयोग ने हिमालय स्प्रिंग्स को पुनर्जीवित करने के लिये समर्पित मिशन हेतु विशेषज्ञों के समूह का गठन किया था।
  • जल के प्रवाह को नियंत्रित करने एवं ट्रैक करने के लिये सेंसर, भौगोलिक सूचना प्रणाली (GIS) और उपग्रह इमेजरी जैसे तकनीकों का उपयोग करने की आवश्यकता है।
  • साथ ही बजट को इस तरह से बनाने की आवश्यकता है कि यह बेसिन से उप बेसिन तक जल के सभी स्तरों को कवर करे।
  • जलवायु परिवर्तन के प्रतिकूल प्रभावों से निपटने, अत्यधिक वर्षा, ग्रीष्मकाल के दौरान पानी की कमी, नदियों का सूख जाना, पानी की गुणवत्ता और नदी प्रदूषण जैसी समस्याओं से निपटने हेतु भी नई जल नीति की आवश्यकता है।